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यूक्रेन जंग में फंसे पुतिन क्या कूटनीतिक मोर्चें पर हुए विफल? पढ़ें पूरी खबर
Gulabi Jagat
18 May 2022 1:52 PM GMT
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फिनलैंड और स्वीडन की नाटो संगठन में शामिल होने की चर्चा के साथ यह सवाल खड़े हो रहे हैं
Russia Finland Crisis: फिनलैंड और स्वीडन की नाटो संगठन में शामिल होने की चर्चा के साथ यह सवाल खड़े हो रहे हैं कि क्या रूसी राष्ट्रपति पुतिन कूटनीतिक जंग हारते हुए नजर आ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस यूक्रेन जंग के नतीजे चाहे जो भी हो, इस युद्ध में चाहे यूक्रेनी सेना का जितना भी बड़ा नुकसान हुआ हो, लेकिन कूटनीतिक मोर्चे पर राष्ट्रपति पुतिन इस जंग को हारते हुए नजर आ रहे हैं। इस जंग के बाद यूरोपीय देश रूस के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। खासकर इसमें वो मुल्क शामिल हैं जो सोवियत संघ के विघटन के बाद गुटनिरपेक्ष की नीति का अनुसरण किए हुए हैं। इसमें से अधिकतर राष्ट्रों में असुरक्षा की भावना घर कर गई है। यही कारण है कि अपनी सुरक्षा के मद्देनजर ये मुल्क नाटो संगठन की ओर प्रेरित हो रहे हैं।
1- प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि रूस यूक्रेन युद्ध के बाद रूस से सटे यूरोपीय देशों में जबरदस्त असुरक्षा की भावना घर कर गई है। इसके चलते वह अमेरिका के प्रभुत्व वाले नाटो संगठन की ओर आकर्षित हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन, फिनलैंड, स्वीडन या अन्य यूरोपीय देश इस वक्त रूस की आक्रमकता से भयभीत है। रूस से सटे यूरोपीय राष्ट्र इस समय अपनी सुरक्षा को लेकर चिंतित है। ऐसे में नाटो उनको सुरक्षा का सबसे बड़ा कवच दिखाई देता है। रूस की इस सामरिक रणनीति का असर उसकी कूटनीति पर भी पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि एक-एक कर सभी गुटनिरपेक्ष यूरोपीय राष्ट्रों का झुकाव नाटो की ओर है।
2- उन्होंने कहा कि सामरिक दृष्टिकोण से यह रूस के लिए कतई हितकर नहीं है। अगर रूस से सटे यूरोपीय देश एक-एक कर नाटो संगठन में शामिल हो गए तो रूसी सुरक्षा के लिहाज से यह काफी खतरनाक होगा। उन्होंने कहा रूस यूक्रेन जंग इसी की उपज है। यूक्रेन रूस के भय से नाटो की सदस्यता ग्रहण करना चाहता है। इसका खमियाजा उसे भुगतना पड़ा। रूसी सेना ने यूक्रेन पर हमला बोल दिया। उन्होंने कहा कि जंग के दौरान रूस अन्य यूरोपीय देशों को यह विश्वास दिलाने में नाकाम रहा कि बाकी यूरोपीय राष्ट्रों से उसका कोई मतलब नहीं है। रूस यह भरोसा दिलाने में विफल रहा कि गुटनिपेक्ष देशों के साथ वह पूरी तरह से खड़ा है।
3- प्रो पंत इससे पुतिन की कूटनीतिक विफलता के रूप में देखते हैं। उनका कहना है कि यूक्रेन जंग के दौरान पुतिन कूटनीतिक मोर्चे पर पूरी तरह से विफल रहे हैं। यही कारण है कि आज रूस से सटे यूरोपीय देश रूस के खिलाफ खड़े हो गए हैं। उन्होंने कहा कि अगर फिनलैंड और स्वीडन नाटो संगठन में शामिल हो जाते हैं तो यह पुतिन की एक बड़ी कूटनीतिक हार होगी। यूक्रेन जंग के दौरान रूस ने कई गुटनिरपेक्ष देशों को अपना दुश्मन बना लिया। यह रूस के सामरिक हितों के पूरी तरह से प्रतिकूल है।
4- उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हुआ तो यह रूस की सुरक्षा के लिए घातक होगा। अगर यूरोपीय देश क्रम से नाटो की सदस्यता ग्रहण करते गए तो रूस की सीमा रेखा तक नाटो के सैनिकों की दस्तक हो जाएगी। रूस इसे चाहकर भी नहीं रोक सकता। उन्होंने कहा कि नाटो सेना में अमेरिका का वर्चस्व है, ऐसे में यह जंग सीधे अमेरिका और मित्र राष्ट्रों के बीच होगी। जंग की यह स्थिति रूस के लिए हितकारी नहीं होगी। रूस चारों ओर से नाटो सैनिकों से घिर जाएगा। ऐसी स्थिति में जंग के परिणामों को समझा जा सकता है।
5- रूस में बफर जोन का कांस्पेट पूरी तरह से समाप्त हो जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी यूक्रेन फिनलैंड और स्वीडन नाटो के सदस्य देश नहीं हैं। यह एक तरह से रूस और नाटो सेना के बीच बफर जोन का काम करते हैं। लेकिन ये मुल्क नाटो में शामिल हो जाते हैं तो नाटो की सेना रूस की सीमा के निकट पहुंच जाएगी। ऐसे में जरा सी हलचल और एक छोटा सा विवाद भी एक बड़े जंग में तब्दील हो सकता है।
रूस के डर से 12 सदस्यीय नाटो अब 32 होने जा रहा
वर्ष 1949 में शीत युद्ध की शुरुआत में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में केवल 12 सदस्य थे। 1991 के सोवियत पतन के बाद 11 पूर्वी यूरोपीय राष्ट्र जो मास्को के सैटेलाइट स्टेट हुआ करते थे और तीन सोवियत देश इस गठबंधन में शामिल हो गए। ऐसे में सदस्य देशों की संख्या अचानक बढ़कर 26 हो गई थी। बाद में एक-एक कर इस गठबंधन में देश जुड़ते गए और नाटो के सदस्य देशों की संख्या 30 तक पहुंच गई। अब फिनलैंड और स्वीडन के शामिल होते ही यह आंकड़ा बढ़कर 32 हो जाएगा। नाटो के विस्तार को रूस शुरू से अपने अस्तित्व के खतरे के रूप में देखता है। पुतिन ने इसी कारण 24 फरवरी को यूक्रेन में स्पेशल मिलिट्री आपरेशन का ऐलान किया था। ऐसे में फिनलैंड और स्वीडन के नाटो में शामिल होने के ऐलान को रूस के लिए एक बड़ी हार के रूप में देखा जा रहा है।
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