दरअसल, सरकार का कहना है कि कोरोना संकट से व्याप्त अनिश्चितता और इससे जुड़े सभी पक्षों से फीडबैक लेने के बाद ही यह निर्णय लिया गया कि इस बार बारहवीं की परीक्षाएं आयोजित नहीं की जायेंगी। इससे पहले भी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में मंत्रियों और अधिकारियों ने इस मुद्दे पर मंथन किया था। उसके उपरांत भी रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की राय ली गई थी; जिसमें सभी विकल्पों पर विचार-विमर्श किया गया था, जिसमें परीक्षा के ऑनलाइन विकल्प, परीक्षा विद्यार्थियों के स्कूल में ही कराने, परीक्षा केंद्र बढ़ाने तथा परीक्षा की अवधि को कम करने जैसे विकल्पों पर विचार किया गया था। जबकि कुछ पक्षों का मानना था कि बिना वैक्सीन के परीक्षाओं का आयोजन नहीं करना चाहिए। बहरहाल, अब सीबीएसई की परीक्षा रद्द होने के बाद आईसीएसई ने भी बारहवीं की परीक्षा रद्द करने की घोषणा कर दी है। उम्मीद है कि राज्यों के बोर्ड भी इसी तरह के निर्णय लेंगे। कोशिश यही है कि कोरोना संकट के कारण यह दूसरा सत्र भी बाधित न हो। बहरहाल, इस संकट के अन्य विकल्पों से जुड़ी कई समस्याएं सामने आ रही थीं। यदि परीक्षा ऑनलाइन करायी जाती तो उसमें नकल होने की संभावना बढ़ सकती थी। यदि ऑफ वक्त का फैसला जीवन अनमोल, शैक्षिक गुणवत्ता भी जरूरी आखिरकार केंद्र सरकार ने सीबीएसई की बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं को रद्द करने का निर्णय ले ही लिया। निस्संदेह, कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की भयावहता को देखते हुए अभिभावक अपने बच्चों के लिये चिंतित थे। यह चिंता तब और बढ़ी जब खुद शिक्षा मंत्री ही प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई बैठक से पहले कोविड संक्रमण के बाद के प्रभाव के चलते एम्स में भर्ती हो गये। बहरहाल, मौजूदा संकट में यह मुद्दा कितना महत्वपूर्ण हो गया था कि स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता की। उन्होंने बच्चों के जीवन को अनमोल बताते हुए, परीक्षाएं रद्द करने का निर्णय लिया। यह जरूरी भी हो गया था क्योंकि इस मुद्दे पर जमकर राजनीति होने लगी थी। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी से लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक परीक्षा करवाने के मुद्दे को लेकर केंद्र सरकार पर हमलावर थे। वहीं छात्रों के कुछ समूह भी परीक्षा रद्द करवाने को लेकर सोशल मीडिया पर मुहिम चला रहे थे। बहरहाल, प्रधानमंत्री मोदी ने परीक्षा रद्द करने की घोषणा के बाद अधिकारियों को परीक्षा परिणाम तैयार करने को लेकर निर्देश दिये। अधिकारियों से कहा गया है कि परिणाम पूर्णत: निष्पक्ष और समयबद्ध तरीके से तैयार किये जाएं। अब केंद्रीय शिक्षा बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति इससे जुड़े मानदंड तैयार करेगी। संभव है छात्रों के पिछले शैक्षिक प्रदर्शन के आधार पर उनका परीक्षा परिणाम तैयार किया जाये। सरकार की कोशिश होगी कि समय रहते परीक्षा परिणाम घोषित किया जाये ताकि अगले सत्र को शुरू करने में कोई व्यवधान न आये। साथ ही उच्चस्तरीय मीटिंग में यह भी तय किया गया कि यदि गत वर्ष की ही तरह कुछ छात्र परीक्षा में बैठने की इच्छा रखते हैं तो परिस्थिति सामान्य होने पर उन्हें इसका विकल्प उपलब्ध कराया जाये। यद्यपि अभी परीक्षा परिणाम घोषित करने की तिथि का जिक्र नहीं किया गया है।
दरअसल, सरकार का कहना है कि कोरोना संकट से व्याप्त अनिश्चितता और इससे जुड़े सभी पक्षों से फीडबैक लेने के बाद ही यह निर्णय लिया गया कि इस बार बारहवीं की परीक्षाएं आयोजित नहीं की जायेंगी। इससे पहले भी प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में मंत्रियों और अधिकारियों ने इस मुद्दे पर मंथन किया था। उसके उपरांत भी रक्षा मंत्री की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में राज्यों के शिक्षा मंत्रियों की राय ली गई थी; जिसमें सभी विकल्पों पर विचार-विमर्श किया गया था, जिसमें परीक्षा के ऑनलाइन विकल्प, परीक्षा विद्यार्थियों के स्कूल में ही कराने, परीक्षा केंद्र बढ़ाने तथा परीक्षा की अवधि को कम करने जैसे विकल्पों पर विचार किया गया था। जबकि कुछ पक्षों का मानना था कि बिना वैक्सीन के परीक्षाओं का आयोजन नहीं करना चाहिए। बहरहाल, अब सीबीएसई की परीक्षा रद्द होने के बाद आईसीएसई ने भी बारहवीं की परीक्षा रद्द करने की घोषणा कर दी है। उम्मीद है कि राज्यों के बोर्ड भी इसी तरह के निर्णय लेंगे। कोशिश यही है कि कोरोना संकट के कारण यह दूसरा सत्र भी बाधित न हो। बहरहाल, इस संकट के अन्य विकल्पों से जुड़ी कई समस्याएं सामने आ रही थीं। यदि परीक्षा ऑनलाइन करायी जाती तो उसमें नकल होने की संभावना बढ़ सकती थी। यदि ऑफ लाइन करायी जाती तो अभिभावकों की चिंता वाजिब थी। डर था कि कहीं उनके घर के बड़े-बुजुर्ग संक्रमित न हो जायें। लेकिन इस समाधान का एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि जो बच्चे टॉपर होने के लिये साल भर कड़ी मेहनत करते रहे, उन्हें इस फैसले से निराशा जरूर हुई होगी। दरअसल, आगे उच्च शिक्षा में बारहवीं की परीक्षा के ऊंचे स्कोर की दरकार होती है। सभी जगह इन नंबरों का महत्व होता है। इस फैसले से अच्छे अंक लाने की उम्मीद कर रहे मेधावी छात्र-छात्राओं को निराश होना पड़ेगा। लेकिन अच्छी बात यह है कि छात्रों का एक साल खराब होने से बच जायेगा। साथ ही यह भी कि अगला सत्र शुरू करने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। साथ ही स्कूल-कॉलेजों का वातावरण जल्दी से जल्दी सामान्य हो, यह भी उम्मीद रखनी चाहिए।
लाइन करायी जाती तो अभिभावकों की चिंता वाजिब थी। डर था कि कहीं उनके घर के बड़े-बुजुर्ग संक्रमित न हो जायें। लेकिन इस समाधान का एक नकारात्मक पहलू यह भी है कि जो बच्चे टॉपर होने के लिये साल भर कड़ी मेहनत करते रहे, उन्हें इस फैसले से निराशा जरूर हुई होगी। दरअसल, आगे उच्च शिक्षा में बारहवीं की परीक्षा के ऊंचे स्कोर की दरकार होती है। सभी जगह इन नंबरों का महत्व होता है। इस फैसले से अच्छे अंक लाने की उम्मीद कर रहे मेधावी छात्र-छात्राओं को निराश होना पड़ेगा। लेकिन अच्छी बात यह है कि छात्रों का एक साल खराब होने से बच जायेगा। साथ ही यह भी कि अगला सत्र शुरू करने में दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ेगा। साथ ही स्कूल-कॉलेजों का वातावरण जल्दी से जल्दी सामान्य हो, यह भी उम्मीद रखनी चाहिए।