'चलो इंडिया' सिर्फ़ अपील नहीं बल्कि दुनिया में भारत की रहनुमाई का नया नारा है!

ओपिनियन

Update: 2022-05-05 14:23 GMT
इशलिन कौर |  
मेड इन इंडिया से मेक इन इंडिया तक मेक फ़ॉर इंडिया से लेकर चलो इंडिया (Chalo India) तक. ये वो ख़ामोश क्रांति है, जिसमें दुनिया के सामने भारत की रहनुमाई झलकती है. 'चलो इंडिया' सिर्फ़ एक मुहिम नहीं बल्कि कूटनीति की वो कला है, जिसके तहत राष्ट्राध्यक्षों को नहीं बल्कि सारी दुनिया के आम लोगों को हिंदुस्तान की धरती से जोड़ने का संकल्प है. सिर्फ़ 2 साल पहले भारत पर करोनो (Corona) से कराहती तस्वीरें उभर रही थीं. तब दुनिया के सामने भारत की छवि पर स्वास्थ्य सेवाओं के लिहाज़ से धुंध छाने लगी थी, लेकिन किसी ने नहीं सोचा था कि सिर्फ़ 2 साल में भारत की कूटनीति 360 डिग्री टर्न लेगी. प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने इस बार यूरोप यात्रा के तहत डेनमार्क में भारतीय समुदाय के बीच से सारी दुनिया को बहुत बड़ा मंत्र दिया है.
उन्होंने विदेश में रहने वाले भारतीयों से कहा है कि वो हर साल पांच लोगों को भारत दर्शन के लिए भेजें. इस मुहिम को लेकर सबसे बड़ा लक्ष्य यह है कि जब आम विदेशी नागरिक भारत आकर यहां की संस्कृति, अनेकता में एकता के रंग समेटे हुए सामाजिक ढांचे, लोककला, कलाकृतियां, प्राकृतिक जीवनशैली के साथ जुड़ाव और क़ुदरत के साथ क़ुदरत के लिए जीने की कहानियों को ख़ुद जिएंगे तो वो भारत का सकारात्मक प्रचार-प्रसार अपने-अपने देशों में करेंगे. प्रधानमंत्री मोदी की इस मुहिम में आम लोगों पर ज़ोर देने के पीछे की मंशा बहुत ख़ास है. दरअसल, जब कोई राष्ट्राध्यक्ष या राजनीतिक हस्ती किसी देश, समाज या संस्कृति का प्रचार करती है, तो उसके सियासी मायने भी निकाले जाते हैं, लेकिन जब आम लोग उन्हीं बातों का प्रचार करते हैं, तो उसे लोग आसानी से अपना लेते हैं. इससे हिंदुस्तान के सामाजिक ताने-बाने को विश्व पटल पर चमकने का मौक़ा मिलेगा.
विदेशी नागरिकों को चलो इंडिया का नारा दिया
हर साल पांच विदेशी नागरिकों को भारत भेजने का अभियान एक ख़ास कूटनीति की ओर इशारा करता है. प्रधानमंत्री मोदी वोकल फॉर लोकल वाला नारा पिछले साल ही दे चुके हैं. अब विदेशी नागरिकों को चलो इंडिया का नारा देकर वो ग्लोबल को लोकल बनाने वाली कूटनीति को आगे बढ़ा रहे हैं. यानी दुनिया के किसी भी कोने से जब आम विदेशी नागरिक भारत आएंगे तो वो देश के ख़ास और आम लोगों से जुड़ेंगे. इस तरह वो भारतीय समाज और संस्कृति के साथ-साथ स्थानीय व्यापार और निवेश में भी दिलचस्पी लेंगे. यानी विदेश में बैठे लोग ख़ुद भारत आकर यहां के लोगों के साथ नए रिश्तों की डोर में बंधेंगे. ये भारतीय व्यवहार और व्यापार को लोकल से ग्लोबल बनाने की दिशा में बड़ा क़दम है. ऐसा देखा गया है कि जब कोई आपके यहां आता है, तो वो आपसे निजी तौर पर जुड़ने की कोशिश करता है. उस मेहमान के घर जाने के लिए आपका भी रास्ता खुलता है. इससे भारतीय संस्कृति, समाज और व्यापार सबको दुनिया के कोने-कोने में पहुंचने का मौक़ा मिलेगा.
कोरोना संकट ने भारत को बनाया ग्लोबल लीडर.कोरोना काल में जब सारी दुनिया दवा, पीपीई किट, ऑक्सिजन सिलिंडर, इंजेक्शन और कोरोना वैक्सीन के लिए बेहाल थी, तब प्रधानमंत्री मोदी ने दुनिया की ओर मदद का हाथ बढ़ाया. सुपर पावर अमेरिका से लेकर रूस तक और ब्रिटेन से लेकर नेपाल तक चारों दिशाओं में भारत सरकार ने मदद के लिए हाथ बढ़ाए. सारी दुनिया में कोरोना की दवाओं से लेकर टीके तक 'मेड इन इंडिया' का जादू नज़र आया. जिस दौर में लोग अपने नागरिकों की जान बचाने के लिए ख़ुद को सारी दुनिया से अलग-थलग करके बेचैनी में जी रहे थे, उसी दौर में भारत ने कोविड प्रोटोकॉल की सीमाओं के पार जाकर मानवता की मिसाल पेश की. सड़क मार्ग, हवाई मार्ग और समुद्री मार्ग से दुनिया के तमाम देशों की मदद की.
यानी सदी के सबसे मुश्क़िल वक़्त में जब सारी दुनिया ठप पड़ी थी, तब भी भारत की कूटनीति और मानव मदद की नीति अपने मिशन पर थी. इसकी वजह से भारत पिछले तीन साल में सारी दुनिया के सामने एक नायक और मददगार देश के रूप में शिखर पर है. चाहे अफ़गानिस्तान में गृह युद्ध हो या सीरिया में नागरिक संकट का दौर, सभी देशों ने मदद के लिए भारत की ओर देखा और प्रधानमंत्री मोदी की कूटनीति में मानवता का जो बोध था, उसके तहत संकट के समय हमेशा भारत सरकार देश और विदेश के नागरिकों के साथ खड़ी नज़र आई. मोेदी सरकार की यही कूटनीति देश को ग्लोबल लीडर बनाने में मदद कर रही है, जिसके नायक अब आम आदमी भी होंगे.
अब दुनिया भारत देखेगी
प्रधानमंत्री मोदी जब विदेश जाकर वहां रहने वाले भारतीयों से अपील करते हैं कि वो पांच विदेशियों को हर साल भारत भेजें, तो उसमें वसुधैव कुटुम्बकम वाला मंत्र छिपा होता है. जब हम सारी सृष्टि को अपना परिवार मानते हैं, तो हमारे लिए कोई अजनबी नहीं रह जाता. फिर चाहे वो सात समंदर पार रहने वाला कोई विदेशी नागरिक ही क्यों ना हो. वसुधैब कुटुम्बकम की बात प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के तमाम बड़े मंच पर कह चुके हैं. अब उसी ताक़त का एहसास कराने के लिए वो सारी दुनिया के आम नागरिकों को भारत आने का आमंत्रण दे रहे हैं. प्रधानमंत्री इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि किसी से कुछ हासिल करने के लिए पहले आपको उसे कुछ देना होता है. किसी का मेहमान बनने से पहले आपको मेहमाननवाज़ी करनी होगी, ताकि जो आपके घर आने वाला है, उसके जीवन पर आप सकारात्मक प्रभाव छोड़ सकें.
मौजूदा दौर में संपर्क के साधन और यात्रा के संसाधनों की कमी नहीं है, जिसकी वजह से एक-दूसरे से जुड़ने में और संपर्कों को आसानी से आगे बढ़ाने में किसी तरह की अड़चन नहीं रहेगी. ये लोकल बिज़नेस का वो मॉडल है, जो मानव सभ्यता के शुरुआती इतिहास से जुड़ा है. पहले लोग इसी तरह विदेश यात्राएं करते थे और एक-दूसरे की संस्कृति, समाज और व्यापार को अपने-अपने देशों में फैलाते थे. प्रधानमंत्री मोदी ने यूरोप दौरे में एक अहम आंकड़ा पेश किया है. उन्होंने दुुनिया को बताया कि 5-6 साल पहले भारत मोबाइल डेटा उपभोग के मामले में दुनिया के कई देशों से बहुत पीछे था. लेकिन पिछले 6-7 साल में हालात बहुत तेज़ी से बदले. अब हिंदुस्तान इतना मोबाइल डेटा इस्तेमाल करता है, जितना कई देश मिलकर भी नहीं कर पाते.
यानी ऑनलाइन सेवाओं और व्यापार में भारत ने अपना सिक्का जमा लिया है. इससे भी ज़्यादा अहम बात ये है कि भारत में मोबाइल उपभोक्ता और डेटा कंज़्यूम करने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है. भारत की लोकल खेती को ग्लोबल बनाने का अभियान भी मोबाइल डेटा के ज़रिये नए आयाम हासिल कर रहा है. अब कृषि प्रधान भारत के गांवों में खेती से लेकर पंचायतें तक डिजिटल इंडिया की मिसाल बन रही हैं. यानी अब हिंदुस्तान बदल नहीं रहा है, बल्कि बहुत हद तक बदल चुका है. भारत ने दुनिया की ओर बहुत दशकों तक देखा, अब दुनिया के सामने ये मौक़ा है कि वो आए और भारत देखे.

(लेखिका पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखिका के निजी हैं.)


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