कॉरपोरेट की जेब में 'आजादी'
एलन मस्क ने ट्विटर को खरीदने के लिए 52 बिलियन डॉलर की रकम आगे कर दी है।
By NI Political
एलन मस्क ने ट्विटर को खरीदने के लिए 52 बिलियन डॉलर की रकम आगे कर दी है। फिलहाल, ट्विटर के मौजूदा मालिक मस्क की मंशा को नाकाम करने में जुटे हुए हैँ। मस्क ने हाल ही में ट्विटर की करीब 9 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। फिर उन्होंने पूरी कंपनी खरीदना का प्रस्ताव रखा।
कॉरपोरेट नियंत्रित सोशल मीडिया की आजादी का भ्रम तभी टूटना लगा था, जब सोशल मीडिया कंपनियों ने अमेरिकी शासक वर्ग की इच्छा के मुताबिक राजनीतिक आवाजों को दबाना शुरू कर दिया। सबसे पहले जो हाई प्रोफाइल शख्सियत इसका निशाना बनी, वे डॉनल्ड ट्रंप थे। फिर यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद जिस तरह रूस की बात रखने वाली आवाजों को तमाम सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स से बाहर किया गया, उससे भी यही संकेत मिला कि कॉरपोरेट जगत के हाथ में सोशल मीडिया आजाद नहीं है। अब आजादी की पोल अरबपति एलन मस्क ने खोली है। उन्होंने ट्विटर को खरीदने के लिए 52 बिलियन डॉलर की रकम आगे कर दी है। फिलहाल, ट्विटर के मौजूदा मालिक मस्क की मंशा को नाकाम करने में जुटे हुए हैँ। दुनिया के सबसे अमीर शख्स मस्क ने हाल ही में ट्विटर की करीब 9 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। इसके बाद उन्होंने पूरी कंपनी खरीदने के लिए भी एक प्रस्ताव दिया। तब ट्विटर कंपनी के बोर्ड ने एक नई योजना बनाई, जिससे कंपनी में 15 फीसदी से ज्यादा हिस्सेदारी खरीदना किसी एक शख्स या संस्था के लिए काफी मुश्किल हो जाएगा।
इस योजना को "प्वायजन पिल" नाम दिया गया है। मस्क ने ट्विटर को करीब 43 अरब डॉलर की मार्केट वैल्यू पर खरीदने की पेशकश की थी। उसे कंपनी बोर्ड ने अस्वीकार कर दिया। तब मस्क ने कहा कि वे इस खरीदारी पर 52 बिलियन डॉलर खर्च करने को तैयार हैँ। बहरहाल, ट्विट ने भले मस्क के प्रस्ताव को फिलहाल ठुकरा दिया है, लेकिन उससे कंपनी के प्रबंधकों में असंतोष पैदा होने के संकेत हैँ। इसके जवाब में ट्विटर ने स्पष्ट किया है कि कंपनी बोर्ड को अगर लगता है कि ट्विटर के अधिग्रहण या हिस्सेदारी खरीदने का कोई प्रस्ताव ट्विटर और उसके शेयरधाकरों के हित में है, तो वो उन प्रस्तावों पर विचार कर सकते हैं। साफ है, मस्क की मंशा आगे चल कर पूरी नहीं होगी, यह अभी कोई नहीं कह सकता। प्रश्न यह है कि ट्विटर चाहे अपने मौजूदा प्रबंधकों के अधीन रहे या मस्क उसे खरीद लें, क्या अब वह ये दावा करने की स्थिति में है कि उसका असल मकसद मुनाफा नहीं, बल्कि सार्वजनिक संवाद का मंच मुहैया कराना है। और अगर वह मुनाफे के हिसाब से आवाजों को बढ़ाने या दबाने में शामिल बनी रहती है, तो फिर उसे 'सोशल' मीडिया क्यों कहा जाना चाहिए?