हमारी सभ्यता को लेकर पक्षपाती रुख रखते हैं एआई प्लेटफॉर्म

ओपिनियन

Update: 2022-05-18 09:11 GMT
राजीव मल्होत्रा का कॉलम: 
भारत की सामूहिक पहचान अभी भी कई वर्षों के उपनिवेशीकरण के विनाश के बोझ तले दबी है। लोग इस बात को लेकर भ्रांति में हैं कि आखिर वे हैं कौन? लोगों की सामूहिक चेतना और आधुनिक भारतीय संस्थानों के दृष्टिकोण को स्वदेशी दर्शन से तराशा जाना चाहिए।
हमारे मार्गदर्शी सिद्धांतों को संगठित करना चाहिए। साथ ही मौजूदा समय के लिहाज से उनका लचीला और प्रासंगिक होना भी आवश्यक है। परंतु आज के नीति निर्माण में पारम्परिक शिक्षा के पहलुओं को उपयोग में लेने पर थोड़ा भी गंभीर कार्य नहीं हुआ है।
यह मुद्दा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से संबंधित है क्योंकि एआई मंच सभ्यता को लेकर पक्षपाती होते हैं न कि निष्पक्ष। मशीन लर्निंग प्रणालियों में कुछ अंतर्निहित मूल्यों, मानकों एवं आदर्शों को एल्गोरिदम को प्रशिक्षण देने के लिए रखा जाता है। एआई मॉडलों में अंतःस्थापित विचारधारा की परिभाषा उन लोगों द्वारा दी जाती है जो उन मॉडलों पर नियंत्रण करते हैं।
वर्तमान में यह अमेरिका या चीन आधारित वैश्विक दृष्टिकोण से संचालित है। अमेरिकी डिजिटल कंपनियां उन सामाजिक-राजनैतिक धारणाओं तथा गाथाओं का समर्थन करती हैं जो उनके मालिकों को अच्छी लगती हैं; चीन में यह निर्णय सरकार करती है।
भारत ने अपनी महागाथा को विकसित करने का एक महत्वपूर्ण अवसर खो दिया है, जो कि संभवतः आधारभूत रूप में उसके अपने एआई मंचों के निर्माण की पूर्ति करती। भारतीय समाज के विशिष्ट वर्गों ने अमेरिकी-चीनी कंपनियों के डिजिटल मंचों को अंगीकृत कर लिया है।
एआई के आने से पहले भी भारत के योजनाकारों ने पुराने हो गए यूरोपीय समाजवादी और उदारवादी सिद्धांतों की खिचड़ी पर भरोसा किया था, जिसमें थोड़े-बहुत पारंपरिक विचार और वैदिक शब्दावली भी डाल दी गई थी। स्वतंत्र भारत ने अंग्रेजों के कई मानकों को निरंतर चलाए रखा है जिसमें शिक्षा व्यवस्था एवं न्याय व्यवस्था सम्मिलित हैं।
यहां तक कि आज भी भारतीय कॉलेजों में पढ़ाए जाने वाले समाजविज्ञान के ढांचे भारतीय समाज के विश्लेषण हेतु पश्चिमी रूपरेखाओं का प्रयोग करते हैं। ये वैदिक परंपराओं को पुरातन और मृत बताते हैं। ये बिल्कुल वैसे ही होता है जैसे उपनिवेशवादियों ने अतीत में किया था।
समाज विज्ञान में व्याप्त उपनिवेशीकरण से मुक्ति का कार्य अभी आरम्भ भी नहीं हुआ है। दुर्भाग्यवश, जब-जब मैंने इस उपनिवेशी पद्धति का खंडन करते हुए भारतीय परम्पराओं पर आधारित नई योजनाएं प्रस्तुत की, तो मुझसे कहा गया कि सामाजिक विज्ञान की सभी योजनाओं को स्थापित कार्य-प्रणालियों का ही अनुपालन करना होगा।
एआई प्रणालियां, जो वर्तमान में फल-फूल रही हैं, उनका उद्देश्य ऐसे भ्रमित लोगों को आकर्षित और प्रभावित करना है, जो अपने धर्म को त्याग चुके हैं और अपनी जड़ों से कट चुके हैं। अमेरिकी डिजिटल मंचों की मशीन अध्ययन प्रणालियां लोगों की व्यक्तिगत प्रोफाइलों का निर्माण करने हेतु बिग-डाटा का प्रयोग कर रही हैं, जिसमें उनकी काम एवं अर्थ से संबंधित दुर्बलताओं के लेखे-जोखे का एक अद्वितीय रेखा-चित्र बनाया जा रहा है।
प्रत्येक व्यक्ति और समूह का ध्यानपूर्वक निरीक्षण किया जा रहा है एवं उनको मॉडल में ढाला जा रहा है। लोगों की कमजोरियों का लाभ उठाते हुए एआई प्रणालियां, सरलता से उन्हें व्यावसायिक एवं राजनैतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रभावित करती हैं। इसके विपरीत, जो लोग धर्म से जुड़े हुए हैं उनकी चेतना उन्नत रहती है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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