'समिट फॉर डेमोक्रेसी' का बहिष्कार पाकिस्तान के लिए बहुत भारी पड़ सकता है

पाकिस्तान जन्म से ही भारत विरोधी मानसिकता से ग्रसित रहा है

Update: 2021-12-12 10:26 GMT

ज्योतिर्मय रॉय पाकिस्तान जन्म से ही भारत विरोधी मानसिकता से ग्रसित रहा है, शायद यही वजह है कि आज भी पाकिस्तान अपने वजूद की लड़ाई से ऊपर नहीं उठ पाया है. गलत सोच की वजह से ही पाकिस्तान आज अंतरराष्ट्रीय आतंकियों का पनाहगाह बन गया है. आज पाकिस्तान की आम जनता अनिश्चितता का जीवन जी रही है. विकास का सारा पैसा सेना की साज-सज्जा और नेताओं पर खर्च हो जाता है. कभी अमेरिका के पैसों पर कूदने वाला पाकिस्तान आज चीन के पाले मे फुदक रहा है. चीन के इशारे पर अब पाकिस्तान अमेरिका के खिलाफ गुटबाजी भी कर रहा है.

विश्व एक नए व्यावसायिक शीत युद्ध के दौर से गुजर रहा है. विश्व बाजार में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अमेरिका और चीन के बीच प्रतिद्वंद्विता दुनिया की भू-राजनीति को बदल रही है. लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के भीतर पल रही अलोकतांत्रिक प्रवृत्तियों के कारण आज लोकतंत्र प्रणाली में वैश्विक स्तर पर शिथिलता देखने को मिल रही है. आधे से अधिक लोकतांत्रिक देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बाधित किया जा रहा है. अमेरिका और भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों में भी लोकतंत्र गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहा है.
'समिट फॉर डेमोक्रेसी', प्रयास प्रशंसनीय है
इस चुनौती पर चर्चा के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा बुलाई गई दो दिवसीय वर्चुअल 'समिट फॉर डेमोक्रेसी' का आयोजन किया गया. इस सम्मेलन में कुल 111 लोकतांत्रिक देशों के नेताओं ने भाग लिया. वैश्विक लोकतांत्रिक बैकस्लाइडिंग के क्षण में इस प्रकार का सम्मेलन का आयोजन करना अति आवश्यक भी है. हालांकि भाग लेने वाले अमन्त्रित देशों की सूची को लेकर मेजबान अमेरिका को आलोचना का सामना करना पड़ा. आमंत्रित देशों की सूची से यह ज्ञात होता है कि इस सम्मेलन में आमंत्रित होने के लिए केवल एक लोकतांत्रिक राष्ट्र होना ही एकमात्र मानदंड नहीं है. व्हाइट हाउस ने लोकतंत्र के शिखर सम्मेलन के लिए दक्षिण एशियाई देशों से केवल भारत, मालदीव, नेपाल और पाकिस्तान को आमंत्रित किया. लेकिन हैरानी की बात यह है कि इस सम्मेलन में श्रीलंका, भूटान और बांग्लादेश को आश्चर्यजनक रूप से आमंत्रित सूची से बाहर रखा गया.
चीन के कहने पर पाकिस्तान ने 'समिट फॉर डेमोक्रेसी' का बहिष्कार किया
पाकिस्तान ने इस सम्मेलन का बहिष्कार किया. पाकिस्तानी मीडिया के अनुसार, इमरान सरकार ने चीन के इशारे पर इस सम्मेलन का बहिष्कार करने का कदम उठाया है. पाकिस्तान के इस कदम से पाकिस्तान और अमेरिका के बीच संबंधों के और बिगड़ने की आशंका जताई जा रही है. अमेरिका ने चीन और रूस को इस शिखर सम्मेलन में आमंत्रित नहीं किया है, चीन ताइवान को आमंत्रित किया गया है.
पाकिस्तान के अखबारों का कहना है कि, अमेरिका द्वारा इस सम्मेलन में चीन को आमंत्रित नहीं करने के कारण पाकिस्तान ने इस सम्मेलन का बायकॉट का फैसला किया है. इसके लिए पाकिस्तान पर चीन ने दबाव था. उल्लेखनीय है की, न्योता मिलने के बाद भी पाकिस्तान एक महीने तक कोई जवाब नहीं दिया और सम्मेलन शुरू से एक दिन पहले सम्मेलन को बहिष्कार करने का निर्णय लिया.
विशेषज्ञों का मानना है की, पाकिस्तान अब चीन के पाले में ही बने रहना चाहता है. चीन के बहकावे में आकर पाकिस्तान यह भूल गया था कि अमेरिका अभी भी विश्व नेता है. पाकिस्तान का यह कदम भविष्य में पाकिस्तान के लिए मुसीबत खड़ा कर सकता है. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति दयनीय है.
अमेरिका पाकिस्तान से नाराज है
अफगानिस्तान के घटनाओं को लेकर अमेरिका पाकिस्तान से नाराज है. अमेरिका को लगा कि पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ विश्वासघात किया है और डबल क्रॉस किया है. अमेरिका का यह मानना है कि, अफगानिस्तान से अमेरिका सैनिकों की वापसी को लेकर विश्व में जिस प्रकार अमेरिका की छवि खराब हुई है, उसके लिए पूरी तरह पाकिस्तान जिम्मेदार है.
20 जनवरी को अमेरिका के राष्ट्रपति का पदभार संभालने के बाद, जो बाइडेन ने दुनिया के करीब-करीब सभी राष्ट्राध्यक्ष से साथ किसी न किसी रूप में बात की है, लेकिन इमरान खान के साथ एसा नही किया.
अमेरिका सिखा सकता है सबक
पाकिस्तान की जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार आलिया शाह के अनुसार- इस सम्मेलन का बहिष्कार करना पाकिस्तान के लिए बहुत भारी पड़ सकता है. पहले से ही नाराज अमेरिका पाकिस्तान को कई तरह से सबक सिखा सकता है. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि आज सरकारी कर्मचारियों की तनख्वाह के लिए भी पाकिस्तान को ऋण लेना पड़ रहा है.
पाकिस्तान को याद रखना चाहिए था कि ऋण के लिये पाकिस्तान को IMF पर निर्भर रहना ही होगा और IMF में अमेरिका की 16% हिस्सेदारी है. बाकी सदस्य देश भी अमेरिका के ही सहयोगी हैं. ऋण के लिए चीन पर निर्भर रहना पाकिस्तान के लिए आत्मघाती साबित होगा. पाकिस्तान का नाम अभी FATF की ग्रे लिस्ट में हैं. पाकिस्तान पर FATF में ब्लैक लिस्ट होने की तलवार लटक रही है. यूरोपियन यूनियन पहले ही पाकिस्तान से नराज है. यानि, इन मोर्चों पर पाकिस्तान किसी भी वक्त फंस सकता है. और ये भी तय है कि चीन भी पाकिस्तान को नहीं बचा पाएगा, क्योंकि चीन का इन संगठनों में कोई प्रभाव नहीं है.
अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से दुनिया में अमेरिका की छवि को प्रभावित किया है और इसके लिए पाकिस्तान पूरी तरह जिम्मेदार है. अमेरिका का मानना हे कि, अफगानिस्तान को लेकर पाकिस्तान ने अमेरिका के साथ विश्वासघात किया है.
पाकिस्तान सरकार भरोसे के काबिल नहीं
पाकिस्तान की इमरान खान सरकार के लिए आने वाला समय मुश्किल भरा हो सकता है. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने इमरान खान सरकार पर एक महीने पहले हुए युद्धविराम पर हस्ताक्षर किए गये छह सूत्री समझौतों का सम्मान नहीं करने का आरोप लगाते हुए संघर्ष विराम खत्म करने की घोषणा की है. तालिबान ने इमरान खान सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि पाकिस्तान सरकार भरोसे के लायक नहीं है. सीजफायर खत्म होने की घोषणा के बाद ये साफ हो गया है कि अब पाकिस्तान में फिर से आतंकी हमलों की संख्या में इजाफा होगा. पिछले महीने पाकिस्तान सरकार और TTP के बीच हुए सीजफायर समझौते पर प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि अब देश में शांति का दौर लौटेगा और लोगों को राहत मिलेगी.
पाकिस्तानी मीडिया का दावा है कि TTP ने जो मांगें सरकार के सामने रखीं थीं, उनका अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क ने भी समर्थन किया था. तालिबान ने 2014 में पेशावर के आर्मी स्कूल पर हमला किया था. इसमें 149 लोग मारे गए थे. इनमें 132 बच्चे थे. इससे पहले भी इन आतंकियों ने इमरान खान के गृह राज्य खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान समेत कई प्रांतों में आतंक मचाया हुआ था.
पाकिस्तान सरकार युवाओं को देश की मुख्यधारा से जोड़ने में विफल रही है. इतिहास गवाह है कि भारत के साथ प्रतिस्पर्धा ने पाकिस्तान के नेताओं को भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए उकसाया है और आक्रामक बना दिया है.
पाकिस्तान अपने जन्मकाल से ही भारत के खिलाफ बार-बार सैन्य कार्रवाई करता रहा है. पाकिस्तान के नेतृत्व की खराब मानसिकता के कारण पूर्वी पाकिस्तान में अपने ही नागरिकों पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा किए गए अत्याचारों से दुनिया अवगत है. पाकिस्तानी सैनिकों के अत्याचारों के कारण, पूर्वी पाकिस्तान के 1 करोड़ नागरिक पाकिस्तान से भाग कर भारत में शरणार्थी बन गए. पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों ने पाकिस्तानी सैनिकों के अत्याचारों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया. शरणार्थियों की विशाल संख्या ने भारत को हस्तक्षेप करने के लिए मजबूर किया, परिणामस्वरूप, पूर्वी पाकिस्तान स्वतंत्र हो गया और एक नए राष्ट्र बांग्लादेश का गठन हुआ. बांग्लादेश पाकिस्तान के नेताओं के गलत नेतृत्व का ही परिणाम है.
पाकिस्तान का नेतृत्व आज भी आतंकवाद का सहारा लेकर पाकिस्तान के युवाओं को आतंकवाद की राह पर धकेल रहा है. आज दुनिया पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश के रूप में देख रही है. क्या यही पाकिस्तान के आम नागरिक चाहते हैं? अगर पाकिस्तान के नेताओं के चरित्र को दो पंक्तियों में बताया जाए, तो –
दुश्मन की ज़रुरत नहीं है, तेरी हस्ती मिटाने को,
तुझे तेरी सोच ने ही ज़हर बना दिया.


Tags:    

Similar News

-->