स्पेस में होती है हीरों की बारिश, जानिए पूरा रहस्य

हमारे सौर मंडल में वैसे तो आठ ग्रह हैं लेकिन ज्यादातर सुर्खियों में मंगल, बृहस्पति और शनि जैसे विशालकाय ग्रह ही रहते हैं

Update: 2022-01-11 16:11 GMT

हमारे सौर मंडल में वैसे तो आठ ग्रह हैं लेकिन ज्यादातर सुर्खियों में मंगल, बृहस्पति और शनि जैसे विशालकाय ग्रह ही रहते हैं। ऐसे में यूरेनस और नेपच्यून जैसे कुछ ग्रहों, जो सौर मंडल के कोने में स्थित हैं, को कई बार नजरअंदाज कर दिया जाता है। लेकिन अगर इन गैसीय ग्रहों के मौसम के बारे में जानेंगे तो आपको पता चलेगा कि ये निर्जन पड़े कई दूसरे ग्रहों से ज्यादा खास हैं। वैज्ञानिकों का दावा है कि इन ग्रहों पर हीरों (Diamonds) की बारिश होती है और इसके पीछे एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है।

हीरों की बारिश सुनने में किसी साइंस फिक्शन फिल्म का सीन लगता है और इसकी विश्वसनीयता पर भी सवाल उठ सकते हैं। लेकिन इसके पीछे किसी तरह का फिक्शन नहीं बल्कि साइंस काम करता है। दरअसल इन दोनों ग्रहों पर ऐसा हाइड्रोजन, हीलियम और मीथेन जैसी गैसें मौजूद हैं। यहां वातावरणीय दबाव काफी ज्यादा है जो हाइड्रोजन और कार्बन बॉन्ड को तोड़कर अलग कर देता है और कार्बन हीरे के रूप में धरती पर बरसता है।
सारा खेल 'प्रेशर' का है
वैज्ञानिकों ने एक प्रयोग के आधार पर ये दावे किए हैं। यूरेनस और नेपच्यून का आकार और संरचना से काफी अलग है। यूरेनस पृथ्वी से 17 गुना तो नेपच्यून 15 गुना बड़ा है। यूरेनस पर मीथेन गैस मौजूद है जिसका रासायनिक नाम CH₄ है। वातावरण के दबाव के चलते इससे हाइड्रोजन (H) अलग हो जाता है और कार्बन (C) हीरे का रूप ले लेता है। यह प्रक्रिया ठीक उसी प्रकार है जैसे पृथ्वी पर वायुमंडलीय दबाव के चलते जलवाष्प की प्रक्रिया होती है और बादल व ओले बनते हैं।
क्या इंसान को मिल सकते हैं हीरे?
वही नेपच्यून पर जमी हुई मीथेन गैस पाई जाती है जिसके बादल यहां उड़ते हैं। नेपच्यून की दूरी सूर्य से सबसे ज्यादा है जिसकी वजह से यहां तापमान -200 डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। यहां चलने वाली हवाओं की रफ्तार करीब 2500 किमी/घंटा है और वायुमंडल में संघनित कार्बन होने के चलते यहां हीरों की बारिश देखने को मिलती हैं। हालांकि अगर इंसान चाहे भी तो अत्यधिक दूरी और चरम परिस्थितियों की वजह से इन ग्रहों पर पहुंच कर हीरों को हासिल नहीं कर सकता।
शनि पर भी होता है सेम प्रोसेस
कुछ वैज्ञानिक थ्योरी के अनुसार शनि ग्रह पर भी हीरों की बारिश होती है क्योंकि यहां भी मीथेन गैस के बादल मौजूद हैं। बादलों से स्पेस की विद्युत ऊर्जा टकराती है और कार्बन अणु टूटकर अलग हो जाता है। हालांकि यह नीचे आने पार चमकदार हीरे के बजाय उच्च तापमान और वायुमंडलीय दबाव के चलते कड़े ग्रेफाइट में बदल जाता है।
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