ठंड की तल्खी: तंत्र से संवेदनशील व्यवहार की उम्मीद
अब इसे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का असर कहें या मौसम की तल्खी कि रक्त जमाती सर्दी ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अब इसे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों का असर कहें या मौसम की तल्खी कि रक्त जमाती सर्दी ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। पहाड़ी इलाके बर्फ की सफेद चादर में लिपटे हैं, पारा ऋणात्मक हुआ है, वहीं मैदानी इलाके भीषण शीतलहर की चपेट में हैं। पारा लुढ़कने की स्थिति में मैदानी इलाके कांप रहे हैं, लेकिन सबसे ज्यादा गरीब तबके पर इसकी मार पड़ रही है। मौसम विभाग के मानकों में मैदानी इलाकों की भीषण ठंड का निर्धारण न्यूनतम तापमान के दस डिग्री से नीचे जाने तथा अधिकतम तापमान में साढ़े छह डिग्री सेल्सियस तक की गिरावट दर्ज होने पर होता है। उत्तर भारत में दिल्ली, हरियाणा-पंजाब तथा राजस्थान के कुछ इलाकों में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। दरअसल, तापमान में यह असमान्य गिरावट सेहत के लिये घातक मानी जाती है, जिसके अनुरूप शरीर को ढलने में वक्त लगता है। कोरोना संकट में यह स्थिति चिंताजनक है। साथ ही अन्य वायरसों के प्रसार का खतरा भी बढ़ जाता है। दरअसल, तापमान में अप्रत्याशित गिरावट से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से वायरसों का संक्रमण शरीर में तेजी से होता है। ऐसे में जरूरी हो जाता है कि बूढ़े-बुजर्गों तथा बीमार लोगों का खास ध्यान रखा जाये। विषम स्थिति में एक अभिभावक होने के नाते लंबे समय से खुले आसमान तले आंदोलनरत किसानों के बारे में भी सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए।