Bengal Election 2021 : बंगाल की राजनीति में Caste Politics की एंट्री, साधने में जुटी BJP और TMC

नामशुद्रों की बढ़ी राजनीतिक ताकत

Update: 2021-03-17 09:01 GMT

उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार के साथ-साथ हिंदी भाषी प्रदेशों और दक्षिण भारत के राज्यों में अभी तक Caste Politics का बोलबाला था, लेकिन पश्चिम बंगाल की राजनीति को लंबे अर्से तक जिस बात ने अन्य राज्यों से अलग किया, वो था 'क्लास फैक्टर'. बंगाल की राजनीति में कास्ट फैक्टर नहीं था, लेकिन अब बंगाल की राजनीति में भी कास्ट फैक्टर की एंट्री हो गई है. मतुआ सहित ओबीसी जातियों और समुदायों को लुभाने में बीजेपी और टीएमसी दोनों ही जुटी हुई हैं, तो ममता बनर्जी ने कुर्मी जाति को अति पिछड़े में शामिल करने की मांग कर डाली है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने तेली सहित अन्य जातियों को ओबीसी में शामिल करने का वादा कर बड़ा ऐलान किया है.

बता दें कि पूरे 34 साल के शासन में लेफ्ट ने बुर्जुआ और सर्वहारा को अपने शासन का आधार बनाया था और लंबे समय तक शासन किया था, लेकिन साल 2011 में टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी जब सत्ता में आई, तो स्थिति बदल गई और जातियों और उपजातियों को साधने का खेल शुरू हो गया है. बाउड़ी, बागदी, मतुआ के लिए बोर्ड बनाए गए. रघुनाथ मुर्मु और बिरसा मुंडा के जन्म दिन पर छुट्टी की घोषणा की गई है.
नामशुद्रों की बढ़ी राजनीतिक ताकत
पश्चिम बंगाल की राजनीति में उस चुनाव में पहली बार मतुआ समुदाय का वोट बैंक के रूप में देखा और अपना प्रभाव स्थापित किया. इस समुदाय ने ममता का समर्थन किया जिससे तृणमूल को जीत दिलाने में मदद की. बंगाल में पिछड़ी जाति 'नामशुद्रों' की नुमाइंदगी करने वाले मतुआ महासंघ ने राजनीतिक तौर पर अपनी अहमियत दिखाई और कुछ हद तक राज्य के जातिगत समीकरणों को बदल डाला और ममता बनर्जी ने अपने 10 वर्षों के शासन में उपजातियों पर फोकस करना शुरू किया और उन्हें लोकसभा में एमपी बनवाया. बता दें कि गौरतलब है कि लगभग 60 हिंदू उपजातियां एससी कैटेगरी में आती हैं. इनमें से तीन प्रमुख हैं- राजबंशी, जो कि कुल एससी आबादी का 18.4%, नामशुद्र (17.4%) और बागड़ी (14.9%) हैं. बीजेपी ने भी मतुआ समुदाय को शांतनु ठाकुर को एमपी बनाया, तो मतुआ समुदाय को लुभाने के लिए नागरिकता संशोधन कानून में संशोधन किया.
ओबीसी जातियों को लुभाने की कवायद तेज
पश्चिम बंगाल में पहले चरण के मतदान के साथ ही ओबीसी जातियों को लुभाने की कवायद तेज हो गई है. राज्य में करीब 62 ओबीसी समूह हैं. उत्तर बंगाल के राजवंशी अपनी अलग पहचान के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं. हाल में दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इनके प्रतिनिधियों ने मुलाकात की थी. दूसरी ओर, मुख्यमंत्री के नाते ममता बनर्जी ने ऐसे अधिकतर वर्गों की पहचान की और उनसे मुखातिब हुईं. इनमें मुस्लिमों में शेख और दार्जिलिंग में गोरखाओं के अलावा लेप्चा शामिल हैं. राजवंशी अनुसूचित जाति में आते हैं और उत्तर बंगाल में इनकी खासी संख्या है. विशेष तौर पर कूचबिहार जिले में इनकी बड़ी संख्या है. ममता ने इन उपजातियों और समुदायों के लिए अलग-अलग बोर्ड बनाई.
30 फीसदी मुस्लिमों के बीच BJP ने एससी-एसटी में की घुसपैठ
पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, लेफ्ट और टीएमसी 30% आबादी मुस्लिम समुदाय पर निगाहें जमाए हैं, जबकि बीजेपी अनुसूचित जाति SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) समुदाय पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है. बता दें कि 2011 की जनगणना के दौरान राज्य में जनजातीय (ST) आबादी 52 लाख 90 हजार थी, जो कुल आबादी का लगभग 5.8% हुआ. अनुसूचित जाति की आबादी यहां की कुल 9 करोड़ 13 लाख आबादी का 23.51% यानी 2 करोड़ 14 लाख थी. राज्य की कुल जनसंख्या अब 10 करोड़ 19 लाख होने का अनुमान है. सबसे अधिक आदिवासी आबादी दार्जिलिंग, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार, दक्षिण दिनाजपुर, पश्चिम मेदिनीपुर, बांकुड़ा और पुरुलिया जिलों में है. राज्य में एसटी के लिए 16 आरक्षित सीटें और एससी के लिए 68 विधानसभा सीटें आरक्षित हैं. इन्हीं को आधार बनाकर बीजेपी ने लोकसभा चुनाव में 18 सीटों पर जीत हासिल की थी. अब उसी समीकरण को विधानसभा में भी दोहराया जा रहा है.


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