आज होलिका दहन का ये है सबसे उत्तम मुहूर्त.....जानें पूजन सामग्री, विधि व मंत्र

होलिका दहन 17 मार्च, गुरुवार को है। होलिका दहन पूर्णिमा की रात में किया जाता है। होलिका दहन के लिए काफी पहले से तैयारी शुरू हो जाती है।

Update: 2022-03-17 04:26 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। होलिका दहन 17 मार्च, गुरुवार को है। होलिका दहन पूर्णिमा की रात में किया जाता है। होलिका दहन के लिए काफी पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। चौराहे या घर के पास लकड़ियां, गोबर की उपले व कंडे आदि जमा किए जाते हैं। फाल्गुन पूर्णिमा की रात शुभ मुहूर्त में विदि-विधान से पूजन किया जाता है और फिर होलिका दहन करते हैं। होलिका दहन के समय भद्रा का ध्यान रखना चाहिए। भद्रा के समय होलिका दहन नहीं किया जाता है। जानें होलिका दहन के शुभ मुहूर्त, मंत्र, पूजा विधि व पूजन सामग्री-

होलिका दहन 2022 शुभ मुहूर्त-
17 मार्च, गुरुवार को देर रात 01 बजकर 29 मिनट से होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा पूंछ में रात 09 बजकर 06 मिनट से रात 10 बजकर 16 मिनट के बीच है।
होलिका दहन पूजन सामग्री-
अक्षत, गंध, गुड़, फूल, माला, रोली, गुलाल, कच्चा सूत, हल्दी, एक लोटे में जल, नारियल, बताशा, गेहूं की बालियां और मूंग आदि।
होलिका पूजन मंत्र-
होलिका के लिए मंत्र: ओम होलिकायै नम:
भक्त प्रह्लाद के लिए मंत्र: ओम प्रह्लादाय नम:
भगवान नरसिंह के लिए मंत्र: ओम नृसिंहाय नम:
होलिका दहन की पूजन विधि-
होलिका पूजन के लिए उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। उसके बाद भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। इसके बाद होलिका मंत्र का जाप करें। अब अक्षत, फूल, रोली, गंध आदि अर्पित करें। इसके बाद हनुमान जी, शीतला माता व पितरों की पूजा करें।
इसके बाद होलिका में सात बार परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपटेते हैं। उसे बाद नारियल,जल आदि पूजन सामग्री अर्पित करें। उसके बाद अग्नि की परिक्रमा करें। होलिका की आग में गेहूं की बालियों को सेकें।
होलिका दहन 2021 कथा:
एक पौराणिक कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान के अनन्य भक्त थे। उनकी इस भक्ति से पिता हिरण्यकश्यप नाखुश थे। इसी बात को लेकर उन्होंने अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से हटाने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन भक्त प्रह्लाद प्रभु की भक्ति को नहीं छोड़ पाए। अंत में हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को मारने के लिए योजना बनाई। अपनी बहन होलिका की गोद में प्रह्लाद को बैठाकर अग्नि के हवाले कर दिया। लेकिन भगवान की ऐसी कृपा हुई कि होलिका जलकर भस्म हो गई और भक्त प्रह्लाद आग से सुरक्षित बाहर निकल आए, तभी से होली पर्व को मनाने की प्रथा शुरू हुई।
एक अन्य कथा के अनुसार, हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो जाये पर शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहायता को आये। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गयी। शिवजी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। उनके क्रोध की ज्वाला में कामदेव का शरीर भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिवजी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकत्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम की विजय का उत्सव मनाया जाता है।


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