क्‍या होता है खगोलीय सूर्य ग्रहण ?, सूरज पर बन जाता है छोटा बिंब

साल 2021 का पहला सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse 2021) 10 जून, गुरुवार (Thursday) को लगने जा रहा है.

Update: 2021-06-08 08:45 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क|  साल 2021 का पहला सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse 2021) 10 जून, गुरुवार (Thursday) को लगने जा रहा है. वैसे तो यह ग्रहण में भारत में न के बराबर दिखाई देगा, लिहाजा इसका सूतक काल (Sutak Kaal) भी नहीं माना जाएगा. इसके बाद साल का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण 4 दिसंबर को होगा. आज विज्ञान की दृष्टि से जानते हैं कि सूर्य ग्रहण कितने प्रकार के होते हैं.

कैसे होता है सूर्य ग्रहण
सूर्य ग्रहण तब होता है जब चंद्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच से गुजरता है. जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढंक जाता है, इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी की. कभी-कभी चांद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है. फिर वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है जिससे धरती पर साया फैल जाता है. इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है.
सूर्य ग्रहण के प्रकार
पूर्ण सूर्य ग्रहण (Full Solar Eclipse): इसे खग्रास ग्रहण भी कहते हैं. चंद्रमा जब सूर्य को पूरी तरह से ढंक लेता है तो सूर्य एक काली प्‍लेट की तरह दिखता है. इसमें सबसे खूबसूरत समय तब होता है जब चंद्र के सूर्य को पूरी तरह से ढंकने से जरा पहले और चांद के पीछे से निकलने के फौरन बाद काली तश्तरी के पीछे जरा-सा चमकता सूरज हीरे की अंगूठी या 'डायमंड रिंग' की तरह दिखाई देता है.
आंशिक सूर्य ग्रहण (Partial Solar Eclipse): इसे खंडग्रास ग्रहण भी कहते हैं. यानी कि जब सूर्य और चंद्रमा एक सीधी लाइन में नहीं होते हैं, इसके कारण चंद्रमा सूर्य के एक हिस्से को ही ढंक पाता है. इसमें सूर्य के कुछ हिस्‍से पर ही ग्रहण लगता है, या छाया पड़ती है.

वलयाकार सूर्य ग्रहण (Elliptical Solar Eclipse): जब चंद्रमा पृथ्वी से बहुत दूर होता है और इस दौरान पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है. ऐसे में सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है. कंगन आकार में बने सूर्य ग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं.
कंकणाकृति सूर्य ग्रहण ( Kankanakruti Solar Eclipse): जब चंद्रमा दूर होता है और उसकी पूरी परछाई पृथ्‍वी पर पड़ने की बजाय छोटे बिंब ही दिखाई देते हैं. इस बिंब के छोटे होने के कारण सूर्य के बीच का केवल कुछ हिस्‍सा ही छाया से ढंक पाता है और इसके चारों और सूर्य का प्रकाश दिखाई पड़ता है. ऐसे ग्रहण को कंकणाकार या कंकणाकृति सूर्य ग्रहण कहा जाता है.


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