Margashirsha Purnima Vrat Katha: मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन करें इस व्रत कथा का पाठ, दूर होंगे सभी कष्ट

Update: 2024-12-15 02:09 GMT
Margashirsha Purnima Vrat Katha: मार्गशीर्ष पूर्णिमा का दिन भगवान विष्णु को समर्पित हैं. इस दिन लोग जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु की कृपा पाने के लिए व्रत तथा पूजन करते हैं. इस दिन पूजा करने के साथ सत्यनारायण भगवान की कथा पढ़ना और सुनना बहुत ही शुभ होता है|
मार्गशीर्ष पूर्णिमा व्रत कथा
कथा के अनुसार, एक बार नारद जी तीनों लोकों में भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के पास पहुंचे और कहा कि उनसे हे प्रभु धरती लोगों पर अनेकों लोग बहुत से कष्टों को भोग रहे हैं. उन्होंने भगवान से कहा कि आप कोई ऐसा आसान उपाय बताएं, जिससे कि लोगों का कल्याण हो. यह सुनकर भगवान श्रीहरि ने कहा कि जो भी व्यक्ति सांसारिक सुख और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त करना चा​हता है, उसे श्री सत्यनारायण भगवान की पूजा व व्रत करना चाहिए. भगवान विष्णु ने फिर सत्यनारायण व्रत के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि जिसने भी यह व्रत किया है मैं वह सब सुनों|
सत्यनारायण की एक कथा के अनुसार, पहले समय में उल्कामुख नाम का एक बुद्धिमान राजा था. वह सत्यवक्ता और जितेन्द्रिय था. प्रतिदिन देव स्थानों पर जाता और निर्धनों को धन देकर उनके कष्ट दूर करता था. उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली तथा सती साध्वी थी. भद्रशीला नदी के तट पर उन दोनो ने श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत किया. उसी समय साधु नाम का एक वैश्य आया. उसके पास व्यापार करने के लिए बहुत सा धन भी था. राजा को व्रत करते देखकर वह विनय के साथ पूछने लगा, हे राजन! भक्तिभाव से पूर्ण होकर आप यह क्या कर रहे हैं? मैं सुनने की इच्छा रखता हूं तो आप मुझे बताएं|
साधु वैश्य ने अपनी पत्नी को संतान देने वाले इस व्रत का वर्णन कह सुनाया और कहा कि जब मेरी संतान होगी तब मैं इस व्रत को करुंगा. साधु ने इस तरह के वचन अपनी पत्नी लीलावती से कहे. एक दिन लीलावती पति के साथ आनन्दित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत होकर सत्यनारायण भगवान की कृपा से गर्भवती हो गई. दसवें महीने में उसके गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया. दिनों दिन वह ऐसे बढ़ने लगी जैसे कि शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है. माता-पिता ने अपनी कन्या का नाम कलावती रखा. एक दिन लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति को याद दिलाया कि आपने सत्यनारायण भगवान के जिस व्रत को करने का संकल्प किया था उसे करने का समय आ गया है, आप इस व्रत को करिये. साधु बोला कि हे प्रिये! इस व्रत को मैं उसके विवाह पर करुंगा|
इस प्रकार अपनी पत्नी को आश्वासन देकर वह नगर को चला गया. कलावती पिता के घर में रह वृद्धि को प्राप्त हो गई. साधु ने एक बार नगर में अपनी कन्या को सखियों के साथ देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाया और कहा कि मेरी कन्या के योग्य वर देख कर आओ. साधु की बात सुनकर दूत कंचन नगर में पहुंचा और वहां देखभाल कर लड़की के सुयोग्य वाणिक पुत्र को ले आया. सुयोग्य वर को देख साधु ने बंधु-बांधवों को बुलाकर अपनी पुत्री का विवाह कर दिया लेकिन दुर्भाग्य की बात ये कि साधु ने अभी भी श्रीसत्यनारायण भगवान का व्रत नहीं किया. उसके बाद वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया. उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया. पीछे घर में भी चोरी हो गयी. पत्नी लीलावती व पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गयीं|
एक दिन कलावती ने किसी के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर मां को बताया. तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापस आने का वरदान मांगा. श्रीहरि प्रसन्न हो गये और स्वप्न में राजा को दोनों बंदियों को छोडऩे का आदेश दिया. राजा ने उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया. घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन पर्यन्त आयोजन करता रहा, फलत: सांसारिक सुख भोगकर उसे मोक्ष प्राप्त हुआ|
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