Shivratri: इस मंदिर में मौजूद है महादेव के पुत्र कार्तिकेय की अस्थियाँ

Update: 2025-01-29 10:51 GMT
Shivratri ज्योतिष न्यूज़: हिंदू धर्म में कार्तिकेय भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र और युद्ध के देवता माने जाते हैं। भारत में भगवान कार्तिकेय को समर्पित कई प्रमुख मंदिर हैं, जिसमें से एक है कार्तिक स्वामी मंदिर। यह मंदिर उत्तराखंड के रुद्र प्रयाग जिले में स्थित है और समुद्र तल से लगभग 3,048 मीटर (10,000 फीट) की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर हिमालय की गोद में बसा है। उत्तराखंड के रुद्र प्रयाग जिले में स्थित एक यह मंदिर एक दिलचस्प कारण से बेहद प्रसिद्ध है। इस मंदिर को लेकर मान्यता कि इस मंदिर में भगवान कार्तिकेय की अस्थियाँ आज भी
मौजूद हैं।
उनकी इस अस्थियों को लेकर कई पौराणिक कथाएं हैं। जैसे कि, एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने अपने शरीर का त्याग तपस्या के दौरान किया था और तब से ही इस मंदिर में उनकी अस्थियाँ मौजूद हैं। मान्यता यह भी है कि भगवान कार्तिकेय ने अपनी अस्थियाँ भगवान शिव को समर्पित की थीं। कथा के अनुसार, भगवान शिव ने अपने दोनों पुत्रों गणेश और कार्तिकेय को एक प्रतियोगिता दी कि जो ब्रह्मांड का चक्कर सबसे पहले लगाएगा, वही विजेता होगा। भगवान गणेश ने अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए माता पार्वती और भगवान शिव के चारों ओर घूमकर प्रतियोगिता जीत ली। कार्तिकेय, जो पूरी सृष्टि का चक्कर लगाकर लौटे, इस निर्णय से असहमत होकर अपने पिता शिव को अपनी अस्थियाँ भेंट कर हिमालय की ओर चले गए। यह स्थान उन्हीं के इस त्याग और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। मंदिर में वास्तविक अस्थियाँ होने की बात का कोई प्रमाण नहीं है। संभव है कि किसी मंदिर में उनके प्रतीकात्मक अवशेषों को रखा गया हो, जो भक्तों की आस्था का केंद्र है। यह अस्थियाँ वास्तविक न होकर, किसी विशेष धातु या पवित्र सामग्री से बनी हो सकती हैं, जिन्हें उनकी दिव्य शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
यह मंदिर रुद्रप्रयाग से लगभग 40 किमी दूर है। अंतिम 3 किमी की यात्रा पैदल करनी होती है, जो एक रोमांचक और आध्यात्मिक अनुभव प्रदान करती है। यहां से बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों का भव्य दृश्य दिखाई देता है। मंदिर तक पहुंचने का रास्ता घने जंगलों, ऊँचे पहाड़ों और शांत वातावरण से होकर गुजरता है। यात्रा के दौरान पंचचूली, नीलकंठ, और चौखंबा जैसे हिमालयी शिखरों के दृश्य देखने को मिलते हैं। कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशेष पूजा और उत्सव का आयोजन किया जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में भक्त मंदिर में दर्शन के लिए आते हैं। शिवरात्रि के अवसर पर भी यहां भक्तों की भारी भीड़ होती है क्योंकि भगवान कार्तिकेय भगवान शिव के पुत्र हैं। मार्च से जून और सितंबर से नवंबर का समय मंदिर की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त है। सर्दियों के समय यहां अत्यधिक ठंड होती है और भारी बर्फबारी के कारण यात्रा मुश्किल हो सकती है।
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