मल्टीप्लेक्स चिप से बना बायो सेंसर
रिपोर्ट में आगे लिखा है कि रिसर्च करने वालों की टीम ने इसके लिए एक बायो सेंसर (Bio Sensor) का निर्माण किया है, जो कि एक मल्टीप्लेक्स चिप से बना है और ये एकसाथ कई सैंपल में कई पदार्थो की जांच कर सकता है. रिसर्चर्स (शोधकर्ताओं) का दावा है कि ये बायो सेंसर सिंथेटिक प्रोटीन आधारित है, जो एंटीबायोटिक्स से प्रतिक्रिया कर करंट (प्रवाह) में बदलाव पैदा करता है.
प्लाज्मा पर उतना ही सटीक परिणाम
शोधकर्ताओं का कहना है फ्यूचर में इस तरह के टेस्ट का इस्तेमाल इंफैक्शन से लड़ने के लिए व्यक्ति को दी जाने वाले एंटीबायोटिक की डोज के निर्धारण में किया जा सकता है. इससे बैक्टीरिया के प्रतिरोधी स्ट्रेन (Resistant strains) डेवलप होने के रिस्क को कम किया जा सकता है. रिसर्च करने वालों ने इस बायो सेंसर का टेस्ट एंटीबायोटिक्स दिए गए सुअरों के ब्लड, प्लाज्मा, यूरिन, स्लाइवा व सांस पर किया है. इसके परिणाम को प्लाज्मा पर उतना ही सटीक पाया गया, जितना कि मानक मेडिकल प्रयोगशाला प्रक्रिया (Standard Medical Laboratory Procedures) में होता है. जबकि इसके पहले छोड़ी गई सांस के नमूने से एंटीबायोटिक का लेवल मापना संभव नहीं था.
रिसर्च टीम के प्रमुख डाक्टर कैन डिंसर (Dr Can Dincer) के अनुसार अब तक सांस से सिर्फ एंटीबायोटिक्स की मौजूदगी का पता लगाया जा सकता था. लेकिन हमारे माइक्रोफ्लूडिक चिप (Microfluidic chip) के जरिये सिंथेटिक प्रोटीन से हम सांस में न्यूनतम कंसंट्रेशन का भी पता लगा सकते हैं और उसे ब्लड वैल्यू के साथ जोड़ा जा सकता है.
क्यों जरूरी है दवा की डोज तय करना
किसी भी बीमारी के इलाज में डाक्टरों के लिए किसी व्यक्ति विशेष के लिए एंटीबायोटिक्स का लेवल तय करना जरूरी होता है. और ये तय होता है रोगी के घाव, आर्गन फेल्यर या मौत के रिस्क के आधार पर. कम मात्र में एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल बैक्टीरिया को रूपांतरित (म्यूटेट) होने का मौका देता है, जिससे बैक्टीरिया दवा के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर लेता है और उस दवा का असर कम हो जाता है.
बायो सेंसर कैसे करता है काम
माइक्रोफ्लूडिक बायो सेंसर (Microfluidic Bio Sensor) में मौजूद प्रोटीन पेनिसिलिन (protein penicillin) एंटीबायोटिक्स के बीटा-लैक्टम को पहचान सकता है. नमूने में एंटीबायोटिक तथा एंजाइम से जुड़ा बीटा लैक्टम में बैक्टीरियल प्रोटीन को बांधने की प्रतिस्पर्धा रहती है. इससे बैट्री की तरह करंट चेंज पैदा होता है. सैंपल में ज्यादा एंटीबायोटिक होने पर एंजाइम उत्पाद कम मात्र में पैदा होता है, जिससे करंट का मापन किया जा सकता है. यह एक नेचुरल रिसेप्टर प्रोटीन बेस्ड प्रोसेस है, जिसका इस्तेमाल प्रतिरोधी बैक्टीरिया एंटीबायोटिक्स से होने वाले खतरे का पता लगाने के लिए करता है. रिसर्चर्स का कहना है कि इसके आधार पर हम कह सकते हैं कि हमने बैक्टीरिया को उसके ही खेल में मात दी है.