कभी-कभी अनुशासन बनाए रखने के लिए कठोर कदम उठाना अपरिहार्य हो जाता है : उपराष्ट्रपति

Update: 2023-07-24 16:26 GMT
 
नई दिल्ली (आईएएनएस)। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अनुशासन की महत्ता पर बल देते हुए कहा कि कभी-कभी अनुशासन बनाए रखने के लिए कठोर कदम उठाना अपरिहार्य हो जाता है, अन्यथा लोकतंत्र के मंदिरों की प्रतिष्ठा का क्षय होने लगेगा। राज्य सभा के सभापति के रूप में उनका प्रयास रहा है कि लोकतंत्र के मंदिरों में अनुशासन रहे। अनुशासन के बिना विकास संभव ही नहीं।
उपराष्ट्रपति सोमवार को भारतीय वन सेवा के 54वें बैच के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित कर रहे थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि सरकार द्वारा उठाए गए हाल के कदमों से बिचौलिए, पावर ब्रोकर समाप्त हो गए हैं। अब जब कानून अपना काम कर रहा है तो भ्रष्टाचार में फंसे लोगों पर आंच आ रही है। कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए सड़क पर प्रदर्शन किया जाना कैसे सही ठहराया जा सकता है ! भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों को कानून की गिरफ्त से कैसे छूट दी जा सकती है!
आर्थिक राष्ट्रवाद की वकालत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि थोड़े से लाभ के लिए उपभोक्ताओं तथा व्यापारियों द्वारा विदेशी सामान को प्राथमिकता देना सही नहीं। हम आर्थिक राष्ट्रवाद को नजरंदाज नहीं कर सकते, देश की आर्थिक प्रगति इसी पर निर्भर करेगी।
धनखड़ ने कहा कि सभी को भारत की गौरवशाली ऐतिहासिक उपलब्धियों का गर्व होना चाहिए। विकास और प्रकृति के संरक्षण के बीच संतुलन की जरूरत पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि मानव प्रकृति का ट्रस्टी है। प्रकृति सदैव भारतीय सभ्यता का अंग रही है, प्रकृति का आदर करना हमारे संस्कारों का हिस्सा है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय वन सेवा के अधिकारी के रूप में वन और वन में रहने वाले मनुष्यों, तथा अन्य प्राणियों की सेवा करने का अवसर मिलेगा। प्रशिक्षु अधिकारियों से अपेक्षा की कि वन में रहने वाले समुदायों की विशिष्ट प्रकृति सम्मत जीवन शैली के प्रति संवेदनशील रहें और उससे सीखें। भारतीय वन सेवा के 54वें बैच के 102 प्रशिक्षु अधिकारियों में भूटान के 2 अधिकारी भी सम्मिलित हैं।
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