कर्ज, फर्ज और मर्ज

किसी की जिंदगी छोटी हो या बड़ी, वह बहुत से पड़ाव, उठा-पटक और द्वंद्वों से गुजरती है। विकास की भूख, समृद्धि की चाहत, दिखावटी बाजार आदि कारक हमारे जीवन को पुष्पित, पल्लवित, प्रभावित, शोभायमान और कलंकित कर सकते हैं।

Update: 2022-06-11 04:29 GMT

राजेंद्र प्रसाद: किसी की जिंदगी छोटी हो या बड़ी, वह बहुत से पड़ाव, उठा-पटक और द्वंद्वों से गुजरती है। विकास की भूख, समृद्धि की चाहत, दिखावटी बाजार आदि कारक हमारे जीवन को पुष्पित, पल्लवित, प्रभावित, शोभायमान और कलंकित कर सकते हैं। इनमें एक बहुत बड़ा विषय कर्ज या ऋण से जुड़ा होता है।

कर्ज व्यापक अर्थ को ध्वनित करता है, जो न केवल आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा है, बल्कि जीवन के बहुत से अंग-उपांगों में अपना दम-खम दिखाता है। बहुत से ऐसे कर्ज हैं, जो हमें अपनी जिंदगी में चुकाने होते हैं, जैसे देश, मां-बाप, आपसी रिश्तों के अलावा मौलिक फर्ज से जोड़ कर भी देखे जाते हैं।

यकीनन कर्ज का विलक्षण रूप हमें बोझ दिखाता है, स्वार्थपूर्ति करता है, स्वाभिमान की ललक जगाता है और कर्तव्य के लिए उकसाता है। काफी लोग कर्ज को मर्ज कहते हैं। निस्संदेह ऋण जंजाल लुभावना है, पर उससे पिंड छुटाना सरल नहीं। सिद्धांतत: हमें सीमित संसाधनों से जीवन चलाना चाहिए। पर तेजी से बदलती आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों से वर्तमान में कर्ज लेकर समृद्ध होना एक प्रचलन में तब्दील हुआ है।

बहुत से बैंक, वित्तीय संस्थाएं और निजी तौर पर साहूकार और सूद पर देने वाले अपनी-अपनी शर्तों पर कर्ज देते हैं। आज के युग में लगभग हर व्यक्ति कुछ न कुछ कर्ज में है या लेने की जुगत में है। ऐसे में आमदनी का बड़ा हिस्सा कर्ज उतारने के बोझ से आदमी मानसिक रूप से खुद को दबा महसूस करता है। कर्जदार हर समय उलझा रहता है कि वह लिए गए कर्ज को कैसे और कब तक चुकाएगा।

औकात से बड़े दिखावे इंसान को कर्ज में डुबोते हैं। इंसान कर्ज के लिए अपने सम्मान को गिरवी रखता है। निस्संदेह उधार वह मेहमान है, जो आने के बाद जाने का नाम नहीं लेता। कुछ लोग झूठे-सच्चे वचन देकर कर्ज लेते हैं, लेकिन अफसोस वे वापस नहीं करते।

किसी ने कहा है कि व्यक्ति का व्यवहार देखना हो तो सम्मान दो, आदत देखनी है तो स्वतंत्र कर दो और नीयत देखनी हो तो कर्ज दे दो। जिंदगी की खासियत है कि इसमें वे कर्ज भी चुकाने पड़ते हैं जो हमने नहीं लिए। कर्ज भी अजीब होता है, अमीर पर चढ़ जाए तो देश छोड़ देता है और गरीब पर चढ़ जाए तो शरीर भी छोड़ सकता है। किसी को दुख देना भी एक कर्ज है, जो किसी के हाथों आपको चुकाने के लिए मिलेगा।

मौजूदा परिवेश में विकास और भावी योजनाओं की समृद्धि के लिए कर्ज जरूरी भी होते हैं। यथासंभव दूसरों के आगे हाथ नहीं पसारना चाहिए। अगर किसी से मजबूरन उधार लें तो समय पर चुकाने की नीयत होनी चाहिए, ताकि देने वाले का विश्वास आप पर और अन्य पर बढ़े।

ऐसी मान्यता है कि लिखत-पढ़त करके लिया कर्ज अमर होता है। एक छोटा-सा कर्ज किसी को देनदार बनाता है, एक बड़ा कर्ज उसे शत्रु बनाता है। ये ऐसा दानव है, जो हमें धीरे-धीरे खून चूस कर मारता है। इससे आशाहीन, निराशावादी और अवसाद का शिकार हो सकते हैं। कर्ज आजाद आदमी को गुलाम बना देता है। बात कड़वी जरूर है, पर सच्ची है कि उधार दीजिए सोच-समझ कर क्योंकि अपने ही पैसे मांगने पड़ते हैं भिखारी बन कर और कर्जदार सेठ बनकर अगली से अगली तारीख देकर अपना फर्ज निभाता जाता है।

सामाजिक रिश्तों में सदा उनके कर्जदार और वफादार रहिए, जो आपके लिए व्यस्तता के बावजूद खुद वक्त निकालते हैं, किसी भी तरह मदद करते या सहयोग देते हैं। क्योंकि अंजाम की खबर तो कर्ण को भी थी, पर बात दोस्ती के कर्ज की थी। जिम्मेदारी न निभाने की वजह से अक्सर उधार और मित्र दोनों कहीं खो जाते हैं।

झूठ वह कर्ज है, जो जिसका क्षणिक सुख पाओ, पर जिंदगी भर चुकाते रहो। समाज में बढ़ती ऋण की प्रवृत्ति भौतिकतावादी, विलासपूर्ण एवं बनावटी प्रतिष्ठा का जीवन जीने की आदत का परिणाम है, जो हमें अशांति की ओर ले जाते हैं। मनीषियों के मुताबिक जो परिवार उधार और ऋण पर आश्रित रहता है, उस घर में आत्मनिर्भरता कभी नहीं आ सकती।

कभी-कभी हम पैसों के अभाव या गलत वित्त नियोजन के कारण ऋणमुक्त नहीं हो पाते। उसे समय रहते नहीं चुकाया तो वह लाइलाज रोग बन जाता है। बहुधा ऋण लेना मजबूरी नहीं, एक आदत का परिणाम है। हम जिंदगी में मकान, दुकान, प्लाट आदि की किस्तें तो याद रखते हैं, लेकिन कर्ज तो धर्म, मां-बाप और अन्य रिश्तों का भी है।

कर्ज का दूसरा रूप फर्ज भी है और कहा गया है कि मात-पिता वह हस्ती हैं, जिनके पसीने की एक-एक बूंद का कर्ज भी औलाद नहीं उतार सकती। यादों का भी अपना कर्ज होता है, जो कभी खत्म नहीं होता। वजूद ढल रहा होता है, फिर भी सूद कम नहीं होता। जिंदगी में हम अपने कर्ज, फर्ज और मर्ज को कभी न भूलें।


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