मनमाना दोहन
राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने उत्तर प्रदेश में चल रही शीतल पेय बनाने वाली दो कंपनियों पर भूजल के अवैध दोहन को लेकर पच्चीस करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है।
Written by जनसत्ता: राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने उत्तर प्रदेश में चल रही शीतल पेय बनाने वाली दो कंपनियों पर भूजल के अवैध दोहन को लेकर पच्चीस करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। इन दोनों कंपनियों ने भूजल उपयोग के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लिया था और अवैध तरीके से भूजल का दोहन कर रही थीं। इस मामले में एनजीटी ने केंद्रीय भूजल प्राधिकरण की भी आलोचना की है कि उसने इतने बड़े पैमाने पर भूजल के अवैध दोहन को नजरअंदाज किया। इस मामले से एक बार फिर भूजल के अवैध दोहन को लेकर चिंता गहरी हुई है।
शीतल पेय बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ देश भर में इसीलिए स्थानीय लोगों का विरोध प्रदर्शन चलता रहा है कि वे भारी पैमाने पर भूजल का दोहन करती हैं, जिससे किसानों को सिंचाई वगैरह में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। गौरतलब है कि शीतल पेय बनाने वाली कंपनियां जितनी मात्रा में अपनी बोतलें तैयार करती हैं उससे करीब चार गुना अधिक पानी बर्बाद चला जाता है। वे जमीन के काफी गहरे तक जाकर पानी निकाल लेती हैं, जिससे आसपास के इलाकों में पेयजल और सिंचाई आदि के लिए पानी की किल्लत खड़ी हो जाती है।
सात-आठ साल पहले देश के विभिन्न हिस्सों में पेप्सी और कोला बनाने वाली कंपनियों के कारखानों के विरुद्ध बड़े आंदोलन हुए थे, जिनके चलते इन कंपनियों को अपने कई कारखाने हटाने पड़े थे। मगर केंद्रीय भूजल प्राधिकरण और पर्यावरण पर निगरानी रखने वाले महकमों की उदासीनता के चलते ऐसे कारखाने फिर से अपने पांव पसारने लगे।
शीतल पेय बनाने वाली कंपनियों के खिलाफ अनेक कारणों से आंदोलन चलते रहे हैं। एक तो इनमें इस्तेमाल होने वाली सामग्री का खासकर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभाव को लेकर। दूसरे, भूजल के मनमाने दोहन पर आपत्ति जताई जाती रही है। फिर इन कारखानों से निकलने वाला गंदा पानी आसपास के इलाकों में फैल कर उपजाऊ भूमि की उर्वरा शक्ति नष्ट कर देता है।
मगर इन कंपनियों का रसूख ऐसा है कि इनके खिलाफ सरकारें आज तक कोई कठोर फैसला नहीं कर पार्इं। एनजीटी के ताजा फैसले के बाद शीतल पेय बनाने वाली कंपनियां और भूजल तथा पर्यावरण आदि पर नजर रखने वाली संस्थाएं कितना सबक सीख पाएंगी, कहना मुश्किल है। उन कंपनियों का केवल एक मकसद होता है- मुनाफा कमाना, इसके लिए चाहे लोगों की सेहत और उनके वातावरण पर कितना भी प्रतिकूल असर क्यों न पड़ता हो।
भूजल के अतार्किक दोहन का मामला केवल शीतल पेय बनाने वाली कंपनियों तक सीमित नहीं है। बोतलबंद पानी का चलन भी पिछले कुछ सालों में तेजी से बढ़ा है और इसका देश में अरबों रुपए का कारोबार फैल चुका है। इस क्षेत्र में न सिर्फ अनेक नामी कंपनियां सक्रिय हैं, बल्कि चोरी-छिपे कारोबार करने वाले कारखाने भी छोटी-छोटी जगहों पर चल रहे हैं। शुद्ध पेयजल की कमी के चलते इस कारोबार ने जोर पकड़ा है।
बोतलबंद पानी बनाने वाली कंपनियां भी ज्यादातर भूजल को ही शुद्ध करती हैं। कुछ साल पहले दिल्ली में छापेमारी के दौरान ऐसे अनेक अवैध कारखानों को पकड़ा गया था, जो या तो मनमाने ढंग से भूजल का दोहन कर रहे थे या जल बोर्ड के पानी का चोरी कर रहे थे। छिपी बात नहीं है कि इस तरह की मनमानियां इसलिए चलती रहती हैं कि इन पर नजर रखने वाले महकमे लोभ में आंखें बंद किए रहते हैं। उनकी आंखें कब खुलेंगी, कहना मुश्किल है।