नासा (NASA) का कहना है कि वाइपर (VIPER) सौर ऊर्चा पर चलेगा और उसे चंद्रमा (Moon) के दक्षिणी ध्रुव में प्रकाश के चरण उतार चढ़ाव के बीच अपना काम करना होगा. वाइपर को लॉन्च करने, चंद्रमा तक पहुंचाने का काम एस्ट्रोबायोटिक को दिया गया है. वाइपर में विशेष पहिए और सस्पेंशन सिस्टम हो विविध ढालों और मिट्टियों पर अन्वेषण का काम कर सकता है. इससे पहले नासा इसी तरह के रोबोटिक रोवर को डिजाइन कर चुका है जिसे साल 2018 में रद्द किया जा चुका है.
वाइपर (VIPER) अभियान चंद्रमा (Moon) पर तीन दिन, यानि पृथ्वी के सौ दिन के समय तक काम करेगा. नासा (NASA) के वाशिंगटन मुख्यालय में प्लैनेटरी साइंस डिविजन के निदेशक लोरी ग्लैज ने बताया कि वाइपर से मिले आंकड़ों हमारे वैज्ञानिकों को चांद पर बर्फ की सटीक स्थिति और मात्रा की जानकारी दे सकेंगे. इनसे आर्टिमिस यात्रियों के ले दक्षिणी ध्रुव के वातावरण और सक्षम संसाधनों का आंकलन करने में भी मदद मिलेगी.
लोरी ग्लेज ने बताया, " यह रोबोटिक विज्ञान (Robotic Science) के अभियान और मानव अन्वेषण के साथ साथ चलने की एक और मिसाल है. इससे यह भी पता चलता है कि क्यों चंद्रमा (Moon) पर लंबी उपस्थिति दर्ज कराने की तैयारी के लिए दोनों ही कितनी अहमियत रखते हैं." काफी समय से अंतरिक्ष अनुसंधान में रोबोट अभियानों की वकालत की बाते हो रही है. लेकिन नासा (NASA) अभी मानव अभियानों को प्राथमिकता तो रहा है, लेकिन वह रोबोट को नजरअंदाज नहीं कर रहा है.
वाइपर के चार प्रमुख उपकरणों का चंद्रमा पर उपयोग होगा. इसमें रोगिलिथ एंड आइस ड्रिल फॉर एक्सप्लोरिंग न्यू टेरेन्स (TRIDENT) हैमर ड्रिल, मास स्पैक्ट्रोमीटर ऑबजर्विंग लूनार ऑपरेशन्स (MSolo) उपकरण, द नियर इंफ्रारेड वोलेटाइल्स स्पैक्ट्रोमीर सिस्टम (NIRVSS) और न्यूट्रॉन स्पैक्ट्रोमीटर सिस्टम (NSS) होंगे. वाइपर अभियान से पहले ये भी उपकरण चंद्रमा की सतह पर जांच लिए जाएंगे.
वाइपर (VIPER) प्रोग्राम की वैज्ञानिक सारा नोबोल का कहना है, "वाइपर नासा (NASA) का अब तक का सबसे सक्षम रोबोट है जो उसने चंद्रमा (Moon) की सतह पर भेजा है. यह चंद्रमा के उन हिस्सों की पड़ताल करेगा जो हमने इससे पहले कभी नहीं देखे हैं. यह रोवल हमें चंद्रमा पर पानी की उत्पत्ति और वितरण के बारे में सिखाएगा कि240 हजार मील दूर पृथ्वी से संसाधनों का उत्खनन कैसे किया जा सकता है