मार्गशीर्ष माह का सोम प्रदोष व्रत कब, जानें महत्व

Update: 2022-11-21 03:20 GMT

प्रदोष व्रत का बहुत ही खास माना जाता है। कहते हैं इस व्रत को करने से शिवजी प्रसन्न होते हैं। मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष का प्रदोष व्रत 21 नवंबर को रखा जाएगा। इस दिन सोमवार है और सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित हैं। इसलिए इसे सोम प्रदोष व्रत कहा जाएगा। बता दें कि साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं।

कहा जाता है कि इस दिन प्रदोष काल के समय जो व्यक्ति शिवलिंग के दर्शन करते हैं उनके सारे पाप खत्म हो जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि प्रदोष व्रत में पूजा के दौरान जो व्यक्ति प्रदोष स्तोत्र का पाठ करना भी बेहद लाभकारी माना जाता है। आइए जानते हैं प्रदोष व्रत की पूजा विधि महत्व और पूजा का शुभ मुहूर्त।

प्रदोष व्रत की पूजा विधि

मार्गशीर्ष, कृष्ण त्रयोदशी तिथि 21 नवंबर को 10 बजकर 7 मिनट से प्रारंभ होगी और तिथि का समापन 8 बजकर 50 मिनट पर नवंबर 22 को होगा। प्रदोष व्रत में प्रदोष काल की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यताएं है कि जो व्यक्ति प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा करते हैं उसे शुभ फल मिलता है।

प्रदोष व्रत का महत्व

शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन सच्चे न से भगवान शिव की आराधना करता है। उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। इसलिए प्रदोष व्रत को पूरा मन से करना चाहिए। मान्यताएं तो यह भी कहती है कि इस व्रत को करने से दो गाय के दान जितना फल मिलता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति के जीवन में सुख समृद्धि आती है। वहीं, मार्गशीर्ष माह में इस व्रत का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है।

प्रदोष पूजा विधि

इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि के बाद भगवान शिव की पूजा करें। पूजा में माता पार्वती, भगवान शिव और नंदी की तस्वीर लगाएं। इसके बाद पंचामृत और गंगा जल से उन्हें स्नान कराएं और बिल्व पत्र, गंध, चावल, फूल धूप, दीप नैवेद्य सुपारी, पान, इलायची चढ़ाएं। याद रखें इस दिन प्रदोष काल में भी शिवजी का पूजन करना चाहिए।



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