आतंक के विरुद्ध

आतंक के विरुद्धजम्मू-कश्मीर में थोड़े दिनों के अंतराल पर आतंकी संगठनों की हरकतें अब आम घटना की तरह होती जा रही हैं।

Update: 2021-03-24 01:19 GMT

आतंक के विरुद्धजम्मू-कश्मीर में थोड़े दिनों के अंतराल पर आतंकी संगठनों की हरकतें अब आम घटना की तरह होती जा रही हैं। लेकिन बीते कुछ समय में एक बड़ा फर्क यह आया है कि पहले जहां हमला करने के बाद आतंकियों के गिरोह आसानी से बच निकलते थे, अब उन्हें भारतीय सुरक्षा बलों की ओर से जवाबी हमले की तीव्रता का सामना करना पड़ता है। खासतौर पर पुलवामा में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के चालीस से ज्यादा जवानों की मौत की घटना के बाद अब आतंकियों के लिए कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है।

चौकसी और निगरानी का दायरा बढ़ाने के साथ अब किसी आतंकी घटना को अंजाम देने के पहले ही सुरक्षा बल तेजी से कार्रवाई करते हैं और हमले को या तो नाकाम करते हैं या फिर आतंकियों को मार डाला जाता है। इसी क्रम में मंगलवार को एक और बड़ी कामयाबी तब मिली, जब जम्मू-कश्मीर में शोपियां के मनिहाल गांव में लश्कर-ए-तैयबा के चार आतंकियों के छिपे होने की खुफिया जानकारी के आधार पर सुरक्षा बलों ने धावा बोला। तलाशी अभियान के दौरान आतंकियों ने सुरक्षा बलों पर गोलीबारी शुरू कर दी। इसके बाद जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने चार आतंकियों को मार गिराया।
जम्मू-कश्मीर के समूचे इलाके में आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिहाज से इस ताजा घटना को सुरक्षा बलों की एक बड़ी कामयाबी के तौर पर देखा जा रहा है। ऐसा इसलिए भी कहा जा सकता है कि जब से जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति हुई है, तब से वहां काम कर रहे अलगाववादी समूह कभी आम लोगों के बीच भावनाएं भड़का कर तो कभी आतंकी संगठनों का सहारा लेकर इलाके में उथल-पुथल पैदा करने की कोशिश में हैं।
कुछ समय के अंतराल पर छोटी या बड़ी आतंकी वारदात के सहारे वे जम्मू-कश्मीर में अस्थिरता पैदा होने जैसा माहौल बनाना चाहते हैं, ताकि विश्व समुदाय के सामने भारत की गलत छवि पेश की जा सके। लेकिन सुरक्षा बलों ने अलगाववादी और आतंकी संगठनों के तालमेल से चलने वाली ऐसी राजनीति की हकीकत को समझा है और वे समय रहते जरूरी कार्रवाई करके ऐसी मंशा को ध्वस्त करते हैं।
सवाल है कि लश्कर-ए-तैयबा के जिन चार आतंकियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया, उनका मकसद इसके सिवा और क्या रहा होगा कि वे कहीं मासूम और निर्दोष लोगों या फिर सुरक्षा बलों पर हमला करके इस इलाके में अराजकता फैलने या अस्थिर होने का संदेश दुनिया को दे सकें। जबकि पिछले कुछ समय से वहां अब पहले के मुकाबले जन-जीवन सामान्य होने लगा है और लोग खुद को सहज महसूस करने लगे हैं। मगर राज्य में स्थिरता और शांति शायद अलगाववादी और आतंकी संगठनों के लिए अनुकूल स्थिति नहीं है।
इतना तय है कि जम्मू-कश्मीर और सीमा के समूचे इलाके में भारतीय सुरक्षा बलों की चौकसी और निगरानी का जो स्तर है, उसमें आतंकी संगठनों का पांव जमाना संभव नहीं है। यह छिपा नहीं है कि लश्कर-ए-तैयबा या फिर जैश-ए-मुहम्मद जैसे आतंकी संगठन पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी गतिविधियां संचालित करते रहे हैं। इस तरह की हरकतों के सबूत सामने आने पर पाकिस्तान को अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फजीहत झेलनी पड़ती है।
इसके बावजूद अब भी वह इन आतंकी संगठनों को संरक्षण देने की कोशिश करता है। इसके अलावा, हाल में मारे गए कुछ आतंकियों के पास से बुलेट प्रूफ जैकेट तक को भेदने वाली जिस तरह की चीनी गोलियां और सामग्री बरामद की जा रही हैं, उससे ऐसा लगता है कि अब चीन की ओर से भी इस तरह की आतंकी हरकतों को बढ़ावा दिया जाने लगा है। जाहिर है, भारतीय सुरक्षा बलों के सामने आतंकी संगठनों की चुनौतियां अब भी कम नहीं हुई हैं।

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