Science : धरती की बाहरी सतह शांत और स्थिर दिखती है, लेकिन इसके अंदर हमेशा उथल-पुथल रहती है। भूगर्भीय प्लेटों के टकराने से हर साल सैकड़ों भूकंप आते हैं। इस पर कई भूविज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि हमारी धरती 12 टेक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। जब ये प्लेटें आपस में टकराती हैं, तो जो ऊर्जा निकलती है, उससे भूकंप आते हैं।
प्लेटों के टकराने से तबाही होती है
धरती के नीचे मौजूद ये प्लेटें बहुत धीमी गति से घूमती रहती हैं। हर साल ये प्लेटें अपनी जगह से 4-5 मिमी खिसकती हैं। इस दौरान कुछ प्लेटें एक-दूसरे से दूर चली जाती हैं और कुछ एक-दूसरे के नीचे खिसक जाती हैं। खिसकने और टकराने की इसी प्रक्रिया के कारण भूकंप आते हैं।
भूकंप का केंद्र वह स्थान होता है, जहां धरती के अंदर चट्टानें टूटती या टकराती हैं। इसे फोकस या हाइपोसेंटर कहते हैं। भूकंप की ऊर्जा इसी केंद्र से तरंगों के रूप में फैलती है। जब ये तरंगें धरती की सतह पर पहुंचती हैं, तो कंपन महसूस होता है। यह ऊर्जा जिस स्थान पर सतह को काटती है, उसे केंद्र कहते हैं। यह स्थान भूकंप के सबसे नजदीक और सबसे प्रभावी है।
धरती के नीचे चट्टानें क्यों टूटती हैं
धरती की संरचना सात बड़े भू-भागों में विभाजित है, जैसे इंडो-ऑस्ट्रेलियाई भू-भाग, उत्तरी अमेरिकी भू-भाग और अफ्रीकी भू-भाग। इन भू-भागों के नीचे की चट्टानें अत्यधिक दबाव में हैं। जब यह दबाव एक सीमा से अधिक हो जाता है, तो चट्टानें टूट जाती हैं और वर्षों से संचित ऊर्जा निकल जाती है।
धरती की सतह विशाल प्लेटों से बनी है, जो महासागरों और महाद्वीपों तक फैली हुई हैं। इन परतों के नीचे मौजूद चट्टानें महासागर के नीचे भारी और महाद्वीपों के नीचे हल्की होती हैं। जब चट्टानें टूटती हैं, तो यह ऊर्जा सतह पर पहुँचती है और विनाश का कारण बनती है।
यह कितनी दूर तक विनाश करती है?
भूकंप का प्रभाव उसके केंद्र के पास के क्षेत्रों में सबसे अधिक महसूस किया जाता है। जैसे-जैसे केंद्र से दूरी बढ़ती है, झटकों की तीव्रता और क्षति का स्तर कम होता जाता है। अगर भूकंप का केंद्र गहराई पर है, तो झटकों का असर सतह पर कम महसूस होता है। लेकिन अगर केंद्र सतह के करीब है, तो इसका विनाशकारी प्रभाव अधिक होता है।