प्रतिबंध के पटाखे
बढ़ते वायु प्रदूषण के मद्देनजर पटाखों पर प्रतिबंध की मांग लंबे समय से होती रही है। इसके अलावा हर साल पटाखा कारखानों में आग लगने की बड़ी घटनाएं होती हैं
बढ़ते वायु प्रदूषण के मद्देनजर पटाखों पर प्रतिबंध की मांग लंबे समय से होती रही है। इसके अलावा हर साल पटाखा कारखानों में आग लगने की बड़ी घटनाएं होती हैं, जिनमें काम करने वाले बच्चे असमय मौत के मुंह में समा जाते हैं। इसी के मद्देनजर तीन साल पहले अदालत ने पटाखा निर्माण पर प्रतिबंध लगा दिया था। केवल हरित पटाखों की इजाजत थी। मगर सीबीआई जांच में पटाखा बनाने वालों के पास से भारी मात्रा में हानिकारक रसायन बरामद हुए। उनमें बेरियम जैसा घातक रसायन भी है, जिसे प्रदूषण और दहन क्षमता के लिहाज से अत्यंत खतरनाक माना जाता है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने नाराजगी जाहिर की है। इसे अदालती आदेश की अवहेलना करार दिया है।
न्यायालय ने सरकारों के मनमाने व्यवहार पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि वे अदालती आदेशों की अवहेलना करती रहती हैं, हजारों बार करती हैं। उसने पूछा है कि जब बेरियम जैसे घातक रसायन पर प्रतिबंध है, तो आखिर कैसे इतने बड़े पैमाने पर उसकी आपूर्ति होती रही। जब पटाखों पर प्रतिबंध है, तो हर चुनाव के बाद कैसे जश्न मनाते हुए बड़े पैमाने पर पटाखे फोड़े जाते हैं! हालांकि इस मामले में अभी आगे सुनवाई होनी है, पर सर्वोच्च न्यायालय के रुख को देखते हुए अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि वह पटाखा निर्माण को लेकर किसी तरह की रियायत के पक्ष में नहीं है।
दिवाली का त्योहार नजदीक आ रहा है। इस त्योहार पर बड़े पैमाने पर पटाखों की खपत होती है। इसलिए पटाखा निर्माता संघ जल्दबाजी में है कि इस मामले में जल्दी कोई फैसला आए। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि वह तभी कोई सकारात्मक आदेश दे सकता है, जब उसे लगेगा कि सचमुच हरित पटाखों का निर्माण होगा। पटाखा उद्योग में हजारों लोगों को रोजगार मिलता है।
इसी का हवाला देकर तमिलनाडु के पटाखा निर्माता सरकार से पटाखा बनाने की छूट लेते रहे हैं। मगर इस पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि रोजगार के नाम पर घातक कारोबार को छूट नहीं दी जा सकती। दरअसल, पटाखा निर्माण कई दृष्टियों से हानिकारक साबित होता है। इस उद्योग में ज्यादातर बच्चे काम करते हैं। पटाखों में बारूद भरने, रंग-रोगन करने में जो गर्द उनके फेफड़ों में घुसती है, उससे बहुत कम उम्र में ही वे सांस संबंधी तकलीफों की गिफ्त में आ जाते हैं। उनमें से बहुत से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों की गिरफ्त में भी आ जाते हैं। फिर जहरीले रसायनों से बने पटाखों से निकलने वाला धुआं वातावरण में घुल कर सामान्य लोगों की सेहत पर बुरा प्रभाव डालता है।
पटाखे फोड़ना, आतिशबाजी करना एक तरह से खुशियां जाहिर करने का प्रतीक है। मगर ऐसी खुशी भी क्या जाहिर करना, जो बहुत सारे लोगों के लिए जान का खतरा बनती हो। हरित पटाखों पर प्रतिबंध नहीं है, मगर इन पटाखों के प्रति लोगों का आकर्षण इसलिए कम होता है कि इनसे वैसी आतिशबाजी नहीं हो पाती, जैसी घातक रसायनों से बने पटाखों से होती है। दरअसल, तेज आवाज और रंग-बिरंगी रोशनियां लोगों को अधिक आनंद देती हैं। मगर कुछ लोगों के क्षणिक आनंद से अगर बहुत सारे लोगों को तकलीफ पहुंचती है और उससे पहले से ही जानलेवा साबित हो रहे प्रदूषण के स्तर में इजाफा होता है, तो उस आनंद की परवाह क्यों की जानी चाहिए। इसलिए सर्वोच्च न्यायालय की चिंता वाजिब है और सरकारों तथा पटाखा कारोबारियों को भी इसे समझने की जरूरत है।