सिजेरियन प्रसव का खतरनाक रुझान : तकनीक से मुश्किल हुई आसान, पर स्वास्थ्य को पहुंच रहा नुकसान
सक्षम महिलाओं को कोई सिजेरियन प्रसव के लिए बाध्य न कर सके।
विज्ञान की उन्नति ने मानव जीवन को बहुत आसान बना दिया है। पहले जहां गंभीर बीमारियों, खासकर ऑपरेशन जैसे मामलों का इलाज मुश्किल माना जाता था, वहीं आज तकनीक के माध्यम से सात समंदर पार बैठे डॉक्टर आसानी से मरीजों का ऑपरेशन कर लेते हैं। आज भी प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म देना ऑपरेशन की अपेक्षा सही माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यह रुझान बदलता नजर आ रहा है।
ऐसा लगता है, मानो आज मात्र 'सिजेरियन डिलीवरी' अर्थात 'सी सेक्शन' ही प्रसव का एक विकल्प रह गया है, क्योंकि बड़े पैमाने पर डॉक्टर प्राकृतिक प्रसव की जगह सिजेरियन डिलीवरी की सलाह देते हैं। हमारे देश में दिन-प्रतिदिन 'सिजेरियन प्रसव' यानी सी सेक्शन के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं और जम्मू-कश्मीर उत्तर भारत में इस मामले में पहले पायदान पर पहुंचता नजर आ रहा है।
इस केंद्र शासित प्रदेश में सिजेरियन प्रसव का अनुपात 41.7 प्रतिशत तक पहुंच गया है, जबकि दूसरे स्थान पर राजस्थान है, जहां 10.4 प्रतिशत सी सेक्शन के मामले सामने आए हैं। यानी जम्मू-कश्मीर और राजस्थान के बीच लगभग 30 फीसदी का बड़ा अंतर है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार, सी सेक्शन प्रसव के मामले 10-15 प्रतिशत से अधिक नहीं होने चाहिए, जबकि इसी की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, 26 प्रतिशत मामलों में प्रसव पीड़ा शुरू होने से पहले ही सी सेक्शन प्रसव करा दिया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, अगर 10-15 प्रतिशत से अधिक सी सेक्शन प्रसव के मामले हों, तो यह एक प्रकार से खतरे का संकेत है। मगनाड गांव जम्मू डिवीजन के जिला पुंछ से मात्र छह किलोमीटर की दूरी पर है, जहां की आबादी लगभग 5,000 से कुछ अधिक है। इस पहाड़ी गांव की लगभग सभी महिलाएं खेतों में काम करती हैं और माल-मवेशी की देखभाल की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधे पर है।
लेकिन बच्चे को जन्म देने के समय डॉक्टर किसी भी तरह की स्वास्थ्यगत जटिलता न होने के बावजूद हर स्त्री को सिजेरियन प्रसव की सलाह देते हैं। पिछले दो से तीन वर्षों मे इस गांव की तकरीबन हर दूसरी महिला ने सिजेरियन डिलीवरी के माध्यम से ही बच्चे को जन्म दिया है। क्या मात्र सी सेक्शन ही बच्चे को जन्म देने का विकल्प रह गया है?
क्या हर महिला को कोई न कोई ऐसी जटिल समस्या है, जिससे वह प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म देने में सक्षम नहीं हो सकती है? यदि ऑपरेशन ही सुरक्षित प्रसव का विकल्प बन जाए, तो यह जानना भी ज़रूरी है कि जिन महिलाओं के ऑपरेशन हुए हैं, उन्हें शारीरिक रूप से किस प्रकार के फायदे या नुकसान हुए हैं? भारती वर्मा ने सिजेरियन डिलीवरी के माध्यम से बच्चे को जन्म दिया है।
उनका कहना है कि ऑपरेशन से मुझे कोई लाभ तो नहीं हुआ, परंतु नुकसान जरूर हुआ है। ऑपरेशन के दो हफ्तों तक तो सबकुछ ठीक रहा, उसके बाद से पेट में टांके की जगह से सुराख हो जाने पर मुझे कई बार डॉक्टर के चक्कर काटने पड़े और कम से कम बीस हजार रुपये की दवाइयां खानी पड़ीं। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के आठ महीनों बाद भी वह पूरी तरह स्वस्थ महसूस नहीं करती।
इस तरह की शिकायत कई महिलाओं ने की। इस संबंध में पूछने पर स्थानीय श्री महाराजा सुखदेव सिंह हॉस्पिटल, पुंछ के डॉक्टरों ने कुछ भी बोलने से मना कर दिया। महिला स्वास्थ्य से जुड़ी वेबसाइट को खंगालने पर सिजेरियन प्रसव के तीन महत्वपूर्ण कारण सामने आते हैं। पहला-मोटापा, दूसरा-जीवन-शैली और तीसरा-हर दूसरी या तीसरी महिला में थॉयराइड, यूरिक समस्या और मधुमेह जैसी समस्याएं मिलने लगी हैं, जो सामान्य प्रसव के समय संकट पैदा कर सकती हैं।
यही वजह है कि डॉक्टर कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। लेकिन सवाल है कि जिन महिलाओं में ऐसी कोई जटिलता नहीं है, उनका प्रसव भी क्यों सिजेरियन डिलीवरी से कराया जाता है? इस पर सरकार को एक ऐसी ठोस कार्यनीति बनाने की जरूरत है, जिससे प्राकृतिक रूप से बच्चे को जन्म देने में सक्षम महिलाओं को कोई सिजेरियन प्रसव के लिए बाध्य न कर सके।
सोर्स: अमर उजाला