मदद भेजने से पहले दुनिया भर के राष्ट्राध्यक्ष भारत के वैक्सीन भेजने की पहल को करते हैं सैल्यूट

देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजनीतिक गलियारों में वैक्सीन निर्यात को लेकर काफी फटकार सुननी पड़ रही है

Update: 2021-05-09 09:52 GMT

कार्तिकेय शर्मा।  सुष्मिता सिन्हा। देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) को राजनीतिक गलियारों में वैक्सीन निर्यात (Vaccine Export) को लेकर काफी फटकार सुननी पड़ रही है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ दुनिया भर ने उनको भारत यूरोपियन यूनियन (European Union) शिखर सम्मलेन के दौरान धन्यवाद दिया. सही गलत गिनाने से पहले में आपको बताना चाहूंगा कि लोगों ने क्या-क्या कहा. फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रॉन ने भारत का धन्यवाद किया और कहा कि भारत को किसी से वैक्सीन निर्यात पर भाषण सुनने की ज़रुरत नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत ने वैक्सीन के निर्यात से दुनिया की काफी मदद की है. स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ ने भी मोदी को धन्यवाद कहा और बोला कि पिछले साल भारत ने स्पेन की कोविड के मामले में बहुत मदद की थी.


पुर्तगाल के प्रधानमंत्री यूरोपियन कौंसिल के अध्यक्ष हैं और उनके वंशज गोवा के मापुता इलाक़े से आते हैं. उन्होंने शिखर सम्मेलन में कहा कि उन्हें इस बात का फ़क़्र है की उनके पास भारत का ओवरसीज इंडियन सिटीजन का कार्ड है. उनके पिता ऑर्लैंडो डा कोस्टा का जन्म मापुता में हुआ था. यही नहीं बेल्जियम के प्रधानमंत्री एलेग्जेंडर दी क्रू ने केम छो कह कर प्रधानमंत्री मोदी को सम्बोधित किया. मोदी के धुर विरोधी कहेंगे की अन्तर्राष्ट्रीय दुनिया में देश के नेता एक दूसरे से इसी शिष्टाचार से बात करते हैं, लेकिन मोटी बात यह है कि दुनिया ने हिन्दुस्तान के काम को सराहा है. कोरोना की आपदा के वक़्त भारत की साख बढ़ी है.


वैक्सीन निर्माण के लिए दुनिया भर से आता है कच्चा माल
दूसरी बड़ी चीज़ यह है कि भारत को भी वैक्सीन बनाने के लिए दुनिया भर से चीज़ों का आयात करना पड़ता है. इसको लेकर विदेश मंत्री जयशंकर पहले भी कह चुके हैं की आप दुनिया भर से सामान मंगवा कर वैक्सीन निर्यात को कैसे रोक सकते हैं. इस पूरे मामले पर यूरोपियन यूनियन में बवाल भी हो चुका है. यूरोपियन यूनियन ने पहली बार कहा कि उन्हें अगर अपने कोटे की वैक्सीन नहीं मिली तो उनको भविष्य में यूरोप में ही वैक्सीन उत्पादन के तरीके ढूंढने होंगे.

बड़ा देश बनने के लिए कीमत चुकानी पड़ती है
फिर लिसी ने ये भी सोचा की अन्तर्राष्ट्रीय कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने के नतीजे क्या हो सकते हैं? भारत की तुलना अमेरिका से की जा रही है लेकिन अमेरिका ने किसी गरीब देश की मदद की ही नहीं जितनी हिंदुस्तान ने की. असल में बड़ा देश बनने की कीमत होती है और हिंदुस्तान इस वक़्त अपना मुंह छुपा लेता तो क्या विश्व में उसकी साख रह पाती? कॉमर्शियल ऑब्लिगेशन को तोड़ना आसान नहीं होता और हिंदुस्तान को आज मदद भी इसलिये मिल रही है क्योंकि हमने ज़रुरत के समय दुनिया की मदद की थी. इसलिए विपक्ष का बार-बार कहना कि वैक्सीन के निर्यात से नुक्सान हो गया, बात नहीं बनती है. मोदी ने भारत को वैक्सीन राष्ट्रवाद के जाल में फसने नहीं दिया और यही कारण है कि ज़रुरत के वक़्त भारत को मदद मिली.

एका एक वैक्सीन के लिए लोगों ने लगा ली भीड़
ये बात भी समझनी होगी की हिंदुस्तान में केवल वैक्सीन लगाने से लोगों की मृत्यु दर नहीं रोकी जा रही है. इसके लिए कोरोना से जुड़े नियमों का पालन करना भी ज़रूरी है. इसमें हुए चूक का खामियाज़ा भी भुगतना पड़ा है. वैक्सीन राष्ट्रवाद आज देश में विपक्ष को भले ही बहुत अच्छा लगे, लेकिन जो हिंदुस्तान को मदद मिली है वो उसकी साख के कारण मिली है. जो वैक्सीन को लेकर तकलीफ हुई है उसमें एक चीज़ को लोग भूल जाते हैं कि पहले जहाँ लोग वैक्सीन लगाने को तैयार नहीं हो रहे थे, अब मीलों लम्बी-लम्बी लाइन लगी हुई हैं.

क्या निर्यात किए गए वैक्सीन से बन जाती हर्ड इम्युनिटी
अब सबको तुरन्त वैक्सीन चाहिए जिसके कारण एका एक वैक्सीन बाजार से गायब हो गए. आखिर में बात आती है हर्ड इम्युनिटी की. भारत ने अब तक 6.6 करोड़ वैक्सीन 93 देशों को भेजी है, लेकिन जानकार कहते हैं की इतनी वैक्सीन से देश में हर्ड इम्युनिटी नहीं बन सकती थी. दूसरी बात ये भी है कि यह सब वैक्सीन किसी एक शहर में नहीं भेजी जाती. इसको पूरे देश में भेजा जाता और इसका असर संक्रमण पर नहीं पड़ता. हर देश की ज़िम्मेदारी उसके लोग होते हैं और उनकी प्राथमिकता होती है. प्राथमिकता के अनुसार ही वैक्सीन बाहर भेजी गयी थी. सच ये है कि दिक्कत वैक्सीन के निर्यात से नहीं बल्कि स्वाथ्य सेवा के बुनियादी ढांचे की कमी से हुई. हालांकि, ये दूसरी बहस है.


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