क्या होता अगर चाँद नहीं होता

Update: 2023-06-26 08:08 GMT
अजीब सवाल विज्ञान में भी होते हैं. ऐसा नहीं है कि केवल सामान्य, व्यवस्थित और नियमित सोच ही विज्ञान काहिस्सा रहा है. कई बार तो अजीब सवालों के जवाबों की तलाश ने ही नई वैज्ञानिक खोज के रास्ते बताएं हैं. वहीं कहते हैं कि सवाल कभी बेतुके नहीं होते हैं, उनके पूछने का समय, तरीका या स्थान गड़बड़ हो सकता है. ऐसा ही एक सवाल है जिसका वैज्ञानिक जवाब हो सकता है. क्या होता अगर चंद्रमा का अस्तित्व ही ना होता. ऐसे में हमारी जीवन कैसा होता आज से वह कितना अलग होता. या फिर आज दुनिया वैसी ही होती जैसी कि अभी है. आइए जानते हैं कि इस बारे में क्या कहता है विज्ञान?
अगर चंद्रमा नहीं होता तो शायद ऊपरी तौर पर ज्यादा कुछ अलग नहीं होता. रातों हमेशा तारों वाली होतीं या फिर बादल उनमें कुछ अंतर लाने का काम करते. चंद्रमा हम बचपन से देखते आ रहे हैं और उसके बारे में बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं. उनसे संबंधित कहानियां हमें सुनने को नहीं मिलती और सौंदर्य पर लिखी कविताओं में चांद की कभी उपमा ही नहीं दी जाती.लेकिन यह सोचना बहुत गलत होगा कि इनके अलावा किसी तरह का कोई अंतर नहीं होता.
चंद्रमा का निर्माण तब हुआ था जब पृथ्वी को बने करीब केवल 3 करोड़ साल का समय ही हुआ था. प्रचलित वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार, उस दौरान एक विशाल ग्रह जैसा पिंड पृथ्वी से टकाराया था जिससे पृथ्वी के मेंटल का एक हिस्सा पृथ्वी से अलग होकर चंद्रमा बन गाय था. उसके एक अरब साल बाद चंद्रमा की भूगर्भीय गतिविधि भी बंद हो गई थी.
ऐसे में लगता है कि चंद्रमा हमारे लिए कुछ नहीं कर रहा है. चंद्रमा के गायब होने या ना होने का एक असर यही होता कि चंद्रमा का ज्वारीय प्रभाव नहीं होता. यानि हमारे समुद्रों में ज्वारभाटा नहीं आते और समुद्र और महासागरों में ऊंची ऊंची लहरें दिखाई नहीं देते वे केवल तूफानों और तेज हवाओं के समय होतीं. लेकिन खगोलीय ज्वारीय बल के मामले में पृथ्वी केवल सूर्य के प्रभाव में होती.
ज्वारीय बल के कारण चंद्रमा ने सूर्य की बल को कम किया हुआ है और आज हमारी पृथ्वी के घूमने की गति वह कुछ ज्यादा होती और हमारे दिनों की लंबाई कुछ कम होती. चंद्रमा का प्रभाव पृथ्वी के घूर्णन की गति को धीमा करता है. अगर वह नहीं होता तो हमारे दिन केवल छह घंटे के होते और चौबीस घंटों में हम चार सूर्योदय और सूर्यास्त देख रहे होते.
सुनने में अजीब लगे, लेकिन केवल इसी बदलाव के बहुत ज्यादा नतीजे देखने को मिलते और पूरी की पूरी ही दुनिया बदल जाती. दुनिया में हवाओ और तूफानों की गति बहुत तेज हो जाती और हमारी शरीर की आंतरिक घड़ी भी बिलकुल अलग ही होती. इससे पूरे ग्रह के जीवों और उनके जीवन का विकास अलग ही तरह का हो जाता क्योंकि दिन की रोशनी और रात के अंधेरे दोनों का समय काफी कम होता.
जीवन की बहुत सारी प्रक्रियाएं या तो विकसित ही नहीं हो पाती या फिर बहुत ही अलग तरह से विकसित होतीं. चंद्रमा के गुरुत्वाकार्षण बल के कारण जो पृथ्वी के मध्य में पानी का गुबार फूला हुआ है वह भी नहीं होता यानी ध्रुवों पर भूमध्य क्षेत्र की तुलना में जो पानी कम है, नहीं होता और ध्रुवों पर ज्यादा पानी होता.
इसके अलावा चंद्रमा के ना होने से एक बड़ा बदालव पृथ्वी की धुरी के झुकाव का होता. अभी पृथ्वी की धुरी 23 डिग्री पर झुकी है, लेकिन इसमें योगदान चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण का है. उसके ना होने पर पृथ्वी का झुकाव या तो नहीं होता या फिर यूरेनस की तरह 97 डिग्री होता. शून्य डिग्री झुकाव होने पर ध्रुवों पर तो कभी सूर्य दिखाई ही नहीं देता और अगर 97 डिग्री का झुकाव एक हिस्से में 42 साल तक दिन और दूसरे हिस्से में 42 साल तक रात होती.
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