आज हैं कालाष्टमी, भगवान काल भैरव को प्रसन्न करने के लिए पढ़ें पौराणिक कथा

आज 1 जुलाई, गुरुवार को आषाढ़ कालाष्टमी है. आज कालाष्टमी के दिन भक्त भगवान शिव के विग्रह स्वरुप भगवान काल भैरव (Kaal Bhairav) की पूजा-अर्चना कर रहे हैं.

Update: 2021-07-01 04:04 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आज 1 जुलाई, गुरुवार को आषाढ़ कालाष्टमी है. आज कालाष्टमी के दिन भक्त भगवान शिव के विग्रह स्वरुप भगवान काल भैरव (Kaal Bhairav) की पूजा-अर्चना कर रहे हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, काल भैरव भगवान शिव (Lord Shiva) के पांचवे आवतार हैं. भगवान भैरव के भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की पूजा अर्चना करने से व्यक्ति भयमुक्त होता है और उसके जीवन की कई परेशानियां दूर हो जाती हैं. आइए पढ़ें कालाष्टमी की कथा...

कालाष्टमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार की बात है कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश इन तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चली. इस बात पर बहस बढ़ गई, तो सभी देवताओं को बुलाकर बैठक की गई. सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा लेकिन उस बात का समर्थन शिवजी और विष्णु ने तो किया, परंतु ब्रह्माजी ने शिवजी को अपशब्द कह दिए इस बात पर शिवजी को क्रोध आ गया और शिवजी ने अपना अपमान समझा.
शिवजी ने उस क्रोध में अपने रूप से भैरव को जन्म दिया. इस भैरव अवतार का वाहन काला कुत्ता है. इनके एक हाथ में छड़ी है. इस अवतार को 'महाकालेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति कहा गया है. शिवजी के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए.
भैरव ने क्रोध में ब्रह्माजी के 5 मुखों में से 1 मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास 4 मुख ही हैं. इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप आ गया. ब्रह्माजी ने भैरव बाबा से माफी मांगी तब जाकर शिवजी अपने असली रूप में आए.
भैरव बाबा को उनके पापों के कारण दंड मिला इसीलिए भैरव को कई दिनों तक भिखारी की तरह रहना पड़ा. इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में इनका दंड समाप्त होता है. इसका एक नाम 'दंडपाणी' पड़ा था.


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