धर्म-अध्यात्म

इस 10 जीवनशैली को अपनाएं और सुरक्षित रहें

Apurva Srivastav
30 April 2021 1:33 PM GMT
इस 10 जीवनशैली को अपनाएं और सुरक्षित रहें
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जीवन शैली को अपनाकर आप कोरोना संक्रमण से खुद को बचाकर रख सकते हैं।

कोरोना वायरस सचमुच घातक है, लेकिन इससे संक्रमित लोग ठीक भी हो गए हैं। यदि आपने लोगों से मिलना-जुलना और भीड़ वाले क्षेत्र में जाना छोड़ दिया है तो सबसे बड़ा बचाव यही है। इसके अलावा भारतीय संस्कृति मैं बताई गई जीवन शैली को अपनाकर आप कोरोना संक्रमण से खुद को बचाकर रख सकते हैं।

1. उपवास : एक दिन का पूर्ण उपवास या व्रत हमारे भीतर के रोगाणु और विषैले पदार्थ को बाहर निकालकर हमारी प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। यदि आप वृद्ध हैं तो आप एक समय भोजन करके दूसरे समय ज्यूस ले सकते हैं। इस दौरान नारियल पानी लें और एक बाल हरड़ का सेवन करें। बाल हरड़ को खाना नहीं बल्कि चूसना है। यह आपके शरीर के टॉक्सिन्स को बाहर कर देगी।
2. प्राणायाम : प्राणायाम से हमारे फेफड़ों की क्षमता बढ़ती है। यदि आप घर में ही रहकर पूरक अर्थात श्वास अंदर लेने की क्रिया कुंभक अर्थात श्वास को अंदर रोकने की क्रिया और रेचक अर्थात श्‍वास धीरे-धीरे छोड़ने की क्रिया। पूरक, कुंभक और रेचक की आवृत्ति को अच्छे से समझकर प्रतिदिन यह प्राणायाम करने से रोग दूर हो जाते हैं। इसके बाद आप भ्रस्त्रिका, कपालभाती, शीतली, शीतकारी और भ्रामरी प्राणायाम को एड कर लें। यह आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएगा। आप चाहें तो आप प्रतिदिन घर में ही सूर्य नमस्कार की 12 स्टेप 12 बार करें इससे आप हर तरह से फीट होकर रोगों से लड़ने के लिए तैयार रहेंगे।
3. रस : अन्य से बढ़कर रस को ब्रह्म माना है। तुलसी, अदरक, नारियल, संतरा, नीम, धनिया, हल्दी, नींबू, शहतूत, शहद, बेल आदि का ज्यूस लेते रहने से सभी तरह के विटामिन और मिनरल मिलते रहते हैं। आप चाहे तो गिलोय, कड़वा चिरायता को मिलाकर काढ़ा भी बनाकर सप्ताह में 2 बार पी सकते हैं। प्राचीन भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल के लोग समय समय पर इसका सेवन करते रहते थे।
4. धूपम : प्राचीन भारत के लोग घर में समय समय पर घर में धूप देते रहते थे। धूप अर्थात पवित्र लकड़ियों नीम, कर्पूर, गुग्गल आदि को मिलाकर सभी को कंडे पर जलाकर घर में धुआं करना होता है।
5. अन्य-जल : पूर्ण रूप से शाकाहार जीवनशैली अपनाएं और सूर्यास्त के पूर्व की भोजन कर लें। मिताहार करें, मिताहार का अर्थ सीमित आहार। मिताहार के अंतर्गत भोजन ताजा, अच्छी प्रकार से घी आदि से चुपड़ा हुआ होना चाहिए। मसाले आदि का प्रयोग इतना हो कि भोजन की स्वाभाविक मधुरता बनी रहे। फल और हरी ताजा सब्जियों का प्रयोग करें। गेहूं की रोटी का कम ही प्रयोग करें। मक्का, जो और ज्वार के आटे की रोटी भी खाएं। उत्तम भोजन ही हमें रोगाणु से लड़ने की सुरक्षा और गारंटी देता है।
6. उषापान करें : उषा पान का आयुर्वेदिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। हमारे ऋषि-मुनि और प्राचीनकाल के लोग उषा पान करके सेहतमंद बने रहते थे।
प्राचीन भारत के लोग जल्दी सोते थे और जल्दी उठते थे। वे सभी सूर्योदय के पूर्व ही उठ जाते थे। आठ प्रहरों में से एक रात्रि के अंतिम प्रहर को उषा काल कहते हैं यह सूर्योदय के पूर्व का समय होता है। उस दौरान उठकर पानी पीने को ही उषा पान कहते हैं। इस काल में जानने पर जहां शुद्ध वायु मिलती है वहीं पानी पीने से शरीर में जमा मल तुरंत ही बाहर निकल जाता है। उषापान करने से कब्ज, अत्यधिक एसिडिटी और डाइस्पेसिया जैसे रोगों को खत्म करने में लाभ मिलता है।
7. तांबें में पीए पानी और पीतल या चांदी में खाएं खाना : तांबे के लोटे में पीए पानी। रात में तांबे के बरतन में रखा पानी सुबह पीएं तो अधिक लाभ होता है। वात, पित्त, कफ, हिचकी संबंधी कोई गंभीर रोग हो तो पानी ना पीएं। अल्सर जैसे कोई रोग हो तो भी पानी ना पीएं। पीतल के बर्तन में खाना खाने से खाने की गुणवत्ता बढ़ जाती है।
8. ध्यान करें : हालांकि प्राचीन भारत के लोग संध्यावंदन के साथ ध्यान करते थे और सूर्य को अर्घ्य देते थे। आप यदि यह नहीं कर सकते हैं तो कम से कम 5 मिनट के ध्यान को अपनी जीवन शैली का अंग बनाएं। यह भी नहीं कर सकते हैं तो अपने ईष्ट देव की प्रार्थना करें, पाठ करें या चालीसा पढ़ें।
9. प्रात: दौड़ना और रात में टहलना : प्रात: काल यदि दौड़ नहीं सकते तो तेज कदमों से चले, परंतु ध्यान रखें कि रात में किसी भी प्रकार से कसरत, व्यायाम ना करें बल्कि रात में टहलना सेहत के लिए फायदेमंद रहता है। खासकर भोजन करने के बाद थोड़ा टहल लें। कहते भी हैं कि सौ दवाई और एक घुमाई।
10. आत्मनिर्भर बनें : पुराने लोग कहते थे कि कोना, सोना, मौना और धोना जिसने भी अपनाया वह सुखी रहा। कोना अर्थात घर का एक कोना पकड़ लो वहीं रहो, ज्यादा इधर उधर मत घुमो, सोना अर्थात वहीं सोएं और नींद से समझौता ना करें। मौना अर्थात अधिक से अधिक मौन रहो, मौन रहने से मन की शक्ति बढ़ती और व्यक्ति विवादों से भी बचा रहता है। धोना अर्थात अपने कपड़े और शरीर को अच्छे से साफ सुधारा रखें। प्रतिदिन अच्छे से स्नान करें। पुराने लोग नाक, मुंह, घुटने, कोहनी, कान के पीछे, गर्दन के पीछे सहित सभी छिद्रों को अच्छे से साफ करते थे और अपना काम खुद ही करते थे।


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