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दुनियाभर में मंकीपॉक्स संक्रमण के 17 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं
By डॉ ईश्वर गिलाडा
दुनियाभर में मंकीपॉक्स संक्रमण के 17 हजार से अधिक मामले सामने आ चुके हैं. हमारे देश भी अनेक हिस्सों में इसके कुछ मामले आये हैं. भारत में स्मॉलपॉक्स की रोकथाम के लिए चलाया जा रहा टीकाकरण अभियान 1979 के आसपास पूरा हो गया था. जिन लोगों को यह टीका लगा है, उन्हें मंकीपॉक्स से 85 प्रतिशत के आसपास सुरक्षा मिल सकती है और शेष को गंभीर संक्रमण नहीं होगा. इसका मतलब यह है कि भारत में या अन्य जगहों पर जिन लोगों की आयु 42 साल से अधिक है, उन्हें समुचित संरक्षण है. जो इससे कम आयु के लोग हैं, उनमें भी सभी को स्मॉलपॉक्स टीका लगाने की जरूरत नहीं है. इसका टीका वैसे लोगों को दिया जा सकता है, जो वायरस से संक्रमित हो चुके हैं या जिनके संक्रमित होने की आशंका अधिक है. उल्लेखनीय है कि अधिकतर संक्रमण पुरुषों के परस्पर यौन संबंधों से फैल रहा है. दुनियाभर के 17 हजार से अधिक मामलों में संक्रमित महिलाओं और बच्चों की संख्या एक प्रतिशत के आसपास है.
कनाडा में मॉन्ट्रियल म्यूनिसिपल हेल्थ अथॉरिटी ने स्मॉलपॉक्स वैक्सीन वैसे लोगों को नि:शुल्क देना शुरू कर दिया है, जो यह समझ रहे हैं कि उनको मंकीपॉक्स संक्रमण हो सकता है. यह टीका वे लोग भी ले सकते हैं, जो वहां 29 जुलाई से शुरू हो रहे अंतरराष्ट्रीय एड्स सम्मेलन में भाग लेने के लिए गये हैं. यह समझा जाना चाहिए कि मंकीपॉक्स के लिए विशेष टीका उपलब्ध नहीं है, ऐसे में स्मॉलपॉक्स टीका सबसे अच्छा विकल्प हो सकता है. दुनिया में केवल दो ही कंपनियां हैं, जिनके पास अभी स्मॉलपॉक्स टीका बनाने की मंजूरी है और ये दोनों अमेरिका में हैं. वर्तमान स्थिति में मंकीपॉक्स से संक्रमित व्यक्ति के आसपास के लोगों को टीका देना प्रभावी हो सकता है. इसे 'रिंग वैक्सीनेशन' कहा जाता है. इससे बीमारी को बढ़ने से रोकने में मदद मिलेगी. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि वैश्विक स्तर पर स्मॉलपॉक्स टीके की बड़ी कमी है. दुनियाभर में इस टीके की जितनी जरूरत है, उसका 1-2 प्रतिशत टीका ही उपलब्ध है. इसी वजह से मैं कुछ सप्ताह से भारत सरकार और टीका निर्माताओं से स्मॉलपॉक्स टीका बनाना शुरू करने का निवेदन कर रहा हूं.
मंकीपॉक्स की रोकथाम करने के प्रयास में सबसे पहले यह समझना जरूरी है कि यह यौन संबंधों के माध्यम से फैल रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा मंकीपॉक्स को वैश्विक चिंता की स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित करना सराहनीय है. इससे इस बीमारी के बारे में जागरूकता का प्रसार होगा तथा समय रहते इसकी रोकथाम के उपाय हो सकेंगे, लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस बीमारी को विज्ञान, वास्तविकता और तर्कों के आधार पर विश्लेषित करना चाहिए तथा सही सूचना उपलब्ध करानी चाहिए. इस वैश्विक संस्थान को मंकीपॉक्स को यौन संबंधों से होने वाली बीमारी (एसटीडी) के रूप में चिह्नित करना चाहिए. यह जितना जल्दी होगा, इसे रोकने में उतनी ही आसानी होगी. जैसा कि पहले उल्लिखित किया गया है, अब तक विभिन्न देशों में जितने मामले सामने आये हैं, उनमें से 99 प्रतिशत मामले पुरुषों के बीच यौन संबंधों का परिणाम हैं. संक्रमितों में एक प्रतिशत के आसपास ही महिलाएं और बच्चे हैं. यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि यह बीमारी अब मनुष्य से मनुष्य को प्रसारित होने के चरण में पहुंच चुकी है और इसे अगर सही तरीके से रोकने की कोशिश नहीं की गयी, तो हमारे देश में आबादी के एक बड़े हिस्से में संक्रमण फैल सकता है.
मेरा स्पष्ट मानना है कि हमें इसे यौन संबंधों से होने वाले संक्रमण के रूप में देखना चाहिए तथा हमें स्मॉलपॉक्स के टीकों का उत्पादन शुरू कर देना चाहिए. इस बीमारी की रोकथाम के अभियान को राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) के जिम्मे कर दिया जाना चाहिए. मंकीपॉक्स संक्रमण कोविड संक्रमण से बहुत अलग मामला है. इसका संक्रमण लोगों के बेहद नजदीकी संपर्क, जिसमें यौन संबंध भी शामिल है, से फैलता है. इस बीमारी को मंकीपॉक्स कहना भी ठीक नहीं है, बल्कि इसे ह्यूमन पॉक्स कहा जाना चाहिए, क्योंकि यह एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में फैलता है. इस संबंध में हमने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र भी लिखा है. इस निवेदन पर विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी ध्यान देना चाहिए. संक्रमित लोगों के साथ किसी तरह का भेदभाव न हो, इसके लिए प्रयास किया जाना चाहिए. यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि बीमार लोगों और उनके परिजनों के मानवाधिकारों का हनन न हो.
दिल्ली में जो मंकीपॉक्स का संक्रमण सामने आया है, वह अन्य तीन मामलों से बिल्कुल अलग है. उस व्यक्ति ने हिमाचल प्रदेश की यात्रा की थी. इसका मतलब है कि उसे वहां से संक्रमण मिला है. ऐसे में उसका पूरा इतिहास और संपर्कों को जानना जरूरी है. इससे यह भी साफ होता है कि अब यह संक्रमण स्थानीय स्तर पर फैलने लगा है. विदेश यात्रा से आने वाले लोगों की निगरानी अपनी जगह सही है, पर केवल बाहर जाने को खतरे का कारक मानकर निश्चिंत नहीं हुआ जा सकता है. रोकथाम के अन्य उपायों तथा लोगों में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ हमें स्मॉलपॉक्स टीकों के उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. ऐसी आशंका है कि धनी देश सीमित रूप से उपलब्ध टीकों को ले लें और भारत जैसे देशों को मुश्किल का सामना करना पड़े.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
Gulabi Jagat
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