Arun Prakash- फर्श से अर्श तक की यात्रा करने वाले लेखक

Update: 2024-06-18 12:53 GMT
आज हिन्दी के लोकप्रिय कहानीकार, आलोचक और पत्रकार अरुण प्रकाश Journalist Arun Prakash का 12वां स्मृति दिवस है। यद्यपि उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत कविता से की थी, तथापि कालांतर में उनकी ख्याति एक कुशल गद्यकार के रूप में हुई। उन्होंने अपने अहर्निश संघर्षों और सकारात्मक सरोकारों के बूते लेखन के क्षेत्र में फर्श से अर्श तक की यात्रा की। अरुण प्रकाश का जन्म 22 फरवरी 1948 को बेगूसराय जिलान्तर्गत तेघरा प्रखण्ड के निपनियां गाँव में हुआ। वे सुप्रसिद्ध समाजवादी नेता और राज्यसभा के भूतपूर्व सदस्य रुद्र नारायण झा के पुत्र थे। उनकी माता का नाम कुन्ती देवी था। वे अपने तीन भाइयों और एक बहन में ज्येष्ठ थे। उनके पूर्वज बछवारा प्रखण्ड के रानी गाँव निवासी थे, जो बाद में निपनियां के स्थायी वासी हो गये थे। उनका विवाह गढ़हरा निवासी राजकुमार मिश्र
 Marriage of Rajkumar Mishra, resident of Garhara
 की पुत्री वीणा मिश्र से सन् 1971 में हुई थी।
अरुण प्रकाश ने स्नातक प्रबंध विज्ञान और पत्रकारिता में स्नातकोत्तर डिप्लोमा Postgraduate Diploma की शिक्षा प्राप्त की थी। कुछ वर्षों तक उन्होंने हिन्दुस्तान उर्वरक कारखाना, बरौनी में अतिथिशाला-प्रबंधक के पद पर कार्य किया। उस दौरान बेगूसराय जनपद में उनकी साहित्यिक सक्रियता उल्लेखनीय रही है। उन्होंने
बरौनी फर्टिलाइजर कर्मी साहित्यकार केशव रत्नम्
और अभिनंदन झा तथा गढ़हरा के कवि रामेश्वर प्रशांत, निरंजन एवं लालसा लाल तरंग के साथ मिलकर गढ़हरा रेल परिक्षेत्र, बरौनी फर्टिलाइजर टाउनशिप और बेगूसराय जनपद में प्रगतिशील-जनवादी साहित्यिक आंदोलन को तेज एवं सबल करने में महती भूमिका निभायी। न केवल बेगूसराय, अपितु बिहार के अन्य जिलों में जाकर उन्होंने साहित्यकारों और संस्कृति कर्मियों से संपर्क किया तथा बिहार नव जनवादी सांस्कृतिक मोर्चा के गठन में महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने इस संगठन के स्थापना-सम्मेलन में भाग लिया तथा वे राज्य कमिटी के सदस्य निर्वाचित हुए। कालांतर में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया तथा देश की
राजधानी दिल्ली
पहुँच कर पत्रकारिता के क्षेत्र में हाथ आजमाया और फिर निरंतर सफलता के सोपान चढ़ते चले गये। इस बीच अपनी पत्नी और बच्चों को दिल्ली ले आकर सपरिवार दिल्लीवासी हो गये। दिल्ली में पहले दिलशाद गार्डनDilshad Garden में अपना फ्लैट लिया। बच्चों को अच्छी तालीम दी, किन्तु कतिपय कारणवश उन्हें वह फ्लैट बेचना पड़ा और उसके बाद सपरिवार मयूर विहार आकर रहने लगे। उन्होंने जीवनपर्यंत दिल्ली में रहने के बावजूद बिहार और अपने जिला-जवार से सकारात्मक संबंध बनाये रखने का हरसंभव प्रयास किया। इन पंक्तियों के लेखक का जब कभी दिल्ली जाना होता तो उनके आवास या कार्यालय में उनसे जरूर मुलाकात होती तथा उनके स्नेह का सुअवसर प्राप्त होता था।
अरुण प्रकाश बहुमुखी साहित्यिक प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने दिल्ली में विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं का संपादन किया। विशेष कर साहित्य अकादमी की पत्रिका 'समकालीन भारतीय साहित्य' का कई वर्षों तक संपादन किया। उन्होंने दूरदर्शन की बहुचर्चित टी०वी० सांस्कृतिक पत्रिका 'परख' के करीब 450 एपिसोड लिखे। इसके साथ ही वे अनेक धारावाहिकों, डाक्यूमेंट्रीज तथा टेली फिल्मों के पटकथा-लेखन से संबद्ध रहे। उन्होंने कई पत्र-पत्रिकाओं में स्तम्भ लेखन भी किया। उन्होंने दशाधिक वर्षों तक कथा-समीक्षा एवं आलोचना-लेखन किया तथा राष्ट्रीय स्तर की अनेक संगोष्ठियों में सहभागिता की। उन्होंने हिन्दी साहित्य के संवर्द्धन हेतु जो महत्वपूर्ण अवदान किया, उनमें प्रमुख हैं:- 'भैया एक्स्प्रेस', 'जलप्रांतर', 'मंझधार किनारे', 'लाखों के बोल सहे', 'विषम राग', 'स्वप्न घर' (कहानी संग्रह)‌। 'कोंपल कथा' (उपन्यास)। 'रक्त के बारे में' (कविता संकलन)। 'गद्य की पहचान', 'उपन्यास के रंग', 'कहानी के फलक' (आलोचना)। इसके अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी से हिन्दी में विभिन्न विषयों की आठ पुस्तकों का अनुवाद किया। यूँ तो उनकी सभी कहानियाँ पठनीय और विचारणीय हैं, फिर भी उनकी ख्याति में चार चाँद लगाने वाली 'भैया एक्स्प्रेस' और 'जलप्रांतर' विशेष उल्लेखनीय हैं। 'भैया एक्स्प्रेस' पंजाब के खेत-खलिहानों में रोजगार की तलाश में जाने वाले बिहारी युवा मजदूरों की पीड़ा के यथार्थ को स्पर्श करती मार्मिक कथा है, जिसमें नायक रामदेव का भाई विशुनदेव तत्कालीन पंजाब के आतंकवाद की दरिंदगी का शिकार हो जाता है। इसी तरह कहानी 'जलप्रांतर' में गंगा नदी में आई बाढ़ की विभीषिका और बांध के टूटने के बाद मची तबाही का जो मंजर दिखाया गया है, वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है। बिहार का एक सच यह भी है कि सरकारों की अदूरदर्शिता के कारण राज्य की अधिकांश जनता वर्ष के करीब सात-आठ महीने बाढ़-कटाव का दंश झेलने को बाध्य रहती है।
अरुण प्रकाश का एकमात्र उपन्यास है-'कोंपल कथा'। यह उपन्यास बीसवीं शताब्दी के अंतिम दो दशकों में बिहार के बेगूसराय और आसपास के जिले में समाज के एक खास समुदाय में पकड़ौआ विवाह की कुप्रथा और उस कारण दाम्पत्य जीवन में होनेवाली विसंगतियों पर केन्द्रित है। उस दौर में एक जाति विशेष की युवतियों की शादी के लिए बालिग (ज्यादातर नाबालिग) युवकों का हथियार के बल पर अपहरण कर लिया जाता था और उनकी जबरन शादी करा दी जाती थी। प्रायः लड़की पक्ष के लोग अपने परिजन के बल पर निजी पसंद के लड़के का अपहरण कर लेते थे अथवा परिजनों की असमर्थता की स्थिति में इस कार्य के लिए अपराधियों की मदद लेते थे। बाद में इस तरह की घटनाओं को अंजाम देने के लिए कई अपराधी-गिरोह के अन्तर्जाल बन गये। ऐसे विवाह के अनेक दुष्परिणाम भी हुए। ज्यादातर दाम्पत्य जीवन में स्त्रियों की दशा नारकीय बन जाती थी। उक्त उपन्यास में इसका मर्मस्पर्शी चित्रण है।
अरुण प्रकाश के निधन के बाद उनकी पत्नी वीणा जी, पुत्र मनु प्रकाश और पुत्री अमृता प्रकाश ने उनकी अप्रकाशित रचनाओं की तलाश की, जिनमें से छह कहानियों और पांच लघुकथाओं का संग्रह 'नहान' अंतिका प्रकाशन से वर्ष 2023 में प्रकाशित किया गया। इसी कड़ी में मैथिल कोकिल विद्यापति के जीवन और सृजन केन्द्रित पुस्तक 'पूर्व राग' भी प्रकाशन के उपरांत पाठकों के लिए उपलब्ध है।
अरुण प्रकाश को उनके जीवन-काल में हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा 'साहित्यकार सम्मान' व 'कृति पुरस्कार' , बिहार सरकार द्वारा कहानी लेखन हेतु 'रेणु पुरस्कार' दिनकर जयंती समारोह समिति एवं जिला प्रशासन बेगूसराय द्वारा 'दिनकर राष्ट्रीय सम्मान' दिया गया। इसके अतिरिक्त इन्हें 'सुभाषचंद्र बोस कथा सम्मान' तथा 'कृष्ण प्रताप स्मृति कथा पुरस्कार' सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था।
अरुण प्रकाश जीवन के अंतिम दौर में गंभीर रूप से बीमार रहे। लंबी अवधि तक आई०सी०यू० में भर्ती रहे और मौत के विरुद्ध जूझते रहे। यद्यपि मृत्यु ने उनके नश्वर शरीर को पराजित किया और 18 जून 2012 को दिल्ली में उनका निधन हो गया, तथापि उनकी सृजनशीलता उन्हें सदैव साहित्य-संसार में अपराजेय बनाये रखेगी। ऐसी साहित्यिक विभूति को उनके स्मृति दिवस पर कोटिशः नमन!

 कुमार विनीताभ

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