दिल्ली पुलिस 43 साल पहले और बाद : 'ओपन-हाउस' से वर्दी के बहादुरों का गदगद होना लाजिमी है…..

अब से करीब चार दशक पहले (43 साल पूर्व) यानी 1 जुलाई सन् 1978 को दिल्ली पुलिस में ‘आईजी सिस्टम’ हटाकर, उसकी जगह ‘कमिश्नर सिस्टम’ लागू किया गया था

Update: 2021-08-29 08:02 GMT

संजीव चौहान। अब से करीब चार दशक पहले (43 साल पूर्व) यानी 1 जुलाई सन् 1978 को दिल्ली पुलिस में 'आईजी सिस्टम' हटाकर, उसकी जगह 'कमिश्नर सिस्टम' लागू किया गया था. इस बड़े और एतिहासिक बदलाव के पीछे हिंदुस्तानी हुकूमत की मंशा थी कि इससे, अकूत कानूनी ताकत सीधे-सीधे दिल्ली पुलिस के हवाले हो सकेगी. हुआ भी वैसा ही. देश की राजधानी पुलिस को कमिश्नर सिस्टम मिलते ही वास्तव में तमाम तरह की विशेष कानूनी ताकतें हासिल हो भी गईं. राजधानी की कानून व्यवस्था को मजबूत करने के लिहाज से उसी दिन से दिल्ली पुलिस किसी और की मोहताज नहीं रह गई. उस बड़े बदलाव के दौरान पहला पुलिस कमिश्नर बनाया गया उन दिनों दिल्ली पुलिस के महानिरीक्षक (तब दिल्ली पुलिस का बॉस पुलिस महानिरीक्षक ही होते थे) रहे और श्रीमती इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र आईपीएस अधिकारी जे.एन. चतुर्वेदी. जे.एन. चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक भी रहे थे. 12 मार्च सन् 2018 को श्री चतुर्वेदी का करीब 92 साल की आयु में निधन हो गया. श्री चतुर्वेदी से लेकर अब तक (मौजूदा पुलिस आयुक्त राकेश अस्थाना को छोड़कर) 23 आईपीएस अधिकारियों ने दिल्ली पुलिस आयुक्त का पद संभाला.

आईपीएस सेवा (भारतीय पुलिस सेवा) से रिटायर होने के महज तीन-चार दिन पहले ही गुजरात कैडर 1984 बैच के दबंग-चर्चित पुलिस अधिकारी राकेश अस्थाना दिल्ली के 24वें पुलिस कमिश्नर बनाए गए हैं. हालांकि अगर दिल्ली के पुलिस कमिश्नरों में बाहरी कैडर (अन्य या किसी बाहरी राज्य कैडर) के आईपीएस अधिकारियों को लाकर यहां का (दिल्ली का) पुलिस आयुक्त बनाए जाने की चर्चा की जाए, तो उस नजरिये से राकेश अस्थाना की गिनती तीसरे नंबर पर होती है. गुजरात कैडर के आईपीएस राकेश अस्थाना से पहले इस फेहरिस्त में (दिल्ली से बाहर के कैडर के वे आईपीएस अफसर जिन्हें दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाया गया) एस.एस. जोग, अजय राज शर्मा का भी नाम जुड़ चुका है. सूर्यकांत जोग 1953 बैच महाराष्ट्र कैडर (पूर्व पुलिस महानिदेशक महाराष्ट्र)और 1966 बैच उत्तर प्रदेश कैडर के आईपीएस अजय राज शर्मा दिल्ली पुलिस आयुक्त पद पर धमाकेदार लंबी पारी खेलने के बाद सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक भी बने थे. एस एस जोग को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर लाकर बनाते वक्त उस हद का शोर नहीं मचा था जितना कि, अजय राज शर्मा के दिल्ली पुलिस कमिश्नर बनने पर. हालांकि अजय राज शर्मा के खिलाफ शोर मचाने वाले आईपीएस की लॉबी ने बाद में खुद की दाल न गलती देख चुप्पी साध ली थी. उसके बाद अजय राज शर्मा दिल्ली पुलिस में उन्हीं तमाम धुर-विरोधियों के बाद भी 'बाहरी कैडर' के आईपीएस होने के बाद भी दिल्ली पुलिस कमिश्नर की वजनदार पारी खेल कर सीधे दिल्ली पुलिस आयुक्त पद से भी ऊंचे डीजी बीएसएफ के पद पर पहुंचाए गए.
किरण बेदी बनाम डडवाल
अजयराज शर्मा के बाद आर.एस. गुप्ता (राधेश्याम गुप्ता) कृष्ण कांत पॉल (के.के. पॉल, उत्तराखण्ड के पूर्व राज्यपाल) दिल्ली के पुलिस आयुक्त बने. दोनों की नियुक्ति पर कोई किसी तरह का शोर-शराबा नहीं मचा. बवाल तब मचना शुरू हुआ जब जुलाई 2007 में देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरण बेदी को उस वक्त की हिंदुस्तानी हुकूमत ने नजरंदाज करके उनके जूनियर आईपीएस अफसर वाई एस डडवाल (युद्धवीर सिंह डडवाल 1974बैच दिल्ली कैडर के आईपीएस) को पुलिस आयुक्त बना डाला. जबकि डडवाल से सीनियर 1972 बैच की और देश की पहली महिला आईपीएस अधिकारी किरन बेदी, दिल्ली के पुलिस कमिश्नर बनने की बाट जोहती ही रह गईं. जबकि 1980 के दशक में दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में वकीलों से सीधे मोर्चा लेने, और कनाट प्लेस इलाके में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकारी कार (डीसीपी ट्रैफिक रहते हुए) "नो-पार्किंग" जोन से क्रेन से उठवा लेने से चर्चा में आई किरण बेदी चर्चा में काफी पहले ही आ चुकी थीं. किरण बेदी से कई साल जूनियर आईपीएस बैच के डडवाल को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाए जाने पर हो-हल्ला तो खूब मचा था. मगर किरन बेदी सहित विरोध स्वरूप तत्कालीन केंद्रीय हुकूमत (डडवाल को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाने वाली केंद्र सरकार) का बिगाड़ कोई कुछ नहीं सका था.
ऐसा सेवा-विस्तार भी किस काम का….
एस.एस. जोग, अजय राज शर्मा,किरण बेदी-वाईएस डडवाल के बाद दिल्ली पुलिस कमिश्नर की "कुर्सी" को लेकर शायद ही कभी कोई खींचतान मची हो. या फिर कोई शोर-शराबा सुनने को मिला हो. इसके बाद दिसंबर 2019-जनवरी 2020 में दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी को लेकर किस्से तब चर्चा में आने लगे जब, 1985 बैच के आईपीएस अफसर अमूल्य कुमार पटनायक के हाथों में दिल्ली पुलिस कमिश्नर की बागडोर थी. अमूल्य कुमार पटनायक के चर्चा में आने के पीछे प्रमुख वजह थी, दिल्ली पुलिस कमिश्नर के रूप में किसी आईपीएस अफसर (अमूल्य कुमार पटनायक) को "सेवा-विस्तार" दिया जाना. जोकि दिल्ली पुलिस में कमिश्नर सिस्टम (1 जुलाई 1978 से) लागू होने से लेकर तब तक (2019-2020) की अवधि में किसी भी पुलिस आयुक्त को नहीं मिला था. मतलब अमूल्य पटनाएक दिल्ली पुलिस कमिश्नर के रूप में सेवा-विस्तार पाने वाले पहले पुलिस कमिश्नर बने. हालांकि, उन्हें सेवा-विस्तार दिए जाने के पीछे हुकूमत की अपनी सही वजह भी थी. वो वजह थी उन्हीं दिनों दिल्ली में विधानसभा चुनाव सिर पर लदे हुए थे. चुनाव के बीच में किसी पुलिस आयुक्त को हटाकर नए आईपीएस अधिकारी को पुलिस कमिश्नर की बागडोर सौंप देना आग से खेलने के समान भी साबित हो सकता था. हालांकि, अमूल्य पटनायक का वो सेवा-विस्तार उनके गले की हड्डी साबित हुआ. उन्हें सेवा विस्तार मिलते ही कहिए या फिर उनके सेवा-विस्तार काल में उत्तर पूर्वी दिल्ली जिले में सांप्रदायिक दंगे भड़क गए. उन दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई. सैकड़ों जख्मी हो गए. लिहाजा अमूल्य पटनायक के उस पुलिस कमिश्नरी सेवा-विस्तार काल से हलकान हिंदुस्तानी हुकूमत ने रातों रात, दंगों और दंगाईयों को काबू करने की कमान सौंप दी, एस.एन. श्रीवास्तव को. श्रीवास्तव उन दिनों केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) में स्पेशल डायरेक्टर के पद पर तैनात थे.
मार खाता कानून और खामोश हथियारबंद खाकी
दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों में हुई अमूल्य पटनायक और उनकी मातहत पुलिस की नाकामी से बेहाल हुकूमत ने, एस एन श्रीवास्तव को स्पेशल पुलिस कमिश्नर (दिल्ली पुलिस में) बना दिया. बाद में उन्हें कार्यवाहक पुलिस कमिश्नर भी बनाया गया. यह अलग बात है कि एस.एन. श्रीवास्तव के कार्यवाहक पुलिस आयुक्त के कार्यकाल में 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में किसान आंदोलन और ट्रैक्टर रैली की आड़ में, उपद्रवियों ने दिल्ली की सड़कों पर और लाल किला में 'तांडव' कर डाला. उस दिन हथियारबंद दिल्ली पुलिस 'खामोशी' अख्तियार कर रैली में शामिल उपद्रवियों से मार खाकर 'लहू-लुहान' होती रही. बाद में कार्यवाहक पुलिस आयुक्त सच्चिदानंद श्रीवास्तव ने उस घटना के दौरान उपद्रवियों को हाथों पुलिस-कानून के चुपचाप पिटते रहने पर बाकायदा खुले मंच से अपनी सफाई भी पेश की. यह कहकर कि, "उस दिन (लाल किला हिंसा और किसान ट्रैक्टर रैली वाले दिन) अगर हमारे (दिल्ली पुलिस) हथियारों के मुंह खुल जाते तो तबाही मच जाती. इसलिए हमने खामोशी अख्तियार कर ली. अब हम (लाल किला हिंसा के बाद) कानूनी तौर पर उपद्रवियों को सबक सिखाएंगे." उस घटना में भले ही दिल्ली पुलिस, अर्धसैनिक बलों के हथियारबंद 700-800 जवान-अफसर हिंसा के शिकार हो गए हों. उस सब्र के इनाम के बतौर 1985 बैच और अग्मूटी कैडर के आईपीएस व दिल्ली पुलिस के कार्यवाहक पुलिस आयुक्त एस एन श्रीवास्तव को, उनके रिटायरमेंट से चंद दिन पहले मिला भी. हुकूमत ने उन्हें रिटायरमेंट से ऐन पहले दिल्ली का "फुल-फ्लैश" (नियमित) कमिश्नर बना दिया.
हुकूमत में सबसे ऊपर हुकूम की तामीली
पुलिस कमिश्नरों की कुर्सी पर आईपीएस अफसरों की इस "उठक-बैठक" में सबसे ज्यादा उलझन भरी कहानी रही बालाजी श्रीवास्तव की. अग्मूटी कैडर 1988 बैच के आईपीएस अफसर बालाजी श्रीवास्तव को दिल्ली पुलिस के कार्यवाहक पुलिस आयुक्त का चार्ज एस.एन. श्रीवास्तव ने सौंपा था. तब अटकलें लगाई जाने लगी थीं कि, हो न हो हिंदुस्तानी हुकूमत एस.एन. श्रीवास्तव की तरह ही, अब दिल्ली पुलिस कमिश्नर का 'चाबुक' अस्थाई रूप से ही क्यों न सही, शायद बालाजी श्रीवास्तव के हाथों में ही लंबे समय तक थमाए रहेगी. हुआ मगर इसके एकदम विपरीत. सबकी सौ-सौ सोच पर चंद दिन बाद ही सरकार ने विराम लगा दिया. एक दिन अचानक गुजरात कैडर के आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को दिल्ली का पुलिस कमिश्नर बनाकर. वो भी उनके (राकेश अस्थाना) आईपीएस सर्विस से रिटायर होने के ठीक तीन-चार दिन पहले ही दिल्ली पुलिस कमिश्नर की बागडोर थमाकर. राकेश अस्थाना ने दिल्ली पुलिस आयुक्त का चार्च क्या संभाला? महकमे में और देश की आईपीएस लॉबी में जितने मुंह उससे ज्यादा बातें-चर्चाएं और बे-सिर-पैर की "अटकलें" सुनाई दिखाई देने लगीं. दिल्ली सरकार ने भी राकेश अस्थाना की नियुक्ति पर दो-तीन दिन शोर-शराबा हो-हल्ला मचाया. कुछ लोग इस नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचे. भले ही इस सबका अभी तक नतीजा क्यों न 'सिफर' ही रहा हो.
अंदर-बाहर का चक्कर छोड़कर काम देखिए
हां, यह जरूर है कि जबसे राकेश अस्थाना ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर की कुर्सी संभाली है, वे अपने काम को अंजाम देने के नए नए स्टाइल कहिए या फिर तरीकों, से महकमे में चर्चा का विषय जरूर बने हुए हैं. राकेश अस्थाना चर्चा में बने हुए हैं महज चंद दिन की दिल्ली पुलिस कमिश्नरी की नौकरी में उठाए गए अपने चंद कदमों से. उन कदमों से जिन पर अमल करने की बात छोड़िए, अब से पहले करीब 43 साल में दिल्ली पुलिस की कमिश्नरी करके जा चुके करीब 23 पुलिस कमिश्नरों में से किसी ने भी नहीं सोचा था. अमल में लाने की बात तो बहुत दूर की है. बेशक राकेश अस्थाना अब से पहले (दिल्ली पुलिस के एक साल के लिए कमिश्नर बनने से पहले) केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) में अपने "बॉस" रहे और कभी, दिल्ली के तत्कालीन पुलिस आयुक्त आलोक वर्मा से खुले मैदान में दो-दो हाथ करने के लिए चर्चाओं में रहे हों. इन दिनों मगर उनके चर्चाओं में रहने की वजह कुछ और ही है. चर्चाओं में भी आईपीएस अफसरान की जमात की हद में ही नहीं. वरन् दिल्ली पुलिस के अदना से समझे जाने वाले मगर हकीकत में हमेशा पुलिस की मजबूत रीढ़ साबित होने वाले सिपाही-हवलदारों के बीच में भी चर्चित हैं. बाहरी कैडर के आईपीएस अधिकारी होने के बाद भी राकेश अस्थाना ने पुलिस कमिश्नर बनते ही जो कदम 'दिल्ली पुलिस कर्मचारी वेलफेयर' के लिए उठाए हैं, उनके इस कदम ने हवलदार-सिपाहियों को उनका कायल कर दिया है.
इसलिए 'साहब' को सिपाहियों का 'सैल्यूट'
इन दिनों आप खुद दिल्ली के किसी भी थाने-चौकी में पहुंच कर आजमा (क्रॉस चैक) सकते हैं. यह बात कि आखिर क्यों मुरीद हो चुके हैं दिल्ली पुलिस के हवलदार सिपाही अपने नए-नए बने पुलिस कमिश्नर और चर्चित आईपीएस अफसर राकेश अस्थाना के. दिल्ली पुलिस के हवलदार सिपाहियों से बात करने पर पता चलता है कि, अपने डीसीपी (पुलिस उपायुक्त) तक के जिन हवलदार सिपाहियों को दर्शन अक्सर दुर्लभ ही रहते थे. आज मौजूदा पुलिस आयुक्त "ओपन-हाउस" में खुद महकमे के हवलदार सिपाहियों को बुला-बुलाकर उनसे आमने-सामने मिलकर, उनकी समस्या जान-पूछ रहे हैं. अब से पहले रह चुके किसी पुलिस कमिश्नर से ऐसे "ओपन-हाउस" की उम्मीद तो दूर की कौड़ी रही. दिल्ली पुलिस के सिपाही-हवलदारों ने अपनी पूरी नौकरी में कभी इसकी कल्पना तक न की थी. कई हवलदार सिपाही तो दिल्ली पुलिस में ऐसे भी हैं जो दबी जुबान कहते देखे-सुने जा सकते हैं कि उन्होंने, "अपनी लंबी नौकरी में तमाम 'गॉल्फ-वन' साहब (दिल्ली पुलिस कमिश्नर का विभागीय कॉल-साइन) को सिर्फ टीवी (टेलीवीजन) पर ही देखा था. महकमे में राकेश अस्थाना के चर्चाओ में आने की दूसरी वजह है उन्होंने घोषणा की है कि, आने वाले कुछ ही दिनों में दिल्ली के थानों में भी ड्यूटी की तीन-तीन शिफ्टें लगेंगी. ताकि एक ही पुलिस अफसर (एसएचओ इंस्पेक्टर, दारोगा-थानेदार, हवलदार सिपाही) को 24-24 घंटे ड्यूटी न देनी पड़ी. अगर ऐसा हो जाता है तो इससे भी पुलिस कर्मियों को सकून मिलना लाजिमी है. वे भी आम इंसान की तरह अपने परिवार को वक्त दे सकेंगे. जिसके बारे में अब तक जब महकमे के किसी पुलिस कमिश्नर ने ही नहीं सोची थी, तो फिर भला अदना से कर्मचारी की जमात में शामिल भला सिपाही-हवलदार कैसे कल्पना भी करते? दिल्ली के थाने-चौकी में तैनात पुलिस स्टाफ सोचा करता था कि,"सटरडे-संडे" के साप्ताहिक अवकाश की सहूलियत तो मानो जैसे सिर्फ और सिर्फ, हुकूमरानों ने आला-अफसरों के लिए ही छांटकर रखी हो. भला सिपाही-हवलदारों का नसीब इतना बिरला कहां जो वे भी कोई संडे-सटरडे घर में अपनों के बीच बिता सकें.


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