कब है श्री वल्लभ आचार्य जयंती, जानें क्यों होती है भगवान कृष्ण की पूजा?

हिंदू पंचांग के वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को श्री वल्लभ आचार्य जयंती (Vallabhacharya Jayanti) मनाई जाती है

Update: 2021-05-05 04:18 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| हिंदू पंचांग के वैशाख महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को श्री वल्लभ आचार्य जयंती (Vallabhacharya Jayanti) मनाई जाती है. इस दिन को श्री वल्लभ आचार्य के जन्मदिन के रुप में मनाया जाता है. हिंदू धर्म में वल्लभ आचार्य जयंती बहुत महत्वपूर्ण दिन है. वल्लभ आचार्य जी पुष्य संप्रदाय के संस्थापक के रूप में जाने जाते हैं. कई लोगों का मानना है कि वल्लभ आचार्य को श्री कृष्ण से मिलने का प्राप्त हुआ था. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि वल्लभ आचार्य अग्नि देवता का पुनर्जन्म है.

इस साल श्री वल्लभ आचार्य की 542वीं वर्षगांठ है. इस बार श्री वल्लभ आचार्य एकादशी 7 मई 2021 को है. इस दिन को विशेष रूप से श्री नाथ जी की पूजा की जाती है. श्री वल्लभ आचार्य के भक्तों के लिए ये बहुत बड़ा दिन होता है.
एकादशी तिथि प्रारंभ – 6 मई 2021 को दोपहर 2 बजकर 10 मिनट से
एकादशी तिथि समापन – 7 मई 2021 शुक्रवार दोपहर 3 बजकर 32 मिनट कर रहेगा.
इस जंयती को तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और चेन्नई में विशेष रूप से मनाया जाता है. इस दिन को श्री नाथ जी के मंदिरों में हर्ष उल्लास से मनाया जाता है. इस दिन कई भक्त प्रसाद बांटते हैं और लोगों में वितरित करते हैं. हालांकि इस बार कोरोना की वजह से आप सभी अपने घरों में पूजा करें.
कौन थे श्री वल्लभ आचार्य
श्री वल्लभ आचार्य के जन्मदिन पर विशेष रूप से श्रीकृष्ण की पूजा -अर्चना की जाती है. क्योंकि वल्लभ आचार्य जी भगवान कृष्ण के बहुत बड़े भक्त थे. लोग उन्हें भगवान श्रीनाथ का स्वरूप मानते हैं. उनका जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनकी माता का नाम इल्लामागारू और पिता का नाम लक्ष्मण भट्ट था. उनके जन्म से जुड़ी एक कहानी है कि वल्लभाचार्य जी का जन्म अष्टमास में हुआ था. उनके माता पिता ने उन्हें मृत समझकर छोड़ दिया था. जिसके बाद श्री नाथ जी स्वयं माता इल्लामागारू के सपने में आए और कहा कि जिस शिशु को तुम छोड़ आए हो वो जीवित है. तुम्हारे गर्भ से स्वयं श्रीनाथ ने जन्म लिया है. इसके बाद जब उनके माता- पिता वहा गए तो उन्होंने देखा कि उस जगह पर वह अंगूठा चूस रहे थे.
वल्लभाचार्य ने कई ग्रथों और स्त्रोतों की रचना की है. उन्होंने अपने आखिरी समय में अपने दोनों बेटे और प्रमुख भक्त को काशी के हनुमान घाटी पर शिक्षा दी. फिर 40 दिन बाद मौन धारण कर लिया और जल समाधि ले ली.


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