अब शांति को चुनें
यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जारी है। न तो इससे हो रहे जान-माल के नुकसान में कोई कमी आ रही है और न ही रूस के हमलों के आगे यूक्रेन झुकने को तैयार है। बावजूद इसके, दोनों पक्षों के बीच बातचीत के दौरान कुछ सहमतियां उभरने के जो संकेत मिल रहे हैं
नवभारत टाइम्स: यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध जारी है। न तो इससे हो रहे जान-माल के नुकसान में कोई कमी आ रही है और न ही रूस के हमलों के आगे यूक्रेन झुकने को तैयार है। बावजूद इसके, दोनों पक्षों के बीच बातचीत के दौरान कुछ सहमतियां उभरने के जो संकेत मिल रहे हैं, वे काफी महत्वपूर्ण हैं। इस मामले की एक अच्छी बात यह है कि दोनों पक्षों ने युद्ध के दौरान भी आपस में बातचीत की प्रक्रिया को बंद नहीं किया। हालांकि शुरू में यह बातचीत महज औपचारिकता ही थी, लेकिन अब आई खबरों में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने 15 सूत्री समझौते के एक प्रारूप पर समग्रता में बातचीत की है और उनमें से कुछ बिंदुओं पर सहमति के आसार भी बनते दिखाई दे रहे हैं। दोनों देशों ने बातचीत में कुछ पॉजिटिव डिवेलपमेंट की बात भी मानी है।
कहा जा रहा है कि अगर यूक्रेन न्यूट्रल रहने का भरोसा दिलाए तो रूस अपनी सेना वापस ले जाने को तैयार हो सकता है। चूंकि यूक्रेन के राष्ट्रपति पहले ही नाटो की सदस्यता पर जोर न देने की बात कह चुके हैं, इसलिए दुश्मन के आगे समर्पण कर देने का आरोप आमंत्रित किए बगैर वह इस बारे में अपनी सहमति दे सकते हैं। रूसी राष्ट्रपति पूतिन भी कह चुके हैं कि उनकी चिंता अपने सुरक्षा हितों को लेकर है और यूक्रेन पर कब्जा करने का उनका कोई इरादा नहीं है।
इस तरह दोनों पक्षों के बीच कम से कम सैद्धांतिक तौर पर वह जमीन बची हुई है, जिस पर सहमति की दीवार खड़ी की जा सके। लेकिन युद्ध के दौरान दुश्मन को नुकसान पहुंचाने संबंधी दावों की ही तरह शांति के वादों को भी एक सीमा से ज्यादा अहमियत नहीं दी जा सकती। कब स्थितियां क्या मोड़ लें और कौन अपने बयानों से कितना पलट जाए, यह तय नहीं होता। इसलिए दोनों पक्षों के साथ संपर्क बनाए रखने वाले नेताओं की भूमिका इस मोड़ पर काफी महत्वपूर्ण हो जाती है।
यह स्पष्ट है कि अगर यूक्रेन के सामने अस्तित्व का सवाल खड़ा हो गया है तो रूस भी इस युद्ध के चलते संकटों से घिर ही गया है। युद्ध का एक-एक दिन लंबा खिंचना उसकी स्थिति को मुश्किल बनाता जा रहा है। बाहर तो घेरेबंदी बढ़ ही रही है, देश के अंदर से विरोध के स्वर भी मजबूत होते जा रहे हैं। ऐसे में अगर जीत का दावा करते हुए वापस लौटने की कोई सूरत बनती है तो पूतिन के लिए भी उसका फायदा उठा लेने में ही समझदारी है। उम्मीद करनी चाहिए कि इन हालात में रूस शांति की अहमियत समझेगा, जिसके लिए यूक्रेन लगातार अपील करता आया है।