Shivratri 2025: भगवान शिव को क्यों कहा जाता है 'शम्भू' ?, जाने पौराणिक कथा
Shivratri 2025 ज्योतिष न्यूज़ : भगवान् शिव के कई नाम हैं और उनमें से एक नाम है शंभू। भगवान् शिव का शंभू नाम उनकी उत्पत्ति के रहस्यों को खोलता है। यह नाम बतलाता है कि शिवजी इस संसार के लिए कितने जरूरी हैं और किस प्रकार उनकी उत्पत्ति इस संसार के कल्याण के लिए हुई है। असल में, शम्भू शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसमें 'शं' का अर्थ है 'कल्याण' और 'भू' का अर्थ है'उत्पत्ति' यानि कल्याण का स्रोत या कल्याणकारी। इसके अलावा शिवजी को शंभू इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि उनकी उत्पत्ति स्वयं से ही हुई है। वो स्वयं में परिपूर्ण हैं और उनकी उत्पत्ति का कोई और कारण नहीं है।
भगवान शिव को शम्भू कहने का कारण उनका कल्याणकारी स्वभाव है। उनकी करुणा और दया को शम्भू नाम से प्रकट किया गया है। वे अपने भक्तों के दुखों को दूर करते हैं और उन्हें सुख-शांति प्रदान करते हैं। शम्भू नाम भगवान शिव की शांति और स्थिरता का भी प्रतीक है। भगवान् शिव न केवल विनाशकर्ता हैं, बल्कि सृजन और निर्माण में भी अपनी अहम् भूमिका निभाते हैं क्योंकि सबकुछ का अंत होने के बाद ही शुरुआत होती है। तो, उनका शम्भू नाम उनके इस कल्याणकारी उद्देश्य को दर्शाता है कि उनका विनाश केवल सकारात्मक मकसद के लिए है।
शिवजी ध्यान और समाधि के देवता हैं और उन्हें मोक्ष का दाता माना जाता है। वे साधकों को सांसारिक बंधनों से मुक्त कर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करते हैं। उनका "शम्भू" स्वरूप ध्यान, तपस्या और भक्ति के माध्यम से साधकों को परम आनंद और शांति का अनुभव कराता है। वेदों और उपनिषदों में भी भगवान शिव को शम्भू के नाम से संबोधित किया गया है, जो उनकी दैवीय शक्तियों और गुणों का प्रतीक है। शिव की उपासना में शम्भू नाम का जप भक्तों को मानसिक शांति और आत्मिक बल प्रदान करता है।
शम्भू के साथ जुड़े पौराणिक संदर्भभगवान् शिव के शम्भू नाम का अर्थ कल्याण है और इस नाम से उनके कुछ कल्याणकारी काम पौराणिक कथाओं और मान्यताओं में बताये गए हैं। उन मान्यताओं के अनुसार, शिवजी को सती के प्रति उनके अटूट प्रेम और त्याग के कारण 'शम्भू' कहा गया क्योंकि वे सती के कल्याण के लिए तपस्या करते हैं और उनके पुनर्जन्म के रूप में पार्वती को अपनाते हैं। शिवजी ने अपने भक्तों के कल्याण के लिए सदा अपने शम्भू स्वरूप को प्रकट किया, चाहे वह रावण को वरदान देना हो या भस्मासुर से सृष्टि की रक्षा करना। शिव ने हलाहल विष को पीकर देवताओं और असुरों को बचाया। यह उनका 'शम्भू' स्वरूप है। भगवान शिव को 'शम्भू' कहना उनके कल्याणकारी, शांतिदायक और सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में उन्हें सम्मान देना है। उनका "शम्भू" स्वरूप हमें यह सिखाता है कि सच्ची शांति और सुख बाहरी भौतिकता में नहीं, बल्कि आंतरिक आत्मज्ञान और ईश्वर से जुड़े रहने में है। यही कारण है कि भगवान शिव के इन गुणों को पूजने वाले के मुंह पर सदैव 'हर-हर शम्भू' रहता है।