Apple टेक न्यूज़: ब्रिटेन की सरकार ने हाल ही में Apple को एक बैकडोर बनाने का आदेश दिया है जिसके ज़रिए एन्क्रिप्टेड iCloud बैकअप को एक्सेस किया जा सके। इससे कई टेक एनालिस्ट और एक्सपर्ट प्रभावित हुए हैं। हाल ही में मार्क गुरमन ने भी इस बारे में चेतावनी दी है। ऐसे में यह विश्व स्तर पर निजता और सुरक्षा को लेकर बड़ी चिंताएँ खड़ी कर सकता है। आपको बता दें कि यह कदम इन्वेस्टिगेटरी पॉवर्स एक्ट 2016 के तहत उठाया गया है, जो ब्रिटिश सुरक्षा एजेंसियों को किसी भी यूजर की फाइल को एक्सेस करने का अधिकार देगा। सबसे बड़ी बात यह है कि यूजर को इसके बारे में पता नहीं चलेगा।
Apple यूजर्स के लिए बड़ी परेशानी
हाल ही में The Verge की रिपोर्ट में इस बारे में जानकारी दी गई है। जैसा कि हम जानते हैं कि Apple के एडवांस्ड डेटा प्रोटेक्शन के तहत यूजर की निजता को एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन से सुरक्षित किया जाता है। यानी कंपनी या कोई और यूजर के डेटा को एक्सेस नहीं कर सकता। हालांकि, ब्रिटेन के नए आदेश के बाद Apple को या तो ब्रिटेन में ये सेवाएँ बंद करनी होंगी या इसके तहत सरकार को बैकडोर एंट्री देनी होगी।
Apple और सरकार के बीच विवाद
Apple अपने यूजर्स की निजता को लेकर हमेशा सतर्क रहता है। ऐसे में यूजर डेटा की मांग सरकार और एपल के बीच विवाद का कारण बन सकती है। एपल पहले भी कई बार साफ कर चुका है कि एक देश की सरकार को पूरी दुनिया के नागरिकों की एन्क्रिप्शन पॉलिसी तय करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। इस आदेश के खिलाफ एपल लागत और तकनीकी दिक्कतों के आधार पर अपील कर सकता है, लेकिन इसमें ज्यादा देरी नहीं की जा सकती। ब्रिटेन सरकार का कहना है कि एन्क्रिप्शन आतंकवाद और गंभीर अपराधों की जांच में बाधा डालता है। लेकिन टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स का मानना है कि एक बार एपल ने बैकडोर बना लिया तो इससे साइबर सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है और दूसरे देशों की सरकारें भी इसी तरह की मांग कर सकती हैं।
क्या दूसरी टेक कंपनियां भी प्रभावित होंगी?
गूगल और मेटा जैसी कंपनियों ने इस आदेश पर कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन अगर एपल इसे स्वीकार कर लेता है तो यह एक वैश्विक मिसाल बन सकता है, जिससे दूसरे देशों की सरकारें भी इसी तरह की मांग कर सकती हैं। यह मामला सिर्फ एपल और ब्रिटेन सरकार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया में डिजिटल प्राइवेसी और राष्ट्रीय सुरक्षा पर बहस को नया मोड़ दे सकता है। एपल और ब्रिटेन सरकार के बीच यह विवाद दिखाता है कि डिजिटल प्राइवेसी और सरकारी निगरानी के बीच संतुलन बनाना कितना मुश्किल है।