भारतीय हित की चिंता?

बाइडेन की असल चिंता अमेरिकी रणनीति में पेश आई दिक्कतें हैँ

Update: 2022-04-13 07:17 GMT
By NI Editorial
बाइडेन की असल चिंता अमेरिकी रणनीति में पेश आई दिक्कतें हैँ। उन्होंने मोदी से साफ कहा कि भारत के रूस से तेल का आयात बढ़ाने से यूक्रेन युद्ध के खिलाफ उठाए जा रहे अमेरिकी कदमों में बाधा आ सकती है। यह बात सच है। रूस के खिलाफ अमेरिकी लामबंदी को भारत के रुख से झटका लगा है।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कहा कि रूस से तेल खरीदना भारत के हित में नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से इस पर स्वाभाविक प्रतिक्रिया यह होनी चाहिए थी कि भारत का हित कौन बेहतर समझता है- भारत सरकार या अमेरिका? सार्वजनिक बयानों से जो जानकारी सामने आई है, उससे यह मालूम नहीं हो सका है कि मोदी ने इस पर सचमुच क्या कहा। बहरहाल, बाइडेन की असल चिंता भारत का हित नहीं, बल्कि अमेरिकी रणनीति में पेश आई दिक्कतें हैँ। उन्होंने मोदी से साफ कहा कि भारत के रूस से तेल का आयात बढ़ाने से यूक्रेन युद्ध के खिलाफ उठाए जा रहे अमेरिकी कदमों में बाधा आ सकती है। यह बात सच है। दरअसल, रूस के खिलाफ अमेरिकी लामबंदी को जितना झटका भारत के रुख से लगा है, उतना किसी और देश की वजह से नहीं पहुंचा है। आखिर भारत एक बड़ा देश है। यूरेशिया में वह बड़े भूभाग वाला महत्त्वपूर्ण देश है। जिस समय रूस और चीन ने अपनी एक मजबूत धुरी बना ली है, भारत का रुख और अहम हो जाता है। भारत प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस धुरी से सहयोग जारी रखता है, तो उससे महाशक्ति के रूप मे उभरते और चीन और अभी भी महाशक्ति की हैसियत रखने वाले रूस को नियंत्रित करने की अमेरिकी रणनीति के सफल होने की संभावना बहुत कमजोर हो जाएगी।
यही वजह है कि जब से यूक्रेन मामले में भारत ने अमेरिका के मनमाफिक रुख नहीं लिया, भारत आने वाले अमेरिकी अधिकारियों की कड़ी लगी रही है। आखिरकार बाइडेन ने खुद मोर्चा संभाला। अब ये देखने की बात होगी कि सोमवार को हुई इस शिखर वार्ता से भारत के रुख में असल में कितना बदलाव आता है। यह अवश्य है कि इस मसले पर भारत सफाई देने की मुद्रा में नजर आता है। वह रूस से अपने संबंध को किसी नीतिगत सोच के हिस्से के रूप में नहीं, बल्कि अपनी मजबूरी के रूप में पेश करता दिखता है। कोशिश संभवतः यह है कि 'राष्ट्र हित' में भारत को दोनों पक्षों के साथ संपर्क और संबंध रखने की गुंजाइश निकल आए। लेकिन दुनिया में जिस तेजी से ध्रुवीकरण हो रहा है, उसके बीच ये गुंजाइश अगर अभी है भी, तो लंबे समय तक जारी नहीं रह पाएगी। इसलिए जरूरत इस बात की है कि भारत अपने रुख को विदेश नीति को स्पष्ट दृष्टि के साथ पेश करे।
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