अनुराग का सियासी निवेश-4

दिल्ली समागम में हिमाचल की राजनीति का सबसे बड़ा दांव अकेले अनुराग ठाकुर पर नहीं खेला जा रहा, लेकिन प्रदेश का अतिधु्रवीकरण हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में दिखाई दे रहा है

Update: 2021-08-27 07:30 GMT

दिल्ली समागम में हिमाचल की राजनीति का सबसे बड़ा दांव अकेले अनुराग ठाकुर पर नहीं खेला जा रहा, लेकिन प्रदेश का अतिधु्रवीकरण हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में दिखाई दे रहा है। पहले से ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री और वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में जगत प्रकाश नड्डा का कद तथा पद सीधे हिमाचल सरकार में संगठनात्मक ताकत देख रहा है और अब युवा केंद्रीय मंत्री के रूप में स्तरोन्नत अनुराग का कार्यक्षेत्र भी हमीरपुर संसदीय क्षेत्र की प्रतिभा निखार रहा है। राजनीति का एक ऐसा समुद्र वर्तमान सरकार में भी कई टापुओं से नजर आ रहा है। पहली बार मंडी जिला के केंद्र में सत्ता का मध्यमार्ग सफल हो रहा है, तो इस आधार प्रादेशिक संतुलन की दाईं और बाईं भुजाओं पर तवज्जो देने की जरूरत है। खास तौर पर कांगड़ा की भुजा अगर नहीं बचाई, तो जयराम सरकार के चुनावी आत्मबल को ठेस लगेगी। यहां कांगड़ा के नए श£ोकाचारण में कांगे्रस के अलावा केंद्रीय मंत्री का दौरा भी दुखती रगों पर हाथ रखता हुआ गुजर गया, तो सत्ता की राजनीति से अकालग्रस्त यह जिला खुद को पैबंदों से मुक्त करने की घडिय़ां गिन रहा है।

यह वर्तमान सरकार के मंत्रिमंडल की झलक में दिखता है, जहां वरिष्ठता के आधार पर सिमट गए किशन कपूर और विपिन सिंह परमार का वजूद आहें भरता है, तो जातीय समीकरणों में अनदेखी के घाव लिए ओबीसी वर्ग त्रस्त है। प्रभावहीन मंत्री सरवीण चौधरी अपनी पींगें बढ़ाती हुई, हमीरपुर की तरफ देख रही हैं, तो कद्दावर नेता रमेश धवाला को बार-बार पछाड़ कर सत्तापक्ष के संदेश, ओबीसी वर्ग को आहत कर रहे हैं। सत्ता पक्ष उत्तर प्रदेश का हवाला लेते हुए विचार करे कि वहां भाजपा इसी वर्ग के आगे शीर्षासन कर रही है, तो ऐसे ही राजनीतिक खेत की आंधी से हिमाचल सरकार बेखबर नहीं रह सकती। अनुराग ठाकुर के दौरे के बाद मुख्यमंत्री को कांगड़ा में अनुराग राग के सामने अपनी सत्ता का आशीर्वाद दिखाना पड़ेगा। आशीर्वाद यात्रा के बाद सत्ता के आशीर्वाद का हिसाब हिमाचल में होगा, तो भाजपा का युवा चेहरा समीकरण बदलेगा। भाजपा के भीतर न केवल दो तरह के युवा चेहरे दिखाई दे रहे हैं, बल्कि इस शिनाख्त में पार्टी ने अपनों का ही एक बड़ा वर्ग निराश कर दिया है। हिमाचल की वर्तमान सत्ता के भीतर विद्यार्थी परिषद का दिल जितनी मजबूती से धडक़ रहा है, उससे भी अधिक विषाद से भरा गैर एबीवीपी युवा विकल्प की तलाश में है।
अनुराग ठाकुर को मिले युवाओं के समर्थन में भाजपा का युवा विभाजन परिलक्षित हुआ है। साढ़े तीन साल की सत्ता के लिए अनुराग का स्वागत, अपने ही पाले में कुछ प्रश्र परोस गया। स्वागती भीड़ किसे नजरअंदाज कर रही थी या किसे गले लगा रही थी और यह कैसे हुआ, इसके पीछे कई सारांश हैं। यह इसलिए भी कि जब हमीरपुर के गांधी चौक में वर्षों बाद नारेबाजी हो रही थी, तो भीड़ की भाव भंगिमा से विभोर आंखें छलक आईं। यह वही हमीरपुर है जिसने विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री का पद उछाल दिया था और अब यही हमीरपुर अगर कह रहा है,'देखो, देखो कौन आया। …शेर आया, शेर आया', तो यह महज स्वागत या आशीर्वाद की भाषा नहीं, बल्कि बस्तियां जगाने का संकल्प माना जा सकता है। प्रश्र हिमाचल की जनता को खोजने हैं कि क्या आशीर्वाद यात्रा सहज, स्वाभाविक, सहायक, सर्वव्यापक रही या राजनीतिक रेवड़ को हांकने की कोई नई सूचना थी। आज तक के केंद्रीय मंत्रियों से अलग इस यात्रा का अलख क्यों सुनाई दे रहा है। क्यों भीड़ किसी राजनीतिक यात्रा पर केंद्रित व आश्रित दिखाई दी। क्यों ऐसा लगा कि राज्य सरकार ने विकास के कई प्रश्र अधूरे छोड़ दिए या अब कोई शेर वाकई आ गया है। क्या जनता को कोई शेर चाहिए या जनता किसी भेड़ को शिकार होते हुए फिर से देखना चाहेगी। भेड़ को बचने की जरूरत पैदा हो रही है, तो भाजपा को स्पष्ट करना होगा कि उसके नए नाटक में 'शेर और भेड़ का यह मामला क्यों पैदा हो रहा है।

 दिव्याहिमाचल 

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