धनुष-ऐश्वर्या डिवोर्स: क्या रिश्तों पर हावी हो रहा है मन का मशीनीकरण?
धनुष-ऐश्वर्या का डिवोर्स
चोट लगी है, दर्द भी भारी है, एहसासों का मरना जारी है।
फकत सांस लेते मुर्दा जिस्मों का शोर है,
इंसान पर ये कौन सा खुमार तारी है।
नेम, फेम और अथाह दौलत, 18 वर्षों की शादी और 2 टीनएजर बच्चे, एक सामान्य भावनात्मक व्यक्ति की चाहत इसके अलावा शायद ही कुछ और होती हो। लेकिन यह खूबसूरत सा सपना दक्षिण भारतीय फिल्म स्टार धनुष और उनकी पत्नी ऐश्वर्या को रास नहीं आया है। जिस उम्र में उन्हें अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचना चाहिए था, वे अपनी राहें अलग करने में जुट गए। हालांकि इस बीच धनुष के पिता ने इसे 'सिर्फ' पारिवारिक झगड़ा कहकर खारिज करने की कोशिश भी की है लेकिन घर की बात अब बाहर तो आ चुकी है।
अलगाव हमेशा टीस छोड़कर जाता है। चाहे वो सीमाओं का अलगाव हो या रिश्तों का। भावनात्मक जुड़ाव केवल इंसान का ही नहीं, हर जीवित प्राणी और सांस लेती प्रकृति का एक प्रमुख गुण है। यही कारण है कि जब हम अपने घर में लगाए किसी पौधे में फूल खिलते देखते हैं तो उससे भी हमें लगाव होने लगता है। या कहिए किसी भी इंसान को ये लगाव हो सकता है। बस यहीं से प्रश्न उठता है कि क्या हम इंसान होने का सबसे पहला गुण ही खो रहे हैं? क्या हम भावनाशून्य हो रहे हैं?
टूटते रिश्ते और ढहती छबियां
इन लाइनों को लिखते समय जब मैंने साउथ के सुपरस्टार शब्द टाइप किए तो सबसे पहला नाम ऑटो सजेस्ट में आया- 'रजनीकांत।' रजनीकांत एक फिल्म स्टार से कहीं आगे दक्षिण भारत के लोगों के लिए सुपरहीरो हैं, जिन्हें उनके फैंस भगवान की तरह मानते हैं। न जाने कितने ही मीम्स और जोक्स रजनीकांत की आकाशीय, चमत्कारी, ईश्वरीय शक्तियों का बखान करते हुए बनाए गए हैं। लेकिन आज रजनी अन्ना के फैंस सोशल मीडिया पर उनके बेटी-दामाद के टूटते रिश्तों को लेकर दुख जाहिर कर रहे हैं। लोगों को ये दुख है कि अब धनुष-ऐश्वर्या के दोनों बच्चों का क्या होगा? ये जोड़ा अलग क्यों हो गया? उनके लिहाज से तो ये आदर्श जोड़ा था। वगैरह-वगैरह।
चर्चा ये भी है कि धनुष की अन्य एक्ट्रेस से नजदीकियां और ऐश्वर्या से दूरियां (कामकाज के संदर्भ में) इस रिश्ते के टूटने की वजह बनी। इसी तरह कुछ समय पहले अभिनेता आमिर खान-किरण राव ने भी अपने 15 साल पुराने रिश्ते को एक झटके में टाटा कर दिया था। अब वो दोनों फ्रेंड जोन में हैं। इससे पहले भी आमिर लगभग डेढ़ दशक की शादी को बाय बाय कर चुके हैं। इसके अलावा दक्षिण भारतीय फिल्मों की एक और चर्चित जोड़ी सामंथा रूथ प्रभु और नागा चैतन्या शादी के कुछ ही समय बाद अलग हो गए।
दरअसल, इनकी भव्य शादी भी चर्चा में थी और फिर तलाक भी। इसी तरह कई चर्चाओं में रहीं कोलकाता की अभिनेत्री और लोकसभा सदस्य नुसरत जहां की शादी और तलाक भी अनोखा किस्सा बना और हाल ही में नीतीश भारद्वाज ने तलाक की पीड़ा को व्यक्त किया। ये सूची अंतहीन है। अब ये ग्लैमर की दुनिया का शगल है, चलन है या भौतिकता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुके इंसानी दिमाग की अस्थिरता, ये सवाल सामने उठता है।
विवाह संस्था मनुष्य समाज को बांधे रखती है।
यह सच है कि पीड़ादाई, कड़वाहट से भरी, प्रताड़ना से भरी या मानसिक संताप से भरी रिलेशनशिप का अंत कर लेना कई मायनों में सही विकल्प है लेकिन जो चलन आजकल चल रहा है वह इतना मशीनी है कि एक रिश्ते के टूट जाने के बाद की पीड़ा, लोगों को प्रभावित नहीं करती, वह फटाफट मूव ऑन हो जाते हैं। मूव ऑन होना और कड़वे पास्ट को भूलना भी गलत नहीं है, लेकिन भावनात्मक स्तर पर खुद को इतनी जल्दी बदल लेना इंसान होने के नाते अजीब लगता है। ऐसा लगता है लोग रिश्ते नहीं, ट्रायल रूम में कपड़े चेंज कर रहे हैं। एक पसंद नहीं आया तो दूसरा, दूसरा नहीं जमा तो तीसरा।
विवाह संस्था और टूटते-बिखरते रिश्ते
शादी और तलाक बाकी कई चीजों की तरह किसी का बहुत पर्सनल मामला होता है। लेकिन यहां जाहिर है ये किसी एक व्यक्ति के पर्सनल स्पेस से जुड़ा मसला नहीं है। इससे आगे का सवाल है शादी और इससे जुड़े रिश्ते का। अगर इस रिश्ते की कोई भावनात्मक, सामाजिक और सांस्कृतिक नींव और महत्व नहीं होता तो दुनिया में यह व्यवस्था होती ही नहीं। मुश्किल यह है कि मशीनी होती जा रही दुनिया में भावनात्मकता खत्म होती जा रही है और यह केवल एक रिश्ते के लिए ही नहीं, पूरे समाज के लिए दुखद बात है।
सेलिब्रिटीज को छोड़ भी दें तो रिश्ते तोड़ना आजकल की आम होती तस्वीर है। यह ट्रेंड कई वजहों से हो सकता है। लेकिन असल में यह पूरी तरह मशीनी हो चुके, भौतिकतावाद की चपेट में फंसे, अस्थिर दिमागों की ओर भी इशारा है। जहां रिश्ते महज सुविधा हैं या भौतिकता। वो भावनाएं, वो जुड़ाव खत्म सा होता जा रहा है जो रिश्तों की गर्माहट बनाए रखने के लिए सबसे अधिक जरूरी है।
शादी का मतलब हमारे यहां सात जन्मों का साथ होता है। सात तो छोड़िए यहां कुछ साल के भी रिश्ते निभाने में इंसान बोर होने लगता है। शादी कोई फिल्म नहीं है कि पसंद नहीं आई तो बीच में छोड़ कर थियेटर से निकल लिए। एक रिश्ते में केवल दो लोग या बहुत खुली भाषा मे कहूं तो दो शरीर ही नहीं जुड़ते। ये कई लोगों की समवेत भावना और आत्मा का लगाव होता है। अधिकांश शादियां एक तरह का एडजेस्टमेंट ही होती हैं क्योंकि दुनिया मे परफेक्ट कपल जैसा कुछ नहीं होता। लेकिन ये एडजेस्टमेंट इंसान अपने प्रेम और परिवार के लिए करता है।
यहां उन शादियों की बात नहीं हो रही जहां छल, कपट या बड़े झूठ की बुनियाद पर रिश्ता टिका होता है। ये प्रताड़ना से भरे रिश्तों की बात बिल्कुल नहीं है। यदि आपका पार्टनर (चाहे वो आदमी हो या औरत) शराब पीकर आपको मारता है, रोज आपके कॉन्फिडेंस की धज्जियां उड़ाता है, आपको आर्थिक, मानसिक, शारीरिक किसी भी स्तर पर प्रताड़ित करता है, आपको लेकर फ़्यूडीलिस्टिक सोच रखता है, आपको चीट कर रहा है, किसी गम्भीर बीमारी से ग्रसित है या आपको किसी भी तरह से चोट पहुंचा रहा है तो ऐसे रिश्ते में बंधे रहने से बेहतर है अलग हो जाना। लेकिन अगर सबकुछ ठीक है तो फिर ये अलगाव क्यों?
रिश्तो में विश्वास टूटता जा रहा है। समाज में हो रहा ये बदलाव चिंताजनक है।
बहुत सालों पहले मेरे एक आदरणीय बुजुर्ग ने मुझसे एक बात कही थी। बेटा, अपने घर में हम जब एक जानवर भी पालते हैं तो हमें उससे भी लगाव हो जाता है। फिर विवाह तो इंसान से होता है। ऐसे में इमोशनल अटैचमेंट होना स्वाभाविक है। यही इंसान होने की पहचान है और इसी पर रिश्ते लंबे टिके रहते हैं। कई बार तो एक तरफा अटैचमेंट के कारण भी रिश्ते टिके रहते हैं।
ऐसे में अगर किसी रिश्ते में बंधने के बाद आपके दिल में आज किसी के लिए प्रेम, कल किसी के लिए और परसों किसी और के लिए प्रेम जागृत होता है तो साफ मतलब है कि या तो आपकी किस्मत इतनी खराब है कि आपको सिर्फ प्रताड़ित करने वाले ही मिल रहे हैं या फिर आप सारी भावनाएं खो चुके हैं। बार-बार प्यार नहीं होता। प्यार तो एक ही बार होता है। बाकी तो सिर्फ आपकी सुविधा होती है। और रिश्ते सुविधा से आगे की बात हैं।
आश्चर्य की बात है न कि या तो लोग बलात्कारी, किसी भी तरह की प्रताड़ना देने वाले पार्टनर (हमारे देश में खासकर) के साथ पूरी जिंदगी बिता देते हैं या फिर हर कुछ सालों में पार्टनर बदल लेते हैं। इससे तो वो लोग ज्यादा अच्छे हैं जो कमिटमेंट फोबिक होने के कारण शादी नहीं करते, क्योंकि वे लोग भावनाओं की बजाय अरेंजमेंट को प्राथमिकता देते हैं। तो अगर आपको बार-बार सो कॉल्ड प्यार होने की बीमारी है तो या तो अपना इलाज करवाइए या किसी रिश्ते में मत बंधिए। क्योंकि रिश्ते टूटने पर जो दर्द होता है वह हमेशा के लिए विश्वास को खत्म कर देता है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।