शोध का दावा- इन कवायदों से पृथ्वी पर पैदा होने वाली है गंभीर संघर्ष की स्थिति, चाँद पर होगी सबकी नज़र

इस समय दुनिया भर की स्पेस एजेंसियां चंद्रमा (Moon) और मंगल (Mars) पर अपने अभियान तो भेज ही रही हैं

Update: 2020-12-12 12:51 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। इस समय दुनिया भर की स्पेस एजेंसियां चंद्रमा (Moon) और मंगल (Mars) पर अपने अभियान तो भेज ही रही हैं. इसके अलावा वहां पर लंबे समय तक रह सकने लिए भी शोध हो रहे हैं. सभी के इरादे या तो चंद्रमा पर बस्तियां (Colonise) बसाने का है या वैज्ञानिक शोध करने का या फिर उत्खनन करने का है. सच यह है अंतरिक्ष (Space) में वर्चस्व की होड़ (Race of Dominance) शुरू हो चुकी हैं ताजा शोध का दावा है कि है कि इन कवायदों से पृथ्वी (Earth) पर गंभीर संघर्ष (Conflicts) की स्थिति पैदा होने वाली है.


जगह और संसाधन की कमी
चंद्रमा पर जरूरतें सबके लिए एक ही सी हैं. सभी को पानी और हवा चाहिए. लेकिन वहां जो कुछ भी किया जाएगा उसके लिए चंद्रमा पर जगह और साधन दोनों ही कम पड़ेंगे इतना निश्चित है. ऐसे में जब दुनिया के बहुत सारे देश चंद्रमा पर आने जाने में सक्षम हो जाएंगे तो एक संघर्ष की स्थिति बन सकती है जिसका समाधान नहीं खोजा गया तो वह एक खतरनाक रूप ले लेगी यह भी तय है.

बहुत सारी योजनाएं?
इस समय बहुत सारे देशों और निजी कंपनियों को चंद्रमा पर उत्खनन और अन्वेषण की योजनाएं हैं और इनके काम करने में बहुत लंबा समय नहीं हैं. बल्कि इस दशक के अंत में ही इस पर काम होता देखने को मिल सकता है. ट्रांजेक्शन्स ऑफ द रॉयल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ है जिसके मुताबिक अगर इस खतरे से निपटने की तैयारी ना की गई तो इससे बहुत बड़ा तनाव पैदा हो सकता है.


सीमीत संसाधन को लेकर तनाव
इस अध्ययन में कहा गया है कि चंद्रमा में अन्वेषण और उत्खनन को लेकर होने वाली अभी तक सारी चर्चाएं स्पेस एजेंसी और निजी क्षेत्र के बीच ही हैं, लेकिन चंद्रमा पर सीमित रणनीतिक संसाधनों की वजह से तनावपूर्ण चुनौती पैदा होना तय है. चंद्रमा स्थितियां बहुत ही चुनौती पूर्ण हैं जहां हवा, पानी के अलावा भी बहुत सारी समस्याओं से दो चार होना पड़ेगा.

हर जगह बसाई नहीं जा सकती बस्तियां
दरअसल चंद्रमा पर कुछ ही जगह ऐसी हैं जो वैज्ञानिक शोध या फिर बस्तियों के निर्माण के लिए बहुत उपयुक्त होंगी. इनमें ऐसी जगहें जहां बहुत लंबे समय तक सूर्य की रोशनी रहती है, ध्रवीय इलाके जहां बर्फ है, ध्रवीय इलाकों के क्रेटर जहां हमेशा छाया रहती है और सूर्य के खतरनाक और नुकसान दायक विकिरण नहीं पहुंचेंगे, ऐसी जगहें कुछ ही होंगी. इन इलाकों के सीमित होने से इनपर कब्जे के लिए संघर्ष होना तय है.
अभी से दिखने लगे हैं संकेत
अगर किसी को यह बात कल्पना लगती है तो इसके उसके लिए यह जानना जरूरी है कि ऐसे हालातों के संकेत अभी से दिखाई देने लगे हैं. हाल ही में चीन ने चांग'इ-5 यान चंद्रमा पर सफलता पूर्वक उतरा है. लेकिन अभी यह साफ सतह पर उतरा था. चीन दक्षिण ध्रुव पर साल 2024 में जाने की योजना बना रहा है. वहीं नासा कह चुका है कि 2024 में दो लोग ध्रवीय इलाके में उतरेंगे, लेकिन बाद में उसने कहा का यह निश्चित नहीं है, जो भी इतना तय है कि ध्रवीय इलाके में देरसवेर बहुत से देश वहां पहुंचने की कोशिश करेंगे जिसमें भारत भी शामिल है.

ये देश भी लाइन में
भारत ने भी साल 2019 में चंद्रयान 2 के जरिए सीधे ध्रुवीय इलाके में उतरने का प्रयास किया था. लेकिन वह प्रयास असफल रहा. अब वही प्रयास एक बार फिर चंद्रयान-3 के तहत अगले साल हो सकता है. रूस की रोसमोसकोस यूरोपीय स्पेस एजेंसी के साथ मिल कर साल 2021 के अंत तक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने की योजना पर काम कर रही है. इसके बाद साल 2023 में बोगुस्लावस्की क्रेटर भी लक्ष्य है. रोसमोसकोस ने 2022 में एटकेन बेसिन को लक्ष्य बनाया है जो उसी इलाके में हैं. बहुत सारी निजी कंपनियां भी चंद्रमा पर उत्खनन की योजना बना रही हैं.

उत्खनन भी सीमित जगहों पर
इसके अलावा थोरियम और यूरेनियम, हीलियम3, लोहा आदि तत्वों का उत्खनन सीमित इलाकों में ही हो सकेगा जो देर सवेर संघर्ष की स्तिथि पैदा करने सकता है. फिलहाल नासा ने जो अंतरिक्ष और चंद्रमा के उत्खनन के लिए आर्टिमिस अकॉर्ड प्रस्तावित किया है उसमें रूस और चीन ने दिलचस्पी नहीं दिखाई है. अगर पृथ्वी पर ही संघर्ष या असहमति की स्थिति रही तो भविष्य में संघर्ष अनिश्चिन नहीं माना जा सकता.


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