धर्मांधता : कट्टरता के दौर में कोई कहीं भी सुरक्षित नहीं, बढ़ते सांप्रदायिक विद्वेष की कीमत चुकानी होगी
पिछले दिनों बांग्लादेश के नड़ाइल में मिर्जापुर यूनाइटेड कॉलेज के प्रोफेसर स्वप्न कुमार बसु और एक छात्र को उपस्थित भीड़ ने पुलिस की मौजूदगी में जूते की माला पहनाई। उन दोनों की गलती क्या थी? छात्र की गलती यह थी कि उसने भारत में चल रहे विवाद के बीच भाजपा से निलंबित नूपुर शर्मा का समर्थन किया था। और प्रोफेसर की गलती क्या थी? उनकी गलती यह थी कि जब क्रुद्ध भीड़ उस छात्र को मारने के लिए उसका पीछा कर रही थी, तब प्रोफेसर ने अपने चेंबर में उस छात्र को शरण दी थी।
भीड़ ने कॉलेज कैंपस में ही प्रोफेसर के स्कूटर में आग लगा दी। प्रोफेसर ने पुलिस बुला ली। लेकिन पुलिस के जवानों ने प्रोफेसर और छात्र को सुरक्षा देने के बजाय उन्हें भीड़ के हवाले कर दिया, ताकि उन्हें अपमानित किया जा सके और जूते की माला पहनाई जा सके। नूपुर शर्मा की टिप्पणी पर सिर्फ नड़ाइल नहीं, पूरे बांग्लादेश में कट्टरवादियों ने तांडव मचाया था। उन कट्टरवादियों को संभवतः यह मालूम भी नहीं था कि उनके क्षुब्ध होने की वजह क्या है, आखिर विवादास्पद टिप्पणी में कहा क्या गया था।
वर्षों पहले जब मैंने धर्म पर कुछ कहा था, तब भी बांग्लादेश के कट्टरवादियों ने ऐसा ही तांडव मचाया था। वे भी नहीं जानते थे कि वस्तुतः मैंने कहा क्या था। हंगामा मचाने वालों को यह जानने की जरूरत नहीं होती कि वे किस बात पर हंगामा कर रहे हैं। वे जानना भी नहीं चाहते। उनके सामने सवाल रखने की इजाजत नहीं है। किसी तरह की आलोचना या अध्ययन से भी उनका कोई लेना-देना नहीं है। हद तो यह है कि वे सच भी जानना नहीं चाहते।
ऐसे कट्टरवादियों को जब पता चलता है कि किसी ने उनके धर्म से जुड़ी कोई बात कही है, तो धार्मिक भावना पर आघात लगने का आरोप लगाते हुए वे सड़कों पर उतर पड़ते हैं और समुदाय विशेष को निशाना बनाने के अपने हिंसक और विध्वंसात्मक अभियान में लग जाते हैं। खासकर मुस्लिम देश जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विरोध में खड़े हैं, तब यह सवाल पैदा होता है कि यह दुनिया क्या मुस्लिमों और गैर मुस्लिमों में विभाजित हो जाएगी।
मैंने यह पाया है कि हाल के कुछ वर्षों में बांग्लादेश में अनेक शिक्षकों पर हमला बोला गया है, जिनमें से ज्यादातर अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से हैं। ऐसा लगता है कि वहां का बहुसंख्यक समुदाय हिंदुओं को अब शिक्षकों के पद पर नहीं देखना चाहता। हिंदुओं की जमीन और संपत्ति पर पहले ही कब्जा हो चुका है, अब उनको शिक्षकों के सम्माननीय पेशे से हटाने की तैयारी है। स्वप्न कुमार बसु को अपमानित करने के कुछ ही दिन बाद आशुलिया में एक मुस्लिम छात्र ने हिंदू शिक्षक की क्रिकेट के विकेट से पीट-पीटकर हत्या कर दी।
उस शिक्षक का दोष क्या था? उन्होंने एक छात्रा के साथ दुर्व्यवहार के मामले में उस छात्र को डांटा था। चूंकि वह छात्र स्कूल के मालिक का रिश्तेदार बताया जाता है, ऐसे में, मानना मुश्किल है कि उसे अपने अपराध की सख्त सजा मिलेगी। हालांकि हिंदू शिक्षकों को निशाना बनाने के विरोध में बांग्लादेश में कई जगहों पर प्रदर्शन भी हुए हैं, समाज में बढ़ती कट्टरता के खिलाफ आवाज उठाई गई है। लेकिन अच्छी चीजों के बजाय बुरी चीजों का असर और प्रसार ज्यादा होता है।
इसीलिए मानवता के पक्ष में उठी आवाजों की तुलना में सांप्रदायिक विद्वेष और फतवा देने की प्रवृत्ति ही चर्चा में ज्यादा रहेगी। पूरे बांग्लादेश का एक जैसा हाल है। अल्पसंख्यक हिंदू निशाने पर हैं। क्या बांग्लादेश को सौ फीसदी मुस्लिम देश बनाने का लक्ष्य है? यही हाल रहा, तो बांग्लादेश के अफगानिस्तान में बदलने में देर नहीं लगेगी। नाच-गाना, नाटक-सिनेमा सब पर प्रतिबंध लग जाएगा। नारी-विद्वेषी, गणतंत्र-विरोधी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दुश्मन पूरे देश पर काबिज हो जाएंगे।
बांग्लादेश में शरिया कानून लागू हो जाएगा। लड़कियों की शिक्षा और नौकरी पर अंकुश लग जाएगा और महिलाओं के लिए बुर्का पहनना अनिवार्य हो जाएगा। नड़ाइल की घटना के कुछ ही दिन बाद भारत में राजस्थान के उदयपुर में एक नृशंस हत्याकांड को अंजाम दिया गया। दो कट्टरवादी मुस्लिमों ने एक हिंदू दर्जी की सिर्फ इसलिए गला काटकर हत्या कर दी कि उसने नूपुर शर्मा का समर्थन किया था। यही नहीं, हत्यारों ने उस हत्याकांड का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपलोड भी कर दिया।
भारत में इन दिनों हिंदू-मुस्लिम तनाव बढ़ रहा है। ऐसे माहौल के बीच आईएस की तरह हत्या करने का वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड करने का नतीजा भयंकर हो सकता है, क्या हत्यारे यह नहीं जानते थे? जाहिर है, इसके जरिये भारत में सांप्रदायिक विद्वेष और हिंसा फैलाने की मंशा थी। बेशक उदयपुर की रोंगटे खड़े कर देने वाली घटना की प्रतिक्रिया में हिंसा की वैसी कोई घटना नहीं हुई, लेकिन यह भी सच है कि स्थिति सामान्य होने में लंबा वक्त लगेगा।
यही नहीं, भारत के आम मुसलमानों को लंबे समय तक इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी और हिंदुओं के बीच मुस्लिम विद्वेष बढ़ेगा। अभी जो स्थिति है, वही कम डरावनी नहीं है। पूरे उपमहाद्वीप में कट्टरवादियों की भीड़ जलाओ, मार डालो, गिरफ्तार करो, फांसी दो जैसी मांग कर रही है। धार्मिक भावना पर चोट लगने की बात कहते हुए कट्टरवादी लोग सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन ही नहीं कर रहे, बल्कि सामने वाले का अस्तित्व मिटा देने की कोशिश तक में लगे हैं, जो बेहद चिंताजनक है।
धार्मिक रूप से कट्टरवादी जिस तरह मुस्लिम समुदाय में हैं, उसी तरह हिंदू समुदाय में भी हैं। और समाज में कट्टरवाद बढ़ने से हिंदू-मुसलमान, किसी की भी सुरक्षा की गारंटी नहीं है। ऐसे में, सबसे ज्यादा मुश्किल उदारवादियों को होती है। कट्टरवाद के इस व्यापक दौर में वे कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। सांप्रदायिक घृणा की भावना फैलाने और दंगा-फसाद करने से आम हिंदू-मुसलमानों का कोई भला नहीं होता, इसका फायदा राजनेताओं और राजनीतिक दलों को ही मिलता है। लेकिन विडंबना यह है कि इसके बावजूद आम लोग कोई सबक नहीं सीखते। कट्टर उन्मादियों की भीड़ के आगे विवश और लाचार होना ही शायद इस उपमहाद्वीप के उदार और चिंतनशील लोगों की नियति है।
सोर्स: अमर उजाला