इसके अलावा लगभग पिछले डेढ़ साल से लद्दाख में बैठी चीनी सेना के साथ अभी तक कोई ठोस एवं मजबूत समझौता नहीं हो पाया है, बल्कि अब हमें पेंटागन की रिपोर्ट से खबर मिली है कि चीन ने अरुणाचल प्रदेश के साथ लगती सीमा पर एक गांव बसा दिया है, जिसे पहले सरकार ने सही बताया और उसके बाद सरकारी सूत्रों ने बताया कि गांव का निर्माण चीन ने उस इलाके में किया है जिस पर 1959 में चीनी सेना ने घुसपैठ कर कब्जा कर लिया था। 1959 में चीनी सेना ने अरुणाचल प्रदेश के सीमांत क्षेत्र में एक ऑपरेशन में असम राइफल की चौकी पर हमले के बाद कब्जा कर लिया था, जिसे 'लोंगजू घटना के नाम से जाना जाता है। एक खबर के मुताबिक ऊपरी सुबनसिरी जिले में विवादित सीमा के साथ लगता गांव चीन के नियंत्रण वाले क्षेत्र में है। यहां लंबे समय से चीनी सेना ने एक चौकी बना रखी है और अब उसी क्षेत्र में चीन ने गांव बसा दिया है। मेरा मानना है कि भारतीय सीमा पर बनाए जाने वाले इस गांव की खबर हमें दूसरे देश से पता चल रही है और दूसरा यह कि चीन ने यह गांव 1959 में कब्जा की हुई जमीन पर बनाया है, पर प्रश्न यह है कि पिछले 60 साल से अगर चीन उस कब्जा की हुई जमीन पर गांव नहीं बसा सका था तो आज जब भारत में बकौल स्वयंभू मणिकर्णिका 70 वर्षों की सबसे सशक्त 56 इंची सरकार है, तो यह गांव कैसे बसने दिया गया और ड्रैगन के इस दुस्साहस पर लाल आंख दिखाते हुए सही कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है।
अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसाया जाने वाला पड़ोसी देश का यह गांव हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है और उस गांव को जितनी जल्दी हटाया जाए, उतना ही हमारी सेना, हमारे देश एवं हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सही कदम होगा। राष्ट्रीय सुरक्षा सिर्फ अंतरराष्ट्रीय सीमा में हो रही घुसपैठ तथा कश्मीर या नक्सली इलाके में होने वाली आतंकवादी घटनाओं तक सीमित नहीं, बल्कि यह एक इतना विशाल मजवून हैं जिसके लिए हमें आइ कम फरोम 2 इंडियास पर भी सोचना पड़ेगा और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सत्ता के भूखे थे, वाले बयान पर भी गंभीरता से चिंतन करना पड़ेगा। वर्तमान सरकार का हर समस्या से खुद का पल्ला झाड़कर, पिछली सरकारों को जिम्मेदार बताना भी एक राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा है, जिस पर आज हर भारतवासी को बिना किसी पूर्वाग्रह के आकलन करने की आवश्यकता है।
कर्नल (रि.) मनीष धीमान
स्वतंत्र लेखक