Religion Spiritualityधर्म अध्यात्म: विंध्य पर्वत पर विराजमान आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी का धाम विशेष है। मां अपने तीनों रूपकों के साथ विंध्य पर्वत पर विराजमान है, जो भक्तों का कल्याण कर रही है। आध्यात्मिक स्थल मां विंध्यवासिनी धाम न सिर्फ लाखों भक्तों के आस्था का केंद्र है, बल्कि यह ऋषियों The Sagesकी तपोस्थली भी रहा है। विंध्य पर्वत पर ही ऋषि अगस्त, देवरहा बाबा, गोरखनाथ सहित कई संत ने तपस्या की है। आज भी यह पर्वत विश्वभर के साधकों की पहली पसंद है। साधक की तपस्या विंध्य पर्वत पर बिना साधना किए अधूरी है। आध्यात्मिक धर्मगुरु त्रियोगी नारायण मिश्र ने बताया कि विंध्य क्षेत्र हजारों वर्षों से ज्ञान प्राप्त करने का तपोस्थली भी रहा है। विंध्य पर्वत पर मुनि अगस्त्य ने साधना की थी। इसी अवसर पर, सभ्यता व संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए ज्ञान यात्रा शुरू की गई।
मां की महान शक्तियों के अनुभव के लिए कई ऋषि व संत इस धरा पर पहुंचे थे। दक्खिन पर सप्त सागर में सप्तऋषियों को ज्ञान प्राप्त हुआ था, जिसका प्रमाण आज भी मौजूद है। त्रयोगी नारायण मिश्र ने बताया कि गुरु शंकराचार्यShankaracharya को मां की चमत्कारिक शक्तियों का अनुभव प्राप्त हुआ था। उन्होंने कहा था कि विंध्य पर्वत पर बिना साधना किये साधक की साधना आधी है। वहीं, स्वामी करपात्री महाराज, अवधूत राम, माता आनंदमयी, तैलंग स्वामी, महागुरु गोरखनाथ, योगीराज देवरहा बाबा जैसे संतों ने इस भूमि पर साधना की है। विंध्य क्षेत्र का कण-कण दैवीय ऊर्जा का स्रोत है। यहां साधक की सिद्धि अल्प समय में प्राप्त हो जाती है। माँ भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करती है। इसलिए यह धाम नहीं बल्कि पूरा क्षेत्र विशेष है.