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लाइफ स्टाइल
दिन में सोने की आदत बना सकती है डिमेंशिया का शिकार
Apurva Srivastav
18 April 2024 8:45 AM GMT
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लाइफस्टाइल : भागती-दौड़ती जिंदगी में हर कोई सिर्फ भागता नजर आ रहा है। इन दिनों काम का प्रेशर इस कदर बढ़ चुका है कि लोगों के पास खुद के लिए समय तक नहीं बचता। इतना ही नहीं तेजी से बदलती लाइफस्टाइल की वजह से आजकल लोगों के खाने-पीने की आदतें और स्लीप साइकिल (Sleep Cycle) भी काफी बदल चुका है। हेल्दी लाइफ के लिए सिर्फ अच्छा खानपान ही नहीं, बल्कि अच्छी नींद भी बेहद जरूरी है। हालांकि, काम के बोझ के चलते लोग कई बार रात में नींद पूरी नहीं पाते हैं और फिर दिन में इसकी पूर्ति करते हैं।
दिन की नींद कई लोगों को काफी पसंद होती है। इतना ही नहीं दिन की नींद कई लोगों की रूटीन का हिस्सा होती है। हालांकि, आपकी यह आदत आपके लिए हानिकारक साबित हो सकती है, क्योंकि दिन में सोने से आपको डिमेंशिया होने का खतरा बढ़ जाता है। इस बारे में खुद हेल्थ एक्सपर्ट ने जानकारी शेयर की है। आइए जानते हैं इस बारे में विस्तार से-
क्या कहती है स्टडी?
हैदराबाद के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट शेयर करते हुए बताया कि अगर आप सोचते हैं कि आप अपनी रात की नींद की भरपाई दिन में कर सकते हैं, तो आपकी यह सोच गलत हो सकती है। डॉ. सुधीर कहते हैं कि दिन की नींद शरीर की घड़ी के अनुरूप नहीं होती है और इससे डिमेंशिया समेत अन्य मानसिक विकारों का खतरा भी बढ़ जाता है। उन्होंने कहा, "दिन की नींद हल्की होती है, क्योंकि यह सर्कैडियन क्लॉक के साथ अलाइन नहीं करती है और इसलिए नींद के होमियोस्टैटिक फंक्शन को पूरा करने में विफल रहती है।"
कैसे बढ़ता डिमेंशिया का खतरा
डॉक्टर आगे कहते हैं कि यह तथ्य नाइट शिफ्ट में काम करने वाले वर्कर्स से जुड़ी कई स्टडीज से साबित हो चुका है, जो तनाव, मोटापा, कॉग्नेटिव डेफिशिट और न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों के बढ़ते जोखिम से ग्रस्त हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्लाइम्फैटिक सिस्टम, जो मस्तिष्क से प्रोटीन वेस्ट प्रोडक्ट्स को साफ करने के लिए जाना जाता है, नींद के दौरान सबसे ज्यादा सक्रिय होता है। ऐसे में जब नींद की कमी होती है, तो ग्लाइम्फैटिक सिस्टम फेलियर का सामना करता है, जिससे डिमेंशिया का खतरा बढ़ जाता है।
डिमेंशिया के लिए जिम्मेदार अन्य कारक
डॉ. सुधीर के मुताबिक ग्लाइम्फैटिक सिस्टम के फेल होने की वजह से दिमाग के विभिन्न हिस्सों में असामान्य प्रोटीन जमा हो जाता है, जिससे अल्जाइमर रोग (एडी) सहित कई न्यूरोडीजेनेरेटिव डिजीज हो जाते हैं। खराब नींद की गुणवत्ता के अलावा, उम्र, इनएक्टिव लाइफस्टाइल, हार्ट डिजीज, मोटापा, स्लीप एपनिया, सर्कैडियन मिसलिग्न्मेंट, नशा और डिप्रेशन ऐसे कारक भी ग्लाइम्फैटिक सिस्टम की फेलियर कारण बनते हैं। न्यूरोलॉजिस्ट आगे कहते हैं कि, "अच्छी नींद लेने वाले लंबे समय तक जीवित रहते हैं, उनका वजन कम होता है, मानसिक विकारों का खतरा कम होता है और कॉग्नेटिव रूप से लंबे समय तक बरकरार रहते हैं।"
क्यों जरूरी रात की दिन
उन्होंने कहा कि आदतन रात में अच्छी नींद लेने से कॉग्नेटिव फंक्शन बेहतर हो सकता है और डिमेंशिया और मानसिक विकारों का खतरा कम हो सकता है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि दिन में सोने से शरीर की नेचुरल स्लीप साइकिल खराब हो सकती है, जिससे मस्तिष्क में हानिकारक प्रोटीन का निर्माण हो सकता है, जो डिमेंशिया का एक ज्ञात जोखिम कारक है। इसके अलावा दिन में सोने से व्यक्ति इनएक्टिव लाइफस्टाइल का शिकार हो सकता है, जो डिमेंशिया का एक और जोखिम कारक है।
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Apurva Srivastav
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