महासागरों के 'संधिक्षेत्र' का जीवन खतरे में, Global Warming बनी वजह

महासागरों का संधि क्षेत्र 200 से 1000 मीटर की गहराई के हिस्से में होता है

Update: 2021-03-14 16:21 GMT

महासागरों (Ocean) का संधि क्षेत्र (Twilight Zone) 200 से 1000 मीटर की गहराई के हिस्से में होता है. इन गहराइयों में पानी को कम सूर्य की रोशनी मिलती है इसलिए इन्हें ट्विलाइट जोन या संधि क्षेत्र कहते हैं. ताजा शोध में खुलासा हुआ है कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warminig) महासगरों के इस संधि क्षेत्र के जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है.

बहुत अलग होता है यहां पोषण
सागरों की गहराइयों में जीवों के पोषण हासिल करने का तरीका बदलने लगता है. इनमें से एक समुद्री बर्फ है. समुद्री बर्फ वे खाद्य और पोषक कण हैं जो हवा से गिर कर सागर के पानी की गहराइयों में डूबते चले जाते हैं. कार्डिफ यूनिवर्सटी के इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया है कि संधि क्षेत्र के सागरीय जीवन के विकास में समुद्री बर्फ बहुत अहम है.
नाजुक हो जाता है तापमान
अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने पाया कि उद्भव प्रक्रिया के दौरान जीव सतह से समुद्र की गहराइयों में चले जाते हैं. उन्होंने पाया कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि समुद्री बर्फ धीरे धीरे महासागरों की गहराई में जाने लगती है. इस मामले में पानी का तापमान एक नाजुक पहलू हो जाता है. गहराइयों में ठंडा पानी समुद्री बर्फ को लंबे समय तक सुरक्षित रख पाता है जिससे गहरे पानी में भोजन उपलब्ध हो पाता है.
पोषण चक्र में बाधक ग्लोबल वार्मिंग
ग्लोबल वार्मिंग इस चक्र में बाधा बनती दिखाई दे रही है. जैसे ही तापमान बढ़ता है , संधि क्षेत्र में पोषण और खाद्य जाल का पहुंचना प्रभावित हो जाता है. महासागरों के साथ ही इन इलाकों में समुद्री जीवन हमारे ग्रह के स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए बहुत अहम हैं.
जैविविधता का खजाना
यह आवास हमारे ग्रह के कुछ सबसे रहस्यमयी जीवों का घर है. इसमें कुछ प्लैंक्टोन से लेकर जैली मछलियां तक शामिल हैं. कार्डिफ यूनिवर्सिटी के मुताबिक यह जैवविविधता और बायोमास के छिपा हुआ खजाना है और इतना ही नहीं यह हमारे महासागरों के बाकी हिस्सों के स्वास्थ्य के लिए भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है.
1.5 करोड़ सालों में यह बदलाव
इस अध्ययन में समुद्र के तलहटी की मिट्टी से पाए गए खोल के छोटे जीवाश्म का विश्लेषण किया गया जिससे यह पता चल सके कि यहां कि जीवों का जीवन में समय के साथ कैसा और कितना बदलाव आया है. इस अध्ययन के दो लेखकों में से एक जीवाश्मविज्ञानी डॉ फ्लेविया बोसोकोलो गालाजो ने बताया, "हमारे अध्ययन के दौरान, हमने इस बात के प्रमाण पाए हैं कि पिछले 1.5 करोड़ सालों में कुछ प्रजातियां सतह से धीरे धीरे नीचों के इलाकों में विस्थापित होती गईं."
समुद्री बर्फ बनी भोजन का स्रोत
शोधकर्ताओं का लगता है कि यह बहुत अजीब बात है. उनका कहना है कि इस रहस्य की चाबी पानी के तापमान में है. उनके मुताबिक इस महासागोरं के अंदर का हिस्सा इस दौर में बहुत प्रमुखता से कम हुआ है. इस रेफ्रीजरेशन प्रभाव के कारण नीचे जाती हुई समुद्री बर्फ लंबे समय सुरक्षित रही और गहराई में डूबते रहते हुए भोजन प्रदान करती रही.
यही वजह रही कि ठंडक होने से इस क्षेत्र की गहराइयों में जीवन और विविधता पनपने का मौका मिला. लेकिन शोधकर्ताओं का कहना है कि इन नतीजों का हमारे महासागरों के गर्म होने से हमारे ग्रह के भविष्य के लिए चिंता का विषय हो सकते हैं. इस तरह के बदलाव पूरे ग्रह के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं
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