देर आए दुरुस्त आए, अब सुप्रीम कोर्ट लेगा दल बदल कानून की कमियों का संज्ञान

दल बदल कानून की समीक्षा, जिसकी जरूरत एक लम्बे अर्से से महसूस की जा रही थी, अब होना तय है

Update: 2022-04-24 06:49 GMT
अजय झा |  
दल बदल कानून (Anti Defection Law) की समीक्षा, जिसकी जरूरत एक लम्बे अर्से से महसूस की जा रही थी, अब होना तय है. शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गोवा (Goa Politics) कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गिरीश चोदंकर की अपील पर सुनवाई करने की हामी भर दी. चोदंकर ने बॉम्बे हाई कोर्ट के गोवा बेंच द्वारा उनके अपील को ख़ारिज करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. अब इस मामले में सुनवाई नवम्बर में होगी. मामला 2019 का है. मनोहर पर्रीकर के निधन के बाद गोवा में भारतीय जनता पार्टी की डगमगाती सरकार को बल देने के लिए कांग्रेस पार्टी के 10 और महाराष्ट्रवादी गोमंतक के 2 विधायकों ने बीजेपी में शामिल होने का निर्णय लिया था. बीजेपी की सरकार तो बच गयी, पर इस कारण गोवा में एक राजनीतिक बवाल शुरू हो गया.
पहले स्पीकर ने घुमाया
दोनों दलों ने इन दल बदलू विधायकों की सदस्यता रद्द करने के लिए विधानसभा स्पीकर के पास गुहार लगायी. चूंकि विधानसभा अध्यक्ष सत्ताधारी पार्टी का ही होता है,और जैसी की एक प्रथा बन गयी है कि ऐसे मामलों को तब तक टालने की कोशिश की जाती है जब तक अगला चुनाव ना आ जाए. गोवा विधानसभा के तात्कालिक अध्यक्ष राजेश पाटनेकर ने भी इस विषय पर अपना फैसला लगभग दो वर्षों के बाद, और हाई कोर्ट में दबाव के कारण दिया और अर्जी रद्द कर दी. फलस्वरूप कांग्रेस पार्टी और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी ने इसके फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट के गोवा बेंच में याचिका दाखिल की जिस पर फैसला गोवा में मतदान होने के बाद आया. हाई कोर्ट ने भी माना कि दो-तिहाई विधायकों द्वारा किया गया दल बदल गैरकानूनी नहीं है. हाई कोर्ट के फैसले को जहां कांग्रेस पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की घोषणा की, महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी ने कहा कि संसाधनों की कमी के कारण वह सुप्रीम कोर्ट में केस नहीं लड़ेगी. अब चूंकि महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी गोवा में बीजेपी की सरकार में शामिल हो गई है, उसकी अब इस केस में कोई रुचि नहीं है.
अब इस केस की क्या उपयोगिता है
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने भी यह सवाल उठाया कि अब इस केस की क्या उपयोगिता है, जबकि पिछला विधानसभा भंग हो चूका है. कांग्रेस पार्टी के तरफ से इस केस की वकालत पार्टी के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम कर रहे हैं. चिदंबरम गोवा चुनाव में कांग्रेस पार्टी के चीफ आब्जर्वर थे. चिदंबरम की दलील थी कि भविष्य के लिए यह जरूरी है कि दल बदल कानून की समीक्षा की जाए, क्योकि छोटे राज्यों में जहां विधानसभा सदस्यों की संख्या कम होती है, इस तरह का दल बदल अक्सर देखा जाता है. चिदंबरम की दलील सुनने के बाद ्सुप्रीम कोर्ट ने कहा की अब इस केस में सिर्फ अकादमिक इंट्रेस्ट ही बचा है और नवम्बर की तारीख दे दी.
पर सुप्रीम कोर्ट ने चिदंबरम से एक ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब देना उनके लिए मुश्किल हो गया. कोर्ट ने पूछा कि ऐसे नेताओं को आप टिकट देते ही क्यों हैं जो बाद में दूसरे दलों में शामिल हो जाते हैं. इसके उत्तर में चिदंबरम ने कहा कि गोवा में ऐसे नेता हैं ही नहीं जो पूर्व में कभी ना कभी किसी और दल के सदस्य रहे हों. गोवा बीजेपी में ऐसे कई नेता हैं जो शुरू से ही बीजेपी से जुड़े रहे हैं और वर्तमान मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत भी ऐसे एक नेता हैं. पर उनके मंत्रीमंडल में कई ऐसे नेता हैं जो पूर्व में कांग्रेस पार्टी के सदस्य थे. रही बात कांग्रेस पार्टी की तो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष माइकल लोबो अभी जनवरी तक बीजेपी के सदस्य थे और पार्टी के सबसे बड़े नेता दिगम्बर कामत भी कभी बीजेपी में होते थे.
दल बदल कानून का छोटे राज्यों में दुरुपयोग
गोवा में 2017 में चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा चुनी गयी थी जिसमे 40 सदस्यों के विधानसभा में कांग्रेस के 17 और बीजेपी के 13 विधायक चुने गए थे. बीजेपी ने दो क्षेत्रीय दलों और निर्दलीय विधायकों के समर्थन से सरकार बनाई और फिर कांग्रेस के विधायकों को तोड़ने का सिलसिला शुरू हो गया. शुरू में कुछ विधायकों ने बीजेपी में शामिल होने के बाद विधानसभा से त्यागपत्र दे कर दुबारा चुनाव लड़ा, पर 2019 में कांग्रेस के बाकी बचे 13 में से 10 विधायक और महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के तीन में से दो विधायक बीजेपी में शामिल हो गए जो दल बदल नियमों के तहत था.
दल बदल कानून में अभी भी कई ऐसे प्रावधान हैं जिसका फायदा छोटे राज्यों में दिखता है. ऐसे राज्यों में विधायकों को पैसों या पद के बदले में तोड़ना आसान होता है. 2017 में बीजेपी ने गोवा और मणिपुर में इसी का फायदा उठाते हुए और कांगेस पार्टी के विधायकों को तोड़ कर सरकार का गठन किया था. दो और राज्य हैं मध्यप्रदेश और कर्णाटक जहां बीजेपी चुनाव नहीं जीती थी पर अब सरकार बीजेपी की है. इन दोनों राज्यों में भी कांग्रेस पार्टी के विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. कांग्रेस पार्टी की इस केस में रुचि इसी बात से समझी जा सकती है क्योकि अगले डेढ़ वर्षों में 12 राज्यों में विधानसभा चुनाव होना है और पार्टी को डर है कि इन राज्यों में भी अगर किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला तो बीजेपी कांग्रेस पार्टी के विधायकों को टारगेट करेगी.
कांग्रेस के शासन काल में भी होती रही खरीद फरोख्त
बीजेपी को ही इसका दोष नहीं दिया जा सकता है. पूर्व में कांग्रेस पार्टी भी विधायकों और सांसदों का खरीद फरोख्त करती थी. केंद्र में पी वी नरसिम्हा राव हो या हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा, उन पर भी छोटे दलों के सांसदों और विधायकों को पैसों का लालच दे कर तोड़ने का आरोप लगा था.
सुप्रीम कोर्ट का सवाल कि ऐसे नेताओं को टिकट ही क्यों दी जाती है, वाजिब है. चिदंबरम ने यह तो कह दिया कि गोवा में ऐसे नेता हैं ही नहीं जो पूर्व में दल बदल में शामिल ना रहे हों, पर वह एक महत्वपूर्ण बात टाल गए कि चुनावों में हरेक पार्टी ऐसे नेताओं को ही टिकट देती है जिसके जीतने की सम्भावना हो, भले वह किसी और पार्टी को छोड़ पर सिर्फ चुनाव लड़ने के लिए उस दल में शामिल हुआ हो.
चूंकि बीजेपी को अब दल बदल कानून के कमियों का ज्यादा लाभ मिल रहा है, इसकी उम्मीद तो की ही नहीं जा सकती है कि केंद्र सरकार दल बदल कानून में संशोधन के बारे में सोचे भी. लिहाजा अब सुप्रीम कोर्ट को ही इस कानून की समीक्षा करनी होगी. सुप्रीम कोर्ट के पास अधिकार है कि वह सरकार को किसी कानून में संशोधन करने को कहे. उम्मीद यही की जानी चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचेगी और जनतंत्र में हित में फैसला देगी.
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