शास्त्रों में बताए गए हैं चतुर्मास के ये नियम, मानेंगे तो फायदे में रहेंगे
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से चतुर्मास का आरंभ हो रहा है।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से चतुर्मास का आरंभ हो रहा है। इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहते हैं और इस दिन से अगले 4 महीने तक भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं। देवताओं के निद्रा में लीन हो जाने की वजह से पूजापाठ छोड़कर बाकी सभी मांगलिक कार्य बंद कर दिए जाते हैं। शास्त्रों में चातुर्मास को लेकर कुछ नियम बताए गए हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी इन नियमों का पालन करता है और नियम संयम से रहता है उसे बेहद पुण्य फल की प्राप्ति होती है। आइए आपको बताते हैं क्या हैं ये नियम…
चतुर्मास में काले एवं नीले रंग के वस्त्र त्याग देने चाहिए। नीले वस्त्र को देखने से जो दोष लगता है उसकी शुद्धि भगवान सूर्यनारायण के दर्शन से होती है।
लाल रंग और केसर का भी त्याग कर देना चाहिए। चतुर्मास में परनिंदा का विशेष रूप से त्याग करें। परनिंदा को सुनने वाला भी पापी होता है।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को श्रीहरि के योगनिद्रा में प्रवृत्त हो जाने पर मनुष्य चार मास अर्थात् कार्तिक की पूर्णिमा तक भूमि पर शयन करें। ऐसा करने वाला मनुष्य बहुत से धन से युक्त होता है।
चतुर्मास में अनार, नींबू, नारियल तथा मिर्च, उड़द और चने का भी त्याग करें । जो प्राणियों की हिंसा त्याग कर द्रोह छोड़ देता है, वह भी पुण्य का भागी होता है।
जो बात करते हुए भोजन करता है, उसके वार्तालाप से अन्न अशुद्ध हो जाता है। वह केवल पाप का भोजन करता है। जो मौन होकर भोजन करता है, वह कभी दुःख में नहीं पड़ता। मौन होकर भोजन करने वाले राक्षस भी स्वर्गलोक में चले गए हैं। यदि पके हुए अन्न में कीड़े-मकोड़े पड़ जाएं तो वह अशुद्ध हो जाता है। यदि मानव उस अपवित्र अन्न को खा ले तो वह दोष का भागी होता है।
इन चार महीनों में ब्रह्मचर्य का पालन, त्याग, पत्तल पर भोजन, उपवास, मौन, जप, ध्यान, स्नान, दान, पुण्य आदि विशेष लाभप्रद होते हैं। जो मनुष्य चतुर्मास में केवल दूध पीकर अथवा फल खाकर रहता है, उसके सहस्रों पाप तत्काल विलीन हो जाते हैं।