रोबोट्स महिलाओं से ज्यादा पुरुषों को मान रहे बेहतर, अश्वेत लोगों को अपराधी
रोबोट्स महिलाओं से ज्यादा पुरुषों को मान रहे बेहतर
बीते कुछ समय से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक की मदद से बनने वाले रोबोट्स (Robots) काफी चर्चा में हैं. इनकी क्षमता का इस हद तक गुणगान हुआ कि यहां तक कहा जाने लगा कि एक दिन ये इंसानों की जगह ले लेंगे. लेकिन अब इन्हीं रोबोट्स में खामियां (Artificial Intelligence Robots) देखने को मिल रही हैं. ये रोबोट्स महिला और पुरुष के साथ-साथ काले और गोरे रंग में भी भेदभाव कर रहे हैं. जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी, जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी की तरफ से की गई रिसर्च में ये जानकारी सामने आई है.
इसमें पता चला है कि रोबोट्स के रूढ़िवादी चीजें सीखने के पीछे की वजह खराब न्यूरल नेटवर्क मॉडल है. ये महज लोगों के रंग के हिसाब से उनकी नौकरी के अंदाजे लगा रहे हैं. रोबोट्स के हिसाब से अगर किसी का रंग काला है, तो वह ब्लू कॉलर श्रमिक हैं. ये पुरुषों को महिलाओं से अधिक अहमियत दे रहे हैं. उन्हें समाज में ताकतवर बता रहे हैं. इस रिसर्च को लेकर जॉर्जिया टेक के पोस्टडॉक्टरल फेलो लेखक एंड्रयू हंड्ट्र ने कहा कि हम नस्लवादी और सेक्सिस्ट रोबोट वाली पीढ़ी तैयार करने का जोखिम उठा रहे हैं.
इंटरनेट डाटा का होता है इस्तेमाल
शोधकर्ताओं के अनुसार, रोबोट बनाने वाले वैज्ञानिक इंटरनेट डाटा का इस्तेमाल कर एआई प्रोग्राम बनाते हैं. जो डाटा इंटरनेट से डाउनलोड होता है, उसमें पक्षपाती कंटेंट भी होता है, जो बाद में नए एल्गोरिदम में भी शामिल हो जाता है. जिससे रोबोट पक्षपात करने वाला रवैया अपनाने लगते हैं. शोधकर्ताओं ने इसी व्यवहार को परखने के लिए एक्सपेरिमेंट किया है. इंसानी चेहरों की मदद से इनकी जांच हुई, जिनमें रोबोट्स से पूछा गया कि कौन अपराधी, डॉक्टर और होम मेकर है. इसमें पाया गया कि रोबोट्स ने महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को 8 फीसदी अधिक तरजीह दी है.
शोधकर्ता विक्की जेंगो का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो यही भेदभाव लोगों के घरों तक पहुंचेगा और उन्हें प्रभावित कर सकता है. घर का बच्चा अगर रोबोट से कोई गुड़िया लाने को कहेगा, तो हो सकता है कि रोबोट सफेद गुड़िया ही दे. इससे बच्चों में रंग और नस्ल को लेकर भेदभाव शुरू हो जाएगा.