पिछली रात ही मुंबई होकर आया हूं। सपने में। रेल से नहीं, विमान से। और वह भी चार्टर्ड विमान से। असल में जबसे एक बार फिर कोरोना सिर उठाने लगा है, मैं तबसे फिर से अपने मनचाहे स्टेशनों पर सपनों में ही जी भर घूमकर मजे कर आता हूं। सपने में घूमने के बहुत से लाभ हैं। आजमा कर देख लीजिए। जब अपने पाठकों से मैंने आज तक कुछ नहीं छिपाया तो अब उनसे ये भी क्या क्यों छिपाऊं कि कुछ रात पूर्व सपने में ही मुझे एक नामचीन हिंदी कामेडी फिल्मों के प्रोड्यूसर ने मेरे व्यंग्य पर फिल्म बनाने का निमंत्रण भेज मुंबई सादर आने को कहा था। वैसे मुझे कोई औपचारिकता के लिए भी बुलाए तो भी मैं उनके यहां अपनी तरफ से सादर पहुंच जाता हूं। व्यंग्य राइटर ही सही, हूं तो कायदे से राइटर ही। सो, हवाई यात्रा का टिकट भी उन्होंने की बुक करवा दिया। मैं तो अपने पैसों से टिकट लेकर गधे पर भी नहीं बैठता। कोई दूसरा गधे वाले को मुझे सवारी कराने के पैसे दे दे तो दे दे। पता नहीं सपने में उन्होंने मेरा व्यंग्य कहां से पढ़ लिया होगा? प्रोड्यूसर को निपटा कर घूमता घूमता अभी मैं आरके स्टूडियो के दर्शन करने जा ही रहा था कि मुझे आगे से मनोज कुमार आते दिखे।