'बेक़स पे क़रम कीजिए, सरकार-ए-मदीना' गाने वाली लता मंगेशकर पर हमले
अपने को सेकुलर जमात का बताने वाले कुछ लोगों ने लता मंगेशक को संघी और सावरकर पूजक बताते हुए उनके निधन पर हर्ष जताया है
शंभूनाथ शुक्ल।
अपने को सेकुलर जमात का बताने वाले कुछ लोगों ने लता मंगेशकर (Lata Mangeshkar) को संघी और सावरकर पूजक बताते हुए उनके निधन पर हर्ष जताया है. फेसबुक पर ऐसी नफ़रती पोस्ट भरी पड़ी हैं. इस तरह की पोस्ट लिखने वाले बहुत से कुछ को गांधीवादी (Gandhian) कहते हैं, कुछ अपने को धर्म-निरपेक्ष बताते हैं. और कुछ वामपंथी (Leftist) भी. उनके अनुसार लता मंगेशकर की सोच घृणित थी, इसलिए उनकी मृत्यु पर हमें कोई दुःख नहीं हुआ. फेसबुक पर रोज़ाना कई-कई पोस्ट लिखने वाले एक शख़्स, जो कई राज्यों में एनजीओ चला रहे हैं, को तो ऐसी पोस्ट लिखने में महारत हासिल है.
उन्होंने लता मंगेशकर की गायिकी को ख़ारिज कर दिया और लिखा कि जिस महिला ने मोदी के प्रधानमंत्री बनने पर हर्ष व्यक्त किया, उसके निधन पर कैसी सहानुभूति! इस तरह की टिप्पणी कर वे परोक्ष रूप से उन्हीं का आचरण फ़ॉलो कर रहे हैं, जिनसे वे नफ़रत करते हैं. किसी को प्रधानमंत्री जनता बनाती है, कोई गिरोह नहीं.
लता जी को अली और बजरंग बली दोनों में श्रद्धा थी
एक तरह से यह ख़ुद को सेकुलर और सहिष्णु बताने वालों की यह असहिष्णुता और हिंसक प्रवृत्ति है. जो गांधी जी कहते थे, कि कोई बाएं गाल पर तमाचा मारे तो उसके समक्ष दायां गाल कर दो. लेकिन उनके ये अनुयायी तो फ़ौरन फरसा निकाल लेते हैं. इस तरह से समाज के ये लोग भी उन्हीं लोगों के अनुयायी हैं, जिन्हें ये मूर्ख और असहिष्णु बताते नहीं थकते. इनके अंदर या तो अपने साम्राज्य के खो जाने का दुःख है अथवा वे जनता द्वारा अपने विपरीत विचारों वाली राजनीतिक पार्टी को चुन लिए जाने से इतने आहत हैं, कि जो मन में आए वह बोल देते हैं. ऐसे में प्रधानमंत्री संसद में इन्हें "टुकड़े-टुकड़े गैंग" से संबोधित करते हैं तो बुरा क्या है! क्योंकि हम तो मानते ही हैं कि मौजूदा निज़ाम में जो सत्ताधारी हैं, उनकी विचारधारा असहिष्णु है और विवेकशील लोगों की इनके यहां कमी है. किंतु यदि साठ वर्ष तक सत्ता की मलाई खाने वाले कथित सहिष्णु भी वैसा ही आचरण करेंगे तो किस मुंह से वे ऐसे लोगों की निंदा करेंगे.
लता मंगेशकर को असहिष्णु और उनकी मृत्यु पर ऐसी कुत्सित टिप्पणी करने वाले भूल जाते हैं कि जब उन्होंने "बेक़स पर क़रम कीजिए, सरकार-ए-मदीना!" गाया था, तब पाकिस्तान के लोगों ने समझा था कि कोई मुसलमान महिला ही ऐसा गाना गा सकती है. अपने देश के मुसलमानों को भी नहीं लगा, कि यह गाना गाने वाली कोई मुस्लिम नहीं बल्कि हिंदू ब्राह्मण है. लता मंगेशकर दिलीप कुमार को उनके प्रिय नाम यूसुफ़ साहब से ही संबोधित करती थीं और उनको राखी बांधती थीं. उन्होंने अनगिनत गाने मुहम्मद रफ़ी के साथ गाए. उनकी अली और बजरंग बली दोनों में श्रद्धा थी. एक ऐसी महान हस्ती पर अपनी दुर्भावना व्यक्त कर ये लोग क्या कहना चाहते हैं, यह स्पष्ट नहीं है. दरअसल हिंसक और कुत्सित विचार अब हर दल और विचारधारा में समान रूप से हैं. जैसे दक्षिणपंथी हैं, वैसे ही वामपंथी. दोनों गाली देने में उस्ताद और हिंसक मनोभावों को व्यक्त करने में भी. ऐसे लोगों के लिए सोशल मीडिया एक अमोघ हथियार है.
इस तरह की घिनौनी टिप्पणियों से लगता है कि अब वामपंथी विचार वालों में भी सोचने-विचारने और पढ़ने-लिखने की परंपरा नहीं रही. तिरुअनंतपुरम में रह कर वेदों का अध्ययन कर उन पर भाष्य लिखने वाली विदुषी रति सक्सेना बताती हैं, प्रख्यात मार्क्सवादी ईएमएस नम्बूदरीपाद ने मलयालम भाषा में एक पुस्तक लिखी है, जिसमें वेद और उसकी परंपरा को बताया गया है. नम्बूदरीपाद देश में पहली वाम सरकार के मुख्यमंत्री थे. वे केरल के पालघाट के वेदपाठी ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए. शुरुआती शिक्षा भी उनकी वहीं हुई, लेकिन जब अंग्रेज सरकार ने कहा, कि संस्कृत विद्यार्थी भी अंग्रेज़ी स्कूलों में ऊंची क्लास में दाख़िला ले सकते हैं, तब उन्होंने अंग्रेज़ी सीखी. वे मार्क्सवादी हुए किंतु अपनी परंपरा से नहीं कटे. अप्रैल 1957 में वे केरल की पहली चुनी हुई वाम सरकार के मुख्यमंत्री हुए किंतु भूमि सुधार क़ानून से उनका विरोध हुआ. तब कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष इंदिरा गांधी की ज़िद पर प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 31 जुलाई 1959 को उनकी सरकार गिरा दी.
इंद्रजीत गुप्ता जैसे वामपंथी नेताओं से सीखने की जरूरत
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापकों में से एक श्रीपाद अमृत डांगे संस्कृत के उद्भट विद्वान थे. हालांकि उनकी शिक्षा-दीक्षा अंग्रेज़ी में हुई. किंतु संस्कृत पर भी उनका अधिकार था. मराठी धातु कोश पर उनकी टीका भारतीय भाषा परिवार की व्याख्या में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है. डांगे से कोई मिलने जाए तो पूछ लेते थे, संस्कृत पढ़ी है या नहीं? आगंतुक के नहीं कहने पर वे उसे सलाह देते थे, कि संस्कृत पढ़ो. इसी तरह स्वतंत्र चिंतक राहुल सांकृत्यायन भी संस्कृत को अनिवार्य करने के हामी थे.
ताज़ा उदाहरण कामरेड इंद्रजीत गुप्ता का है. केंद्र में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी और उत्तर प्रदेश की चुनी हुई भाजपा सरकार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के अधिकांश सदस्य गिराना चाहते थे. लेकिन राष्ट्रपति ने मना कर दिया. उधर राज्यपाल रोमेश भंडारी भी उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन को लगाए जाने के पक्ष में थे. इसलिए कैबिनेट ने फ़ैसला किया कि दोबारा प्रस्ताव पास कर राष्ट्रपति को भेजा जाए. मगर तब केंद्रीय गृह मंत्री इंद्रजीत गुप्ता अड़ गए. उन्होंने कहा इससे ग़लत परंपरा बनेगी. भाजपा हमारे विरोधी विचारधारा वाली राजनैतिक पार्टी है, लेकिन इस तरह सरकार गिराना ग़लत है. मगर दुःख है कि ख़ुद को वाम और सेकुलर बताने वाले इतना नीचे आ गए हैं.
ऐसे लोगों का सोशल बॉयकाट करना चाहिए
जिस गायिका की पूरी दुनिया फ़ैन रही और पाकिस्तान तो यहां तक कहता था, कि भारत लता और ताज़ के चलते हमसे श्रेष्ठ है. जिस गायिका ने कभी भी हिंदू-मुस्लिम का भेद नहीं किया, उसके बारे में ख़ुद को गांधी और वाम के अनुयायी बताने वालों की ऐसी टिप्पणी सर्वथा ग़लत है. भाजपा का विरोध करना है, आरएसएस का विरोध करना है तो तर्क के साथ किया जाना ही न्यायोचित होगा. अगर स्वयं को वामपंथी बताने वाले भी इस तरह के तर्कहीन टिप्पणी करेंगे तो जिन्हें आप बुद्धिहीन कहते हैं, उनको कैसे कोस पाएंगे? इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अति वामपंथ और अति दक्षिणपंथ दोनों ही अपनी-अपनी जगह सिर्फ़ गाली-गलौज ही कर सकते हैं. वे नहीं सोच रहे कि अपने देश की अधिकांश जनता लता मंगेशकर को सुरदेवी मानती है और ऐसी टिप्पणियों से उसे संताप पहुंचता है.
लता मंगेशकर पर ऐसी टिप्पणी करने वाले सोशल मीडिया पर अपनी टीआरपी बढ़ा कर चले जाएंगे लेकिन ये लोग समाज के अंदर ज़हर बो देंगे. सच बात तो यह है कि इनका मक़सद समाज को दो-फाड़ कर देना है. चूंकि सोशल मीडिया पर अभी किसी का अंकुश तो है नहीं इसलिए लोगों को चाहिए, कि ऐसे लोगों को पहचाने और इनके ज़हर भरे दिमाग़ को भी. इनका सोशल बॉयकाट करें. सरकार को भी ऐसी टिप्पणी करने वालों के लिए दंड का विधान निश्चित करना चाहिए. लता मंगेशकर अब हमारे बीच भले न हों, लेकिन उनकी आवाज़ युगों-युगों तक ज़िंदा रहेगी. उसे ख़त्म करना किसी के बूते का नहीं.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)