टूटा पुराना रिकार्ड! इस साल आर्कटिक सागर में सबसे ज्यादा पिघले बर्फीले पहाड़
ग्लोबल वर्मिंग की वजह से आर्कटिक इलाके में बर्फ का पिघलना लगातार जारी है।
ग्लोबल वर्मिंग की वजह से आर्कटिक इलाके में बर्फ का पिघलना लगातार जारी है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तरह से बर्फ पिघलती जा रही है उससे ये अपना रिकार्ड तोड़ देगी। नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के शोधकर्ताओं ने कहा कि 15 सितंबर को ये संभावना थी कि बर्फ सबसे अधिक पिघल जाएगी। रिसर्च में ये चीज देखने को मिली। अभी तक यहां 1.44 मिलियन वर्ग मील महासागर का इलाका बर्फ से ढंका था।
चूंकि समुद्री बर्फ का सेटेलाइट से चित्र लेने और उसको मॉनीटर करने के का काम चार दशक पहले शुरू हुआ था। ऐसे में ये देखा गया कि साल 2012 में इसमें कमी दर्ज की जा रही है। सबसे पहले इसे 1.32 मिलियन वर्ग मील मापा गया था। उसके बाद से साल दर साल इसमें कमी होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ये सब जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है और लगातार जारी है। इस बीच ये भी कहा जा रहा है कि जंगलों की भयंकर आग ने भी इन ग्लेशियरों को पिघलने में कहीं न कहीं भूमिका निभाई है।
वैज्ञानिक इस बात को लेकर चिंतित है कि जिस तरह से यहां पर बर्फ पिघल रही है उससे कुछ सालों में ही यहां पर बर्फ के पहाड़ और छोटे हो जाएंगे। इनके पिघलने का सिलसिला लगातार जारी है। साल दर साल गर्मी के मौसम में बढ़ोतरी हो रही है मगर उस हिसाब से ठंड नहीं पड़ रही है। इस वजह से यहां पर बर्फ जम तो नहीं रही है मगर पिघलने का सिलसिला जारी है।
नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के निदेशक मार्क सेरेज़ ने एक बयान में कहा कि हम एक मौसमी बर्फ मुक्त आर्कटिक महासागर की ओर जा रहे हैं, इस साल ने उसमें एक और बढ़ोतरी कर दी है। ये साल दुनिया भर के लिए परिवर्तन लेकर आया है। कोरोना, अमेजन के जंगलों की आग और अफ्रीका के जंगलों की आग का भी यहां पर व्यापक असर देखने को मिलेगा।
वैज्ञानिकों का कहना है कि आर्कटिक इलाके में सर्दियों के मौसम में काफी संख्या में ठंडक पड़ती है इस वजह से वहां पर बर्फ के पहाड़ देखने को मिलते हैं इनमें बढ़ोतरी हो जाती है फिर गर्मी के मौसम में ये थोड़े पिघल जाते हैं। इस साल इस इलाके में बर्फ का पहाड़ 5.9 मिलियन वर्ग मील में मार्च की शुरुआत में पहुंच गया था। मगर इस बार अजीब सा मौसम रहा है। अभी तक गर्मी ने पीछा नहीं छोड़ा है वरना इन दिनों मौसम सामान्य हो जाता है।
इस गर्मी में आर्कटिक के अधिकांश हिस्सों में तापमान बढ़ गया। जून के अंत में, साइबेरिया स्थिर हवा के एक क्षेत्र से घिरा हुआ था जो गर्म रहता था। इसने रिकॉर्ड तापमान पाया गया। रूस, एंकरेज, अलास्का की तुलना में 400 मील दूर, एक दिन में 100 डिग्री फ़ारेनहाइट तक पहुंच गया। ग्लोबल वार्मिंग आर्कटिक को दुनिया के किसी भी हिस्से से अधिक प्रभावित करता है। इस क्षेत्र में किसी भी अन्य की तुलना में दो गुना अधिक तेजी से गर्मी हो रही है।
इस तेजी से गर्मी समुद्री बर्फ को नुकसान पहुंचाती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि समुद्र की सतह गहरे रंग की है, इस वजह से वो सूर्य की किरणों को अधिक अवशोषित करती है, ऐसी स्थिति में यहां जमी बर्फ को अधिक नुकसान पहुंचता है वो जल्दी से पिघलने लगती है। यही कारण है कि यहां जमी बर्फ का पिघलना जारी है। रिसर्च करने वालों का कहना है कि इस क्षेत्र की जलवायु की दो अन्य विशेषताएं, मौसमी वायु तापमान और बर्फ के बजाय बारिश के दिनों की संख्या में बदलाव है। आर्कटिक दुनिया के उन हिस्सों में से एक है जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं। तेजी से बढ़ते तापमान के साथ समुद्री बर्फ के सिकुड़ने के अलावा अन्य प्रभाव दिख रहा है।
नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक रिसर्च इन बोल्डर, कोलोराडो (National Center for Atmospheric Research in Boulder, Colorado) हालैंड के दो वैज्ञानिक इस पर लगातार रिसर्च कर रहे हैं। इनके नाम लॉरा लैंड्रम और मारिका एम हैं। इनका रिसर्च नेचर क्लाइमेट चेंज नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। जलवायु वैज्ञानिक और अध्ययन के प्रमुख लेखक लैंड्रम ने कहा कि हर कोई जानता है कि आर्कटिक बदल रहा है। हम वास्तव में यह निर्धारित करना चाहते थे कि क्या यह एक नई जलवायु है। जिस तरह से बदलाव देखने को मिल रहे हैं उससे यही कहा जा सकता है कि यहां एक नई जलवायु बन रही है।