ग्लोबल वार्मिंग का कीटों पर पड़ रहा असर, आबादी तेजी से घट रही स्टडी में किया दावा
ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया पर प्रभाव डाल रहा है। लेकिन अब इसका प्रभाव कीड़े-मकौड़ों (Insects) पर भी पड़ने लगा है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | ग्लोबल वार्मिंग पूरी दुनिया पर प्रभाव डाल रहा है। लेकिन अब इसका प्रभाव कीड़े-मकौड़ों (Insects) पर भी पड़ने लगा है। एक नई रिसर्च में पता चला है कि गर्म जलवायु और कृषि में इस्तेमाल किए जा रहे खाद और दवाइयों के कारण उष्णकटिबंधीय हिस्सों में कीटों की आबादी लगभग आधी हो गई है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं ने 1992 से 2012 तक लगभग 20 हजार कीटों की प्रजातियों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि उच्च तीव्रता वाले कृषि क्षेत्र और ग्लोबल वार्मिंग वाले इलाकों में समान्य रूप से कीटों की संख्या 49 फीसदी कम थी।
शोध के प्रमुख लेखक डॉ चार्ली ओथवेट ने कहा कि अगर इसी तरह कीटों की आबादी कम होती रही तो यह हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकता है। क्योंकि कीड़े अक्सर स्थानीय इकोसिस्टम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे लोगों के स्वास्थ्य पर तो असर पड़ ही सकता है, खाद्य सुरक्षा का संकट भी खड़ा हो सकता है।
जल्द से जल्द एक्शन की जरूरत
टीम ने दुनियाभर में अलग-अलग जगहों पर जमीन के हिसाब से और तापमान के हिसाब से कीटों पर रिसर्च किया। उन्होंने आगे कहा कि हमारे निष्कर्ष से पता चलता है कि हमें कीटों को बचाने के लिए जल्द से जल्द एक्शन लेने की जरूरत है। कृषि विस्तार को धीमा करने के साथ-साथ क्लाइमेट चेंज के लिए कड़े कदम उठाने होंगे। उन्होंने कहा कि हमारी खोज भले ही बहुत छोटी हो, लेकिन इसका कारण है कि हमारे पास कुछ इलाकों से जुड़े पर्याप्त सबूत नहीं हैं। लेकिन तटीय क्षेत्रों में हमने पाया है कि कीटों की आबादी तेजी से घट रही है।
पेड़ों के कटने से भी कीटों की आबादी हो रही कम
टीम ने 17,889 कीट की प्रजातियों के लिए 756,879 रिकॉर्ड का विश्लेषण किया। इसके साथ ही ग्लोबल वार्मिंग से हुए परिवर्तन के बारे में भी उन्होंने पता लगाया। शोधकर्ताओं ने कहा कि तेजी से पेड़ काटे जा रहे हैं, जो गर्मी से बचने के लिए इन कीटों का ठिकाना होते हैं। पेड़ों का तेजी से कटना भी इनकी आबादी के लिए खतरा है।